सर्वेश तिवारी श्रीमुख : अयोध्या जी! “पिता का घर”’
अयोध्या जी!
तुलसी बाबा अयोध्या जी को ‘पिता का घर’ कहते थे। है भी! कोई संदेह नहीं! अयोध्याजी हमारे लिए हमारे ‘बाप का घर’ ही है। पर अभी अयोध्या जी का स्मरण होते ही एक अद्भुत ऊर्जा और आत्मविश्वास प्राप्त होता है। भरोसा होता है कि कुछ भी असम्भव नहीं…
सोच कर देखिये, दो शताब्दियों तक क्रूर आतंकी मुगलों का अधिपत्य, उसके बाद डेढ़ शताब्दी तक लुटेरे अंग्रेजों की गुलामी, और फिर स्वतन्त्रता के नाम पर फर्जी सेक्युलरिज्म का बंधन! इस लंबे कालखण्ड में यह सोचना कितना कठिन रहा होगा कि ‘दिन बदलेंगे..” कितना कठिन रहा होगा यह सोचना भी कि अयोध्या के माथे पर लगा कलंक धुलेगा… एक सामान्य व्यक्ति तो वर्ष दो वर्ष की कठिनाई से हार मान लेता है, यहाँ तो लगभग पाँच शताब्दियां अंधेरे में गुजर गयीं थीं।
ठीक से जगह याद नहीं आ रहा, पर जब बाबर ने मन्दिर तोड़ा तबसे अयोध्या के आसपास के असंख्य गाँवों के ठाकुरों ने यह प्रण लिया था कि जबतक पुनः मन्दिर नहीं बन जाता तबतक पगड़ी नहीं पहनेंगे। इस प्रण के साथ लगभग पच्चीस पीढियां निकल गईं। उस प्रण को ढोते ढोते क्या कभी उनका मन थका नहीं होगा? क्या कभी प्रण छोड़ने का मन नहीं किया होगा? क्या कभी आत्मविश्वास नहीं डगमगाया होगा? ऐसा बिल्कुल हुआ होगा और असंख्य बार हुआ होगा! पर पाँच सौ वर्षों के बाद ही सही, आखिर दिन बदले! अयोध्या के माथे पर लगा कलंक धुला, भारत का प्रण पूरा हुआ।
मेरे लिए अयोध्या इस भरोसे का प्रतीक है किअंधेरा कितना भी घना क्यों न हो, वह छंटता जरूर है। यदि राम के काज में इतनी देरी हो सकती है, हम सामान्य जन की बात ही क्या…
व्यक्तिगत या सामाजिक किसी भी स्तर पर यदि आत्मविश्वास डगमगाए तो एक बार अयोध्या की ओर देख लीजिये, साहस बढ़ जाएगा। यदि कोई भी मुद्दा सुलझता हुआ नहीं दिख रहा हो तो अयोध्या जी को प्रणाम कीजिये, और भरोसा रखिये कि धर्म की विजय होगी। इसे कोई रोक नहीं सकता…
अंधेरे का छँटना एक अवश्यम्भावी घटना है, बस हृदय में धर्म और प्रतीक्षा करने का साहस होना चाहिए।
एक बार और! यदि कोई और शूल लम्बे समय से हृदय में चुभ रहा हो तो स्वयं से पूछिए- “का चुपि साध रहे बलवाना?” करना तो तुम्हे ही है मित्र!
सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।