सुरेंद्र किशोर : अनिच्छुक नेताओं के लिए बहुत कठिन है अपने परिजन को राजनीति से दूर रखना
वहां के एक बड़े व्यवसायी ने शिवनाथ काटजू को अपना कानूनी सलाहकार बनाने का प्रस्ताव किया।
पुत्र ने खुशी होकर अपने पिता को सूचित किया।
पहले के कुछ नेता कहते थे कि यदि मेरा पुत्र चुनाव लड़ेगा तो मैं नहीं लड़ूंगा।
इतना ही कहने पर तब के पुत्र अपनी जिद छोड़ देते थे।
आज के बेटे तो तुरंत कह देंगे ‘‘ तो ठीक है पिता जी, अब आप आराम कीजिए।’’
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उन बेटों को धन्यवाद कीजिए जिन बेटों ने तब बाप का मान रख लिया था।उस पुत्र को नरक में भेजिए जिसने टिकट की जिद में अपने पिता की जान ले ली थी।
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वैसे आज तो इस देश के अनेक नेता यह चाहते हैं कि अपनी पूरी पूंजी–पार्टी, धन और वोट बैंक –अपने पुत्र को
ही सौंपकर ‘ऊपर’ जाएं।
शिवनाथ काटजू (इससे पहले के एक पोस्ट में मैंने असावधानीवश विश्वनाथ काटजू लिख दिया था।उन्हीं के ‘‘यशस्वी’’ पुत्र हंै–मार्कंडेय काटजू) नामक पुत्र ने भी अपने पिता कैलाशनाथ काटजू का मान रख लिया था।
बात तब की है जब कैलाशनाथ काटजू पश्चिम बंगाल के गवर्नर थे।
वहां के एक बड़े व्यवसायी ने शिवनाथ काटजू को अपना कानूनी सलाहकार बनाने का प्रस्ताव किया।
पुत्र ने खुशी होकर अपने पिता को सूचित किया।
गवर्नर साहब ने जवाब दिया,बड़ी खुशी की बात है कि तुम इतने योग्य हो गये हो।तुम्हारी तरक्की पर मैं खुश हूं।
किंतु योगदान करने से पहले मुझे कुछ समय दो ताकि मैं राज्यपाल पद से इस्तीफा दे दूं।
उसके बाद तुम कानूनी सलाहकार बन जाना।
बेटे ने पिता का मान रखते हुए कह दिया मैं वह पद स्वीकार नहीं करूंगा।
