देवांशु झा : विराट.. जैसे कुमार शानू किशोर कुमार अनुराधा पौडवाल लता मंगेशकर नहीं होतीं!
किसी भी खिलाड़ी, योद्धा के आकलन का क्या आधार है? हम उसके संपूर्ण जीवन संघर्ष को देखते हैं। एक योद्धा, एक खिलाड़ी जीवन भर लड़कर जो अर्जित करता है, वही उसकी कीर्ति का आधार है। अगर कोई बड़ा खिलाड़ी विश्वकप के एक जरूरी मैच में विफल हो गया तो हम उसे रगेद-रगेद कर गरियाते हुए, उपहास करते हुए सिद्ध करना चाहते हैं कि अरे वह तो फुद्दू है। अब तक तो उसने कुछ किया ही नहीं! विराट कोहली क्रिकेट के खेल का अप्रतिहत लड़ाका है। और मैं यह मानता हूॅं कि एक खिलाड़ी या योद्धा के लिए हर युद्ध समान है।
चार वर्ष में होने वाला विश्वकप बहुत महत्वपूर्ण है लेकिन उस विश्वकप के लिए हम उसके जीवन भर के पुरुषार्थ को मलिन करने का प्रयास क्यों करते हैं? बार-बार! पिछले पचासों मुकाबलों में बड़ी बड़ी पारियां खेलकर अपने बूते जीत दिलाने वाले बैट्समैन को भुला देते हैं। जैसे वे सारी भिड़ंत तो काल्पनिक रही हों!!
राणा सांगा अपने जीवन में सौ युद्ध लड़े। बाबर से एक युद्ध में वे दुर्भाग्य से पराजित हो गए तो क्या हम उन्हें पराजित योद्धा कहें? यहां यह ज्ञान लेकर न आना कि अरे किसको किस से कम्पेयर कर रहे हो। कम्पेयर नहीं कर रहा। सिर्फ उदाहरण दे रहा हूॅं।खिलाड़ी भी मैदान में अपनी सारी शक्ति युक्ति झोंकता है। हम दो क्षण में उसे भांड बिकाऊ कुछ भी कहने को अधिकृत हैं! हमारे पास न्याय का दंड है। हम न्यायाधीश हैं! एक दिवसीय क्रिकेट में विराट कोहली से बड़ा मैच विनर बैट्समैन कौन हुआ है? उसके कीर्तिमान आईसीसी के रिकार्ड बुक की शोभा नहीं बढ़ाते। वह क्रिकेट के तीनों फाॅरमैट का सधा हुआ मास्टर बल्लेबाज है। आपको जो खिलाड़ी निजी तौर पर अच्छा नहीं लगता– आप उसे हेठा सिद्ध करते रहें, यह तो कोई स्वस्थ आलोचनात्मक दृष्टिकोण नहीं।
विराट के करियर में तीन वर्ष का बुरा समय आया। तब भी 2019 के विश्वकप में वह काफी अच्छा परफार्म कर रहे थे। सेमीफाइनल में वह चूके। चूक गए तो उन्हें उतार कर गली का खिलाड़ी सिद्ध कर देंगे? दुरदुराने लगेंगे?
फिर कहता हूॅं, विश्वकप महत्वपूर्ण है। वहां सबसे बड़ी पारियां खेलना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। लेकिन किसी एक चूक से विराट जैसे बल्लेबाज की कीर्ति धूमिल नहीं हो जाती। इसी विश्वकप में उनका योगदान देख लीजिए। इन पांच मैचों में से तीन मैच में वह नहीं चलते तो पहुंच जाते सेमीफाइनल में? इतना बड़ा बल्लेबाज जो लगभग अचंभित करने वाली निरंतरता से खेलता रहा–उसे किसी के भी सामने खड़ा कर हेठा बताना निजी खुन्नस का हिस्सा हो सकता है, कोई महान विश्लेषण नहीं!
उसका पूरा करियर उठाकर देखिए। कितने मैच उसने अपने बूते जितवाए हैं। कितनी विकट परिस्थितियों में खूंटा गाड़कर खड़ा होता रहा है। बल्लेबाजी एक आर्ट है। साधना भी। अगर सचिन को लोग आज भी विश्व के सर्वकालिक पांच महानतम बल्लेबाजों में रखते हैं तो इसमें उनकी क्लासिक तकनीक, खेल का सौन्दर्य-बोध और पूर्णता से लेकर सुदीर्घ करियर में निरंतरता का भी बड़ा योगदान है। पिच पर कुदाल चलाने वाला बल्लेबाज सचिन और कोहली नहीं बन जाता। जैसे गोपालदास नीरज जयशंकर प्रसाद नहीं होते! जैसे कुमार शानू किशोर कुमार नहीं होते! जैसे अनुराधा पौडवाल और श्रेया घोषाल लता मंगेशकर नहीं होतीं!