बालको चिमनी दुर्घटना.. अंधेरे को चीरती सन्नाटे की झन्नाटेदार गूंज…? जिंदाबाद-जिंदाबाद…!

कोरबा। सितंबर का महीना सामने आते ही सितंबर में बरसने वाला पानी अगस्त में रक्षाबंधन के पर्व पर ही 23 सितंबर 2009 की  बालको चिमनी दुर्घटना को याद कर उन बहनों की आंखों से बरस जाता होगा जिन्होंने अपना रक्षक अपना भाई-भईया सदा के लिए काल बने इस काले दिवस पर खो दिया।


“बहना ने भाई की कलाई पे प्यार बांधा है..” का लोकप्रिय-कर्णप्रिय गीत अंधेरे को चीरने का असफल प्रयास कर रही सन्नाटे की झन्नाटेदार गूंज सा लगता होगा।

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नंदी प्रतीक्षा

सन्नाटे की झन्नाटेदार गूंज न्याय के पथ पर 14 बरसों की प्रतीक्षा… ऐसी प्रतीक्षा जो सिर्फ महादेव के अनन्य भक्त नंदी ही करते हैं कि कब भोले बाहर निकलेंगे और भोर होने का संदेश देंगे।

नंदी अनंत प्रतीक्षा के प्रतीक है, क्योंकि भारतीय न्याय संस्कृति में प्रतीक्षा को सर्वोच्च गुण माना जाता है। ऐसी ही आस से भरी न्याय की प्रतीक्षा मृतकों के परिजनों को भी है।

14 बरसों के बाद और कितने बरस…??

हिंदू संस्कृति में मृतकों की आत्मा को 10शगात्र, 13रहवीं के बाद पवित्र भाव से विदाई दी जाती है। अन्य पारंपरिक विधानों में 40वां मनाने के बाद विदाई दी जाती है।


बालको चिमनी दुर्घटना को 13 वर्ष हो गए हैं और 23 सितंबर 2023 को 14 वर्ष पूर्ण हो जाएंगे।

13रहवीं के 13 बरस बीत चुके हैं और 23 सितंबर 2023 को 14 बरस पूरे हो जाएंगे..

तो क्या अब 40वें के 40 बरस के बाद न्याय मिलेगा?

40 बरस के बाद न्याय पाने वाले न कोई परिजन रहेंगे और न सजा पाने वाले में किसी का कोई अस्तित्व रहेगा..!?


छत्तीसगढ़ के इतिहास की इतनी भीषण त्रासदी की याद अब भी जिलेवासियों के मानस पटल पर एक बुरे सपने की भांति अंकित है और दियें-मोमबत्तियां जलाकर प्रतिवर्ष अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते रहें हैं और नंदी की तरह प्रतीक्षा में हैं कि कब न्याय मिलेगा?


यह घटना अपने पीछे कई सुलगते हुए यक्ष प्रश्न आज भी खड़े कर रहा है…

★ दुर्घटना में मृत लोगों के परिजनों को नौकरी देने की बात सामने आई थी.. कितने लोगों को नौकरी-रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए गए?

★ 34 महीने के बाद जांच रिपोर्ट प्रस्तुत किया गया था लेकिन अब तक जांच रिपोर्ट पर कार्यवाही की गई है, इसकी रिपोर्ट क्या सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिए?


सबसे अधिक पीड़ा उन लोगों की है जिन्होंने अपने परिवार के सहारे को खोया है। वो सहारे जो बच्चों की गोद थे, वो सहारे जो अपनी अर्धांग्नी की मांग के सिंदूर थे, वो सहारे जो बूढ़े मां-बाप की गोद के लाल थे।


श्रमिक नेताओं से आस..

बड़े बड़े आकाश की ऊंचाइयों तक अपना नाम पहुंचा चुके अनेक श्रमिक संगठन यहां अभूतपूर्व रूप से सक्रिय हैं।

23 सितंबर को काले दिवस पर बस एक विश्वास संभवतः यही आस मृत्यु के आगोश में खो चुके श्रमिकों की आत्मा की इन श्रमिक संगठनों से होगी कि हमने इनके लिए भूखे पेट रहकर प्यासे गले से जिंदाबाद-जिंदाबाद के नारों से आसमान का सीना चीर दिया था.. उनमें से कितने नेताओं के हाथ हमारे श्रद्धांजलि अर्पित करने दिया जला पाएंगे..न्याय की लड़ाई लड़ पाएंगे??


नेता जो वोट मांगने पुकार लगाते हमारी चौखट पर हाथ जोड़े खड़े रहते थे उनमें कितने नेताओं के हाथ हमें और हमारे परिजनों को न्याय दिलाने के लिए गुहार लगाएंगे..?


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★  “हसदेव बचाओ” अभियान से नई राजनीतिक पारी की शुरुआत करने का दम दिखाएंगे अमित जोगी..?
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★…तो सफलता की ग्यारंटी 200% बढ़ जाती है।

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