सुरेंद्र किशोर : मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी के शासन काल का यह मुख्य अंतर

प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने सन 2011 में कह दिया था कि भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए मेरे पास कोई जादुई छड़ी नहीं है
पर,वर्तमान प्रधान मंत्री ने तो पहले से मौजूद जांच एजेंसियों को ही जादू की छड़ियों में परिवर्तित कर दिया।

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बड़े- बड़े भ्रष्टाचारी इन दिनों जेलों की शोभा बढ़ा रहे हैं।
ऐसे ‘‘जेल यात्रियों’’ की संख्या बढ़ने ही वाली है !!
अनेक भ्रष्टाचारीगण जमानत पर हैं।
मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी के शासन काल का यह मुख्य अंतर है।
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15 अगस्त, 2011 को तत्कालीन प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने लाल किले से कहा था कि ‘‘देश की तरक्की में भ्रष्टाचार सबसे बड़ी बाधा है और यह सभी के लिए गहरी चिंता का विषय है।
लेकिन भ्रष्टाचार से निपटने के लिए सरकार के पास कोई जादुई छड़ी नहीं है।’’
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दूसरी ओर, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त, 2014 को लाल किले से ही कहा कि
‘‘मैं न खाऊंगा और न खाने दूंगा।’’
इसी साल प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि
‘‘एक भी भ्रष्टाचारी नहीं बचना चाहिए चाहे वह कितना ही शक्तिशाली हो।बिना हिचक के सी.बी.आई.कार्रवाई करे।’’
उन्होंने यह भी कहा कि
‘‘भ्रष्टाचार लोकतंत्र और न्याय की राह में सबसे बड़ी बाधा है।’’
प्रधान मंत्री मोदी ने एक अन्य अवसर पर यह भी कहा था कि ‘‘बड़े -बड़े भ्रष्टाचारी मुझे जिन्दा नहीं छोड़ेंगे ,मुझे बर्बाद कर देंगे।
पर मैं उसके लिए भी तैयार हूं।’’

सन 2004 में जब कांग्रेस सत्ता में आई थी तो राहुल गांधी ने कहा था कि पिछली सरकार के सारे भ्रष्टाचारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी।
पर,कोई कार्रवाई हुई क्या ?
यदि नहीं हुई तो क्यों ?
सरकार के हाथ किसने रोके ?
दरअसल कांग्रेस की अघोषित नीति ने रोकी।
नीति यह कि ‘‘तुम हमें बचाओ,हम तुम्हें बचाएंगे।’’
यह परंपरा अब नहीं चल पा रही है।
पहले के ‘‘समझौता काल’’ में अटल सरकार ने अमेरिका में भी एक प्रतिपक्षी भारतीय हस्ती को 25 साल की सजा होने से बचा लिया।
फिर अटल सरकार के भ्रष्टाचारों पर मनमोहन सरकार कार्रवाई क्यों करती ?उपकार जो था !
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आज स्थिति यह है कि नरेंद्र मोदी सरकार की जांच एजेंसियां कुछ अधिक ही सक्रिय हैं।
कोर्ट की ओर से एजेंसियों के काम में कोई खास बाधा नहीं है।
कहा जा रहा है कि मोदी सरकार बदले की भावना से नेताओं को परेशान कर रही है ।पर सवाल है कि यह कैसे हो रहा है कि ‘‘नाहक परेशान करने’’ के बावजूद कोर्ट उनकी मदद नहीं कर रही है ?
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अब सवाल मनमोहन सिंह से है।
आपने सन 2011 में जिन भ्रष्टाचारियों की ओर इंगित किया था,क्या मोदी सरकार उन्हीं भ्रष्ट नेताओं,व्यापारियों और अफसरों के खिलाफ कार्रवाई कर रही है या उनके अलावा कहीं से भ्रष्टाचारियों का ‘आविष्कार’ किया है ?
यदि उन्हीें के खिलाफ एजेंसियां कार्रवाई कर रही है तो फिर यह आरोप क्यों लग रहा है कि बदले की भावना से काम कर रही है ?
मनमोहन जी भी कह रहे थे कि भ्रष्टाचार देश के विकास में बाधक है।प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने 1985 में ही कह दिया था कि हम सौ पैसे भेजते हैं और जनता तक उसमें से सिर्फ 15 पैसे ही पहुंचते हैं।विकास कैसे होता ?
विकास नहीं होने से और भ्रष्टाचार की सर्वत्र मौजूदगी से राष्ट्रद्रोहियों को सक्रिय होने में मदद मिलती है।आज घुसपैठिये
सीमा से लेकर भीतर तक 10-12 हजार रुपए घूस देकर भारत के मतदाता बन जा रहे हैं।सैकड़ों घुसपैठिए रोज घुस रहे हैं,वोट बैंक केे सौदागर नेता उन्हें मदद कर रहे हैं।
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मनमोहन सरकार के कार्यकाल की ही बात हैं
17 जनवरी 2011 को देश के 14 बड़े उद्योगपतियों ने खुला पत्र लिखा था।
खुले पत्र में उन लोगों ने एक के बाद एक खुलते घोटालों और इसके कारण प्रशासनिक खामियों पर चिंता व्यक्त की थी।उन लोगों ने लिखा था कि भ्रष्टाचार जैसे ज्वलंत मुद्दों से तुरंत निपटने की जरूरत है।’’
जिन उद्योगपतियों ने खुला पत्र लिखा ,उनमंें अजीम प्रेमजी,केशव महिंद्रा,दीपक पारीख,
और जमशेद गोदरेज शामिल थे।
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आज के भाजपा विरोधी दलों का मुख्य आरोप यही है कि जांच एजेसियां सिर्फ भाजपा विरोधी दलों के नेताओं के खिलाफ ही कार्रवाई क्यों करती है ?
छिटपुट कार्रवाई तो भाजपा के नेताओं के खिलाफ भी हो ही रही हैं।
यदि प्रतिपक्षी दलों के पास ऐसी कोई सूचना व सबूत है कि कुछ भाजपा नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप मौजूद है तो आप डा.सुब्रहमण्यन स्वामी से मदद लीजिए।
उन्होंने जिस नियम के तहत सरकार से कोई मदद लिए बिना जय लालिता,ए.राजा और नेशनल हेराल्ड मामले मेें केस किया ,वही तरीका आप भी अपनाइए।आपको कोई नहीं रोक सकेगा जिस तरह अदमनीय स्वामी को कोई नहीं रोक सका।
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नरेंद्र मोदी को चाहिए कि वे सिंगापुर के प्रधान मंत्री ली कुआन (1959-1990)के भ्रष्टाचार विरोधी उपायों का भी अध्ययन कर लें।
यदि पहले ही अध्ययन कर लिए हों,तो बहुत अच्छी बात है।
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पर, इस संदर्भ में इससे पहले यानी आजादी से अब तक की कहानी जान लेना मौजूं होगा।
भ्रष्टाचार के खिलाफ बातें तो होती रहीं,पर साथ ही यह महारोग बढ़ता चला गया।अब तो सर्वव्यापी हो चुका है।अत्यंत थोड़े से अपवादों को छोड़कर सरकार के किसी आॅफिस में घूस के बिना कोई काम नहीं हो रहा है।
कुछ उक्तियंा पढ़िए
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सन 1963 में ही तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष डी.संजीवैया को इन्दौर के अपने भाषण में यह कहना पड़ा कि ‘‘वे कांग्रेसी जो 1947 में भिखारी थे, वे आज करोड़पति बन बैठे।
गुस्से में बोलते हुए कांग्रेस अध्यक्ष ने यह भी कहा था कि ‘‘झोपड़ियों का स्थान शाही महलों ने और कैदखानों का स्थान कारखानों ने ले लिया है।’’
1971 के बाद तो लूट की गति तेज हो गयी।अपवादों को छोड़कर सरकारों में भ्रष्टाचार ने संस्थागत रूप ले लिया।
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उससे पहले एक केंद्रीय मंत्री ने प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू से कहा था कि सरकार में भ्रष्टाचार बढ़ रहा है।इसकी निगरानी के लिए कोई छतरी संगठन बना दीजिए।जवाहरलाल का जवाब था-उससे शासन में पस्तहिम्मती आएगी।
सिंगापुर के प्रधान मंत्री ने भी नेहरू को भ्रष्टाचार विरोधी उपायों के बारे में सलाह देने की कोशिश की थी।पर,नेहरू ने उन पर गौर नहीं किया।
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लगता है कि कांग्रेस शुरू से नोबल विजेता अभिजीत बनर्जी सदृश्य लोगों की राह पर चल रही थी।
अभिजीत बनर्जी इन दिनों राहुल गांधी के अघोषित सलाहकार है।न्याय योजना उन्हीं की देन है।
‘‘चाहे यह भ्रष्टाचार का विरोध हो या भ्रष्ट के रूप में देखे जाने का भय,
शायद भ्रष्टाचार अर्थ -व्यवस्था के पहियों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण था, इसे काट दिया गया है।
मेरे कई व्यापारिक मित्र मुझे बताते हैं निर्णय लेेने की गति धीमी हो गई है।
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–नोबेल विजेता अभिजीत बनर्जी,
हिन्दुस्तान और हिन्दुस्तान टाइम्स
23 अक्तूबर 2019
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भ्रष्टाचार पर बड़े नेताओं आदि की उक्तियां
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भ्रष्टाचार को लोकतंत्र की अपरिहार्य उपज नहीं बनने दिया जाना चाहिए
–महात्मा गांधी
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भ्रष्टाचारियों को नजदीक के लैंप पोस्ट से लटका दिया जाना चाहिए
–प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू
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भ्रष्टाचार तो विश्वव्यापी फेनोमेना है,सिर्फ भारत में ही नहीं–
प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी
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सत्ता के दलालों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए
–प्रधान मंत्री राजीव गांधी
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मुल्क के शक्तिशाली लोग इस देश को बेच कर खा रहे हैं ।
–मधु लिमये–(1988)
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इस देश की पूरी व्यवस्था सड़ चुकी है–मनमोहन सिंह-(1998)
1998 में मनमोहन सिंह प्रतिपक्ष में थे।
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भगवान भी इस देश को नहीं बचा सकता।
–सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूत्र्ति बी.एन.अग्रवाल–
5 अगस्त ,2006
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भ्रष्ट लोगों से छुटकारा पाने का एकमात्र रास्ता यही है कि कुछ लोगों को लैंप पोस्ट से लटका दिया जाए।
–सुप्रीम कोर्ट-7 मार्च 2007
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भ्रष्टाचार को साधारण अपराध के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए।
-दिल्ली हाईकोर्ट –9 नवंबर 2007
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भ्रष्टाचार में जोखिम कम और लाभ ज्यादा है।
-एन.सी.सक्सेना,पूर्व सचिव ,केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय
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सर्वोच्च न्यायलय ने कहा कि ‘‘इस देश में भ्रष्टाचार विरोधी कानून विफल साबित हो रहा है।
भारत की सर्वोच्च अदालत ने ग्रेट ब्रिटेन के प्रधान मंत्री राॅबर्ट वालपोल(1676-1745) की पंक्तियां दुहराते हुए तब यह भी कहा था कि
‘‘हर व्यक्ति बिकाऊ है, इसे भले ही हर व्यक्ति पर लागू नहीं किया जा सकता।
लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि यह सच्चाई से बहुत अधिक दूर भी नहीं है।’’
—न्यायमूर्ति दोराई स्वामी और न्यायमूर्ति अरिजित पसायन
सुप्रीम कोर्ट –16 नवंबर, 2003
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गत 24 फरवरी, 23 को भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि
‘‘आम आदमी भ्रष्टाचार की गिरफ्त में है।
हर स्तर पर जवाबदेही तय करने की जरूरत है।’’
अदालत ने यह भी कहा कि
‘‘किसी भी सरकारी दफ्तर में जाएं तो आप बिना डरे बाहर नहीं आएंगे।’’
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इसके अलावा भी अनेक उक्तियां आपको मिलेंगी।
पर,भ्रष्टाचार के राक्षस से निर्णायक लड़ाई सन 2014 से पहले कभी नहीं हुई।
वोट बैंक के दायरे के लोगों को छोड़कर आम जन में भ्रष्टों के खिलाफ भारी गुस्सा है।
देखना है कि नरेंद्र मोदी आमजन की आशाओं को किस हद तक पूरा करते हैं!

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