सत्या पाल : दादर की 18वीं शताब्दी की परंपरा को “जगन्नाथ महोत्सव” का स्वरूप देना उचित..

कोयला और ऊर्जा की नगरी कोरबा विविध ऐतिहासिक और पौराणिक,सांस्कृतिक महत्त्व के मामले में भी संपन्न है। यहां चौदहवीं शताब्दी का ऐतिहासिक शिव मंदिर है तो पौराणिक मां महिषासुर मर्दिनी का दरबार भी। बिना छत वाले मंदिर में पहाड़ों के ऊपर श्वेत ध्वज के नीचे माँ कोसगई दाई विराजमान है तो पर्वतवासिनी मॉं मड़वारानी की छत्रछाया बनी हुई है। 
मॉं सर्वमंगला देवी कोरबा जिलावासियों को अपना आशीर्वाद निरंतर दिए हुए हैं।
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ग्राम कनकी में भुईफोड़ शिवलिंग और चक्रेश्वर महादेव विराजमान हैं तो 14 वर्ष का वनवास के समय भगवान राम, माता सीता व भ्राता लक्ष्मण के यहां से गुजरने और ठहरने के प्रमाण स्वरूप मढ़ी हैं। शहर के मध्य सीतामढ़ी है जो मॉं सीता की मढ़िया के रूप में स्थापित बताई जाती है तो कोरबा राज परिवार द्वारा हसदेव नदी के किनारे निर्मित प्राचीन मनोकामना पूर्ति पंचपिंडी शिवलिंग भी है तो जिले के सीमांत में माँ मतीन दाई की महिमा है।


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इस तरह ऊर्जाधानी की प्राकृतिक वादियों में अनेकानेक धार्मिक और पौराणिक महत्व के दर्शनीय स्थल हैं जो आस्था का केंद्र बने हुए हैं। आस्था के केंद्रों में से एक बड़ी आस्था का केंद्र बिंदु है नगर निगम क्षेत्र का ग्राम दादरखुर्द, जहां भगवान महाप्रभु विराजमान हैं। यहां भगवान जगन्नाथ, भाई बलराम और सुभद्रा के साथ स्थापित हैं।

भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा आषाढ़ माह की द्वितीया तिथि को निकाली जाती है जिसे रथ जुतिया भी कहा जाता है। उड़ीसा प्रांत में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा देश-विदेश में प्रसिद्ध है तो कोरबा जिले के ग्राम दादर खुर्द की रथ यात्रा को भी प्रसिद्धि मिली है। यहां रथयात्रा का इतिहास 122 वर्ष पुराना है। उड़ीसा के पुरी की तर्ज पर लगातार 122 वर्षों से भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा यहां धूमधाम से निकाली जा रही।

 प्रशासन करे सहयोग तो सब सम्भव

समय गुजरने के साथ-साथ यात्रा का स्वरूप भी बदला है तो वहीं क्षेत्र का दायरा सिमटा है। महाप्रभु की ऐतिहासिक रथयात्रा को और भव्यता प्रदान करने की जरूरत महसूस होने लगी है। हाल ही में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने रामपुर विधानसभा प्रवास के दौरान भेंट मुलाकात में कनकेश्वर धाम को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की घोषणा की है। पाली के ऐतिहासिक शिव मंदिर में हर वर्ष महाशिवरात्रि के अवसर पर पाली महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है।



ऐसे में अब इस बात की भी चर्चा होने लगी है कि जिस तरह से सरकार धर्म, आस्था, संस्कृति, पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए कार्य कर रही है, उसी कड़ी में प्रशासनिक सहयोग से ग्राम दादरखुर्द के ऐतिहासिक रथयात्रा को जगन्नाथ महोत्सव का नाम और स्वरूप देना चाहिए।


 ग्रामवासियों का रहता है सहयोग
ग्रामवासियों के सहयोग से रथ यात्रा की परंपरा हर वर्ष निभाई जा रही है। इस ऐतिहासिक आयोजन को यदि महोत्सव का स्वरूप दे दिया जाए तो इसकी प्रसिद्धि के साथ-साथ कोरबा जिले की ख्याति और दूर-दूर तक फैलेगी। अभी ग्रामीणों के सहयोग और सीमित संसाधनों के मध्य यात्रा निकाली जा रही है। हालांकि तत्कालीन महापौर श्रीमती रेणु अग्रवाल ने रथयात्रा आयोजन के लिए प्रतिवर्ष 2 लाख की राशि नगर पालिक निगम से देने की घोषणा की थी। बाद में कोरोना काल व अन्य किसी कारण से इस राशि को घटाने की बात आई तो पुरजोर विरोध हुआ। वैसे महंगाई के दौर में आयोजन के लिए 2 लाख रुपये पर्याप्त नहीं है। जिला प्रशासन को इस ऐतिहासिक आयोजन के संबंध में शासन को अवगत कराते हुए संस्कृत विभाग के संज्ञान में लाकर जगन्नाथ रथ यात्रा को महोत्सव की तरह मनाने के लिए पहल करनी चाहिए। महाप्रभु के इस कार्य में सभी राजनीतिक दलों के लोगों को भी राजनीति से परे हटकर पहल करनी होगी ।

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