बालको चिमनी दुर्घटना : 14वीं बरसी.. चिमनी तले अंधेरा.. प्रबंधन या श्रमिक संगठनों से कौन करेगा पहल..!

कहा जाता है गगनचुंबी इमारतों का कंगूरा ही प्रशंसा पाया करता है लेकिन अपवाद स्वरूप ही ऐसा कभी हो पाता है।

चमक-दमक, सुंदरता के कई हाथ नीचे गड़ा होता है अमूल्य बलिदान जिस पर गढ़ी जाती हैं समस्त खूबसूरती व मूरतें।

वो बलिदान जो सदाचमक और प्रशंसा से वंचित होकर, आजीवन अंधेरी मौत की बांहों में जाती है और धीरे-धीरे चर्चाओं में भी शून्य हो जाती है।

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कुछ ऐसा ही अन्याय हो रहा है बालको चिमनी दुर्घटना के मृत श्रमवीरों के साथ।

बालको दुर्घटना की 14वीं बरसी पर मृत अभागे मजदूरों की स्मृति में बालको प्रबंधन के द्वारा या किसी श्रमिक क्या एक स्मारक निर्माण की घोषणा अब तक कर नहीं दिया जाना चाहिए था..?

बालको प्रबंधन के द्वारा श्रमवीरों के साथ अपने बेहतर तालमेल की बात हमेशा की जाती है। श्रमवीरों के साथ अपने बेहतर तालमेल को बनाए रखने के लिए बालको प्रबंधन के द्वारा लाखों रुपए खर्च करके समय-समय पर अनेक आयोजन किए जाने के संबंध में अनेक प्रेस नोट जारी किए जाते हैं।

कर्मचारियों के साथ कभी विश्व स्वास्थ्य दिवस कभी राखी तो कभी फोटोग्राफी सहित विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन करने वाले बालको प्रबंधन ने कभी स्मारक बनाने दिशा में सोचा भी है..?

क्या श्रमवीरों के साथ अपने संबंधों को और प्रगाढ़ करने की दिशा में स्वयं पहल करते हुए चिमनी दुर्घटना के मृत श्रमवीरों की स्मृति में एक स्मारक बनाने की घोषणा इस अवसर पर बालको प्रबंधन को नहीं करना चाहिए..?

बालको प्रबंधन की बात अगर छोड़ भी दिया जाए तो श्रमवीरों के नाम पर अनेक स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर के संगठन सक्रिय हैं वे क्या 14वीं बरसी पर मृत अभागे श्रमिकों के योगदान को जीवंत बनाए रखने के लिए स्मारक बनाने की दिशा में किसी तरह की सार्थक पहल करेंगे?

तत्कालीन दुर्घटना के बाद जीवन की तलाश।

श्रीविश्वकर्मा पूजा सहित अनेक आयोजनों में लाखों ख़र्च करते संगठन क्या स्मारक बनाने की घोषणा करेंगे, जिससे मृत श्रमवीरों की स्मृति को चिरस्थायी स्वरूप मिले और विभिन्न स्थानों पर श्रद्धांजलि अर्पित करने की जगह एक ही स्थान पर आयोजन हो।

23 सितंबर 2009 को बालको में निर्माणाधीन चिमनी के गिर जाने के कारण अभागे श्रमिकों की दर्दनाक मौत हुई थी । उस दिन से 23 सितंबर का दिन मजदूरो के परिजनों के साथ कोरबा के इतिहास में एक काले धब्बे के तौर पर जाना जाता है। समूचे जिलेवासियों के लिए दुखदायी दिन होता है। दुर्घटना बहुत ही दर्दनाक थी। इसे याद कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।

बालको की चिमनी गिरने की दिल दहला देने वाली घटना आज भी यहां के लोगों की आंखों में जिंदा है। इस दुर्घटना के बाद उस समय प्लांट में चारों ओर सिसकियों, आहों, कराहों की ही गूंज सुनाई दे रही थी।

तब पदचापों के नीचे धड़कनों की आस।

23 सितंबर की शाम चिमनी ने तेज धमाके की आवाज के साथ गिरकर अभागे श्रमवीरों को को काल के क्रूर पंजो में जकड़ लिया था।

इस दर्दनाक दुर्घटना ने श्रमिक जगत को झकझोंर कर रख दिया था। घटना के बाद मृत श्रमवीरों के आश्रितों के लिए अनेक प्रकार की गगनभेदी घोषणाएं की गई…ये घोषणाएं कितनी सार्थक सिद्ध हुई..?


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