सुरेंद्र किशोर : संसद की दर्शक दीर्घाएं बंद हों FOR INDEFINITE PERIOD
13 दिसंबर को ही एक बार फिर हमला क्यों ?
संकेत समझिए !
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जब संसद की कार्यवाही टी.वी.पर उपलब्ध है ही
तो फिर दर्शक दीर्घाओं की जरूरत क्यों ?
दर्शक दीर्घाएं अगले आदेश तक बंद रखें।
भले कुछ कैमरे बढ़ा दीजिए।
चेतावनी को समझिए अन्यथा भुगतिएगा।
इस देश की कई बड़ी हस्तियां अपनी ही असावधानियों के
कारण भुगत चुकी हैं।
बड़ी हस्तियों भुगतती हैं तो देश भी भुगतता है,इतिहास गवाह है।
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संसद के दोनों सदनों की कार्यवाही जब चैनलों पर ही उपलब्ध है तो दर्शक दीर्घाओं की जरूरत क्यों ?
अगले आदेश तक दर्शक दीर्घाएं बंद कीजिए अन्यथा
भुगतना पड़ सकता है।
कल्पना कीजिए कोई फिदाइन संसद के वेल तक पहुंच जाए !
महात्मा गांधी,इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की जानें खुद उनकी लापरवाहियों के कारण ही गयीं और बाद में भुगता देश।
राहुल गांधी अब तक अनेक बार सुरक्षा नियमों को तोड़ चुके हैं।
न तो राहुल को उनका परिवार रोक पा रहा है और न सरकारें।
ऐसा ढीला-ढाला देश
है अपना।
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पूर्व प्रधान मंत्री राजीव गांधी की सुरक्षा में हुई लापारवाही की कहानी जान लीजिए।
ब्लू बुक के अनुसार राजीव गांधी के पास पहुंचने वालों की सघन जांच होनी चाहिए थी।
1991 में घटनास्थल पर तैनात पुलिस उप निरीक्षक अनुसूया डेजी अर्नेस्ट ने ‘‘मानव बम धनु;; को राजीव के पास पहुंचने से रोकने की दो बार कोशिश की थी।
पर उस कोशिश को देख कर राजीव गांधी ने कहा कि सबको मेरे पास आने दो।
वह पास गई और दुःखद घटना हो गई।
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उसी तरह ब्लू स्टार आपरेशन के बाद प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी की सुरक्षा में लगे सिख जवानों को ड्यूटी से अलग कर दिया गया था।
पर जब इंदिरा गांधी को पता चला तो उन्होंने दुबारा उन सिख संतरियों को बुला लिया।उन्हीं संतरियों ने प्रधान मंत्री की हत्या कर दी।
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सन 1948 में गृह मंत्री सरदार पटेल तथा संबंधित पुलिस अफसरों ने कई बार गांधी जी से विनती की थी कि आप
प्रार्थना सभा में आने वालों की तलाशी लेने की अनुमति दे दीजिए।
पर वे नहीं माने।
20 जनवरी 1948 को प्रार्थना सभा के पास बम विस्फोट हो चुका था।
गांधी की जिद्द के कारण नाथूराम गोड्सेे को मौका मिल गया।
30 जनवरी 1948 को उसने गांधी की हत्या कर दी।
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कुछ समय पहले तब के गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में कहा था कि राहुल गांधी अब तक अनेक बार सुरक्षा नियमों का उलंघन कर चुके हैं।संख्या भी बताई थी।
यानी, इस पृष्ठभूमि में केंद्रीय शासन को चाहिए कि खुद किसी वी.वी.आई.पी. को उनकी सुरक्षा से समझौता करने की अनुमति किसी भी कीमत पर न दे।
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अब तो सवाल पूरी संसद को आतंकियों से बचाने का है।
मेरा मानना है कि इस सलाह के बावजूद दर्शक दीर्घा फिर भी बंद नहीं होंगी।
भले कोई फिदाइन कल होकर संसद में घुस जाए।
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याद रहे कि 13 दिसंबर 2001 को लश्कर ए तोयबा और जैश ए मोहम्मद के आतंकवादियों
भारतीय संसद पर हमला कर 14 लोगों की जान ले ली थी।