सुरेंद्र किशोर : आज तो प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवारों की बाढ़ !!!
सन 1996 में दरवाजे पर आये पी.एम.पद
के न्योते को ठुकरा दिया था वी.पी.सिंह ने।
सन 1996 में संयुक्त मोर्चा के शीर्ष नेता गण वी.पी.सिंह के ड्राइंग रूम में बैठे रह गये और ‘राजा साहब’ अपने घर के पिछले दरवाजे से निकल गये।
मोर्चा नेतागण उन्हें प्रधान मंत्री बनाना चाहते थे।
वी.पी.सिंह प्रधान मंत्री बनने को तैयार ही नहीं थे।
वी.पी.सिंह ने एच.डी.देवगौड़ा के नाम का सुझाव दिया और देवगौड़ा साहब पी.एम.बन गये।

इस देश में प्रधान मंत्री पद ठुकराने वाला किसी अन्य नेता का नाम आपको यदि मालूम हो तो जरूर मेरा ज्ञानवर्धन करें।
इस राजनीतिक घटनाक्रम की सत्यता की पुष्टि के लिए मैं दैनिक हिन्दुस्तान के संपादकीय को यहां उधृत कर रहा हूं।
उन दिनों संपादक थीं मृणाल पांडेय।
मेरी जानकारी के अनुसार मृणाल जी वी.पी.सिंह के प्रशंसकों में शामिल नहीं थीं।
उस संपादकीय का शीर्षक है–
‘किंग से किंगमेकर’
यानी, जिसे किंग बनाया जा रहा था,वह किंग मेकर बन गया।
संपादकीय में लिखा गया–,
‘‘इसमें दो राय नहीं कि केंद्र में श्री एच.डी.देवगौड़ा की सरकार बनवाने में पूर्व प्रधान मंत्री श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की अहम भूमिका रही।
असल में संयुक्त मोर्चा में शामिल अधिकांश राजनीतिक दल चाहते तो यह थे कि श्री वी पी ंिसंह ही केंद्र में मोर्चा सरकार की बागडोर संभालें।
परंतु श्री सिंह के राजी न होने और कर्नाटक के मुख्य मंत्री दवगौड़ा को अपना नेता चुनने की सलाह देकर वी.पी.सिंह ने इस बार किंग के बदले किंग मेकर की भूमिका निभाना ज्यादा अच्छा समझा।………।’’
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एक दफा बहुमत वाले दलों ने मिलकर ज्योति बसु को प्रधान मंत्री बनाने का फैसला किया था।ज्योति बसु इसके लिए तैयार भी थे।
किंतु माकपा के भीतर की लाॅबी ने उन्हें नहीं बनने दिया।
जो नम्बूदरीपाद आम तौर पर पाॅलिट ब्यूरो की बैठक में शामिल नहीं होते थे,वे भी उस बैठक में शामिल हो गये जो ज्योति बसु को रोकने के लिए बुलाई गयी थी।
माकपा का तर्क
था कि जब तक पूर्ण बहुमत न हो तब माकपा को सरकार में शामिल नहीं होना चाहिए।
बाद में ज्योति बसु ने कहा कि पार्टी का वह फैसला सही नहीं था।
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संकेत मिल रहे हैं कि आज ‘इंडी’ गठबंधन के इतने
अधिक नेता गण,जिनमें सुपात्र-अपात्र-कुपात्र सब शामिल हैं,प्रधान मंत्री पद के अघोषित उम्मीदवार बन गये हैं कि इंडी गठबंधन का कोई ठोस स्वरूप नहीं बन पा रहा है।
इस बीच भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों में मुकदमे झेल रहे नेताओं के प्राण टंगे हुए हैं।
क्योंकि वे जानते हैं कि यदि एक बार फिर मोदी सरकार बन गयी तो वे लंबे समय तक के लिए जेलों में होंगे।
क्योंकि सन 2024 से 2029 के बीच उनके खिलाफ वाले मुकदमे तार्किक परिणति तक पहुंच चुके होंगे।
यदि सरकार गैर भाजपा दलों की बनेगी तो उन मुकदमों को येन केन प्रकारेण रफा दफा करने की कोशिश वे करेंगे।
हालांकि उनमें से कई मुकदमे ऐसे स्टेज तक पहुंच चुके हैं कि अदालतेें शायद ही वापसी की अनुमति दे।
