सुरेंद्र किशोर : सुशासन के लिए के.के.पाठक जैसे आई.ए.एस. अफसरों का समर्थन आवश्यक
जनता दल यू ने आई.ए.एस.अफसर के.के.पाठक का पक्ष लेकर अच्छा काम किया है।
इससे जदयू की छवि बेहतर हुई है।
अच्छी मंशा वाले आम लोगों को भी राहत मिली है।
मैं दशकों से बिहार की राजनीतिक कार्यपालिका और प्रशासनिक कार्यपालिका को दूर और करीब से देखता रहा हूं।
के.के. पाठक जैसे अफसर अब विरल हैं।
उनकी जुबान थोड़ी कड़ी है, किंतु वे काम के पक्के हैं।
कहानी तब की है जब पाठक जी एक अनुमंडल के एस.डी.ओ.थे।
उन्होंने एक सत्ताधारी नेता के पुश्तैनी घर से अतिक्रमण हटाने के लिए निशान लगवा दिया था।
स्वाभाविक है कि नेता जी तब थोड़ा नाराज हुए।
पर,वही नेता जी जब और ऊंचे पद पर पहुंचे तो उन्होंने के.के.पाठक को वहां -वहां तैनात कराया जहां- जहां भ्रष्टाचार और काहिली के खिलाफ कठोर कार्रवाई जरूरत थी।
क्योंकि नेता जी भी चाहते रहे कि बिहार की हालत सुधरे।
–ये भी पढ़ें…
मेरा आकलन है कि सुशासन के लिए बिहार को पाठक जैसे एक दर्जन आई.ए.एस.अफसरों की जरूरत है।
क्योंकि राज्य की शासन व्यवस्था भ्रष्टाचार और काहिली के कारण पूरी तरह लगभग सड़ चुकी है।अपवादों की बात और है।
आज जिन्हें भी सरकारी दफ्तरों से पाला पड़ता है,वे क्षुब्ध होकर ही लौटते हैं।बाकी बातें सब जानते हैं।
इसे सड़ाने में थोड़ा-बहुत सभी संबंधित पक्षों का हाथ रहा है।
पर,सवाल है कि पाठक जैसे अफसर हैं कितने और कहां मिलेंगे ?
यहां तो पूरे कुएं में भांग पड़ी हुई है।
अपवादों को छोड़कर ‘‘स्टील फ्रेम’’ में भी जंग लग चुका है।अधिकतर नेतागण क्या चाहते हैं,यह किससे छिपा हुआ है ?
ठीक ही कहा गया है–
कलियुग बैठा मार कुंडली,जाऊं तो कहां जाऊं,
अब हर घर में रावण बैठा,इतने राम कहां से लाऊं?