कौशल सिखौला : गीता जयंती पर..

गीता जयंती पर..
गीतज्ञान जो महाभारत युद्ध के मैदान में श्रीकृष्ण ने मोह में फंसे अर्जुन को दिया।
दोनों ओर सेनाएं थी और बीच में सारथी बने माधव
तो क्या कृष्ण मुख से गीता अकेले अर्जुन ने सुनी ?
जी नहीं , आइए बताते हैं किस किस ने सुनी..!

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कईं बड़े बड़ों ने सुनी थी कृष्ण मुख से गीता गाथा !
कृष्ण ने सूर्य को सबसे पहले सुनाई थी भगवदगीता !
सीधे कृष्णमुख से श्रवण का बिरला सौभाग्य !

भगवद्गीता ऐसा अनूठा महाग्रंथ है जिसका अनुवाद संसार की समस्त भाषाओं में हुआ है । विश्व में ऐसा कोई नहीं जिसने गीता का श्रवण किया हो और उसके जीवन की दशा दिशा में कोई परिवर्तन न आया हो । गीता के महान ज्ञान ने देश देशांतर तक यात्राएं की । कल हो , आज हो या आनेवाला कल , जो भी पढ़े सुनेगा अभिभूत हो जाएगा । परमात्मा अनंत हैं और गीता के रहस्य भी अनंत । गीता मनुष्य को ईश्वर प्रदत्त ज्ञान का जीवंत प्रतीक है।

सब जानते हैं कि युद्ध के मैदान में बंधु बांधवों को आमने सामने देखकर जब अर्जुन युद्ध से भागने लगे तब श्रीकृष्ण ने उन्हें अपना विराट रूप दिखाकर भगवद्गीता का अलौकिक ज्ञान अपने श्रीमुख से दिया । निःसंदेह वह समय अद्भुत होगा जब दोनों ओर खड़ी सेनाएं और महारथी कुछ भी न देख पाए और अर्जुन ने सब देख सुन लिया।

ज्ञान लेने के बाद जब अर्जुन ने पूछा कि गीता ज्ञान श्रवण करने वाले क्या वे अकेले हैं , तब कृष्ण ने कहा कि नहीं । तुमसे पहले यह गीता ज्ञान मैं सूर्य को प्रदान कर चुका हूं । तब अर्जुन समझ गए कि धरती पर वे अकेले हैं । लेकिन ऐसा नहीं था । कृष्ण जब अर्जुन को दिव्य रूप दिखा रहे थे तब हस्तिनापुर में बैठे संजय भी यह सब जीवंत देख सुन रहे थे । वे सुना रहे थे और नेत्रहीन धृतराष्ट्र अपने अंतः चक्षुओं से सब यथावत गृहण कर रहे थे । सुन गांधारी भी रही थी । मतलब युद्ध की रणभूमि में दिव्यज्ञान का अनंत आनंद अर्जुन , संजय और धृतराष्ट्र और गांधारी ने समान रूप से साक्षात लिया।

कृष्ण जब दुर्योधन से युद्ध रोकने का आग्रह करने के लिए दुर्योधन की सभा में गए तब दुर्योधन ने कृष्ण को बंदी बनाने का आदेश दिया । समझाने के बाद भी न मानने पर कृष्ण अपना दिव्य रूप दिखाकर आकाश मार्ग से चले गए । क्रोधी दुर्योधन उनका वह रूप न देख सका और डर कर वहां से चला गया । बाकी दरबारी भी उस विराट रूप से डर कर भाग गए । अलबत्ता दिव्य रूप का दर्शन वहां बैठे भीष्म , विदुर और द्रोण ने किया और अपने जीवन को धन्य माना।

दिव्य रूप के दर्शन का सौभाग्य वेदव्यास को अपने तपोबल से हुआ । कालांतर में उन्होंने जब श्रीगणेश से गीता सहित समस्त ग्रंथ लिखवाए तब भगवान गणेश ने भी दिव्य रूप दर्शन अपनी कलम से कर लिए । वर्णन मिलता है कि भगवान कृष्ण ने अपने दिव्य रूप का दर्शन अक्रूर , उद्धव , राजा मुचकुंद और शिशुपाल को भी कराया । सुभद्रा ने भी उस अनंत रूप का दर्शन किया था । आज भागवत कथाओं के माध्यम से सारा संसार कृष्ण से रू ब रू हो चुका है । सचमुच बड़ा महान है वह कन्हैया ,,,, वह मुरली बजैया ,,,, वह छलिया!

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