“नमामि हसदेव” भाग – 07 : संस्कृति-प्रकृति के रक्षक PM मोदी से पीड़ित मां के यक्ष प्रश्न.. बालको प्रबंधन दे रहा धीमा जहर..PM मोदी 07 जुलाई को छत्तीसगढ़ की धरा पर…
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 7 जुलाई को छत्तीसगढ़ आगमन पर बालको प्रबंधन के द्वारा लगातार दिए दर्द से कराहती मुझ अभागिन का दर्द सुनेंगे..?
ऊर्जा नगरी के नाम से प्रसिद्ध कोरबा शहर के कथित ऊर्जावान मुर्दों में भागीरथी तलाश रही मैं “हसदेव’ नदी आज राष्ट्र की संस्कृति-प्रकृति के रक्षक माननीय प्रधानमंत्री आपके छत्तीसगढ़ की हरित धरा पर 07 जुलाई को आपके होने वाले शुभ आगमन पर आपका अभिनंदन कर आपसे अनुरोध करते हुए न्याय की गुहार लगा रही हूं।
माननीय प्रधानमंत्री जी कोरबा जिले से होकर प्रवाहित होती मैं “हसदेव”.. जीवनदायिनी-जीवनधारा के नाम से मुझे कागजों पर सुशोभित किया जाता है लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। मैं आज मौत की धारा बनकर अपने ऊपर आश्रित बच्चों की आयु कम कर रही हूं, जलजीवों को नष्ट कर रही हूं।
बच्चा जब गोद में मल त्याग करता है तो भोजन करती मां भोजन छोड़कर बच्चे को पहले साफ करती है और फिर भोजन करने बैठ जाती है। मां अपने शिशु की गंदगी से पीड़ित-परेशान नहीं होती लेकिन शिशु के स्थान पर कोई बड़ा समझदार नियमों को जानकर भोजन कर रही मुझ जैसी मां की थाली में जानबूझकर उद्योग के विषैले अपशिष्टों को लगातार कानून को समझने के बाद भी डालता रहे तो ऐसे में में लाचार मां अपनी पीड़ा किससे जाकर कहेगी..! कुछ ऐसा ही मेरे साथ हो रहा है। जानबूझकर मुझे विषैले प्रवाह से दूषित किया जा रहा है और सक्षम पर्यावरण विभाग कुछ नहीं कर रहा है।
क्या आप अपने केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव के माध्यम से इस पर ब्रेक लगवाएंगे?
देश की संस्कृति-प्रकृति के रक्षक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मैं कोरबा जिले से होकर कभी निर्मल-स्वस्थ होकर बहने वाली जीवनदायिनी-जीवनधारा हसदेव आपसे गुहार लगा रही हूं।
भारतीय राजनीति में जन सरोकारों प्रकृति से जुड़ी योजनाओं से जन-जन को जोड़ने के लिए आपके नेतृत्व में अनेक ऐतिहासिक क्रांतिकारी कदम उठाए गए हैं।
अमृत काल में जल संरक्षण की दिशा में में लोगों को जोड़ने के लिए प्रत्येक जिले में 75 अमृतसर सरोवरों के नाम से राष्ट्रीय स्तर पर जल संरक्षण के लिए प्रयास किया गया है।
जल संरक्षण की इस कड़ी की शुरुआत में “नमामि गंगे” एक राष्ट्रीय स्तर की वृहद परियोजना है। “नमामि गंगे” से जुड़ी संस्कृति की बातें अपने भाषणों, लेखों में आप अक्सर करते हैं।
क्या मेरे और मेरी तरह पीड़ित अन्य माताओं के उद्धार के लिए कोई योजना अलग से बनेगी?
क्या “नमामि गंगे” अर्थात गंगा का पानी ही पानी है और देश के अन्य जलस्त्रोतों की कोई कहानी नहीं है?
भारतीय संस्कृति में वैदिक मंत्रों के उच्चारण के बीच जब भी कहीं का भी जल हाथ में लिया जाता है तो उसे मां गंगा का स्वरूप मानकर संकल्प लिया जाता है। नदी, नाले, तालाब सभी मां गंगा का ही स्वरूप है ऐसा माना जाता है।
… लेकिन छत्तीसगढ़ जैसे हरित प्रदेश में जल की महिमा का पतन हो रहा है और उसके मुख्य कारण औद्योगिक प्रतिष्ठान हैं। निजी संस्थान खुलकर, खुलेआम स्थानीय शासन, प्रशासन, पर्यावरण विभाग को ठेंगा दिखाते हुए आंखों में आंखें डाल कर मेरे पीने योग्य जल को खुलेआम विषैले अपशिष्टों से लगातार जहरीला कर रहे हैं।
वेदों, शास्त्रों में समस्त प्राणियों की पालनकर्ता नदी, नाले, तालाबों को मां की गौरवमयी उपाधि दी गई है। इसी सम्मान की परंपरा का निर्वाह करते पुराने बुजुर्ग आज भी स्नान करने के लिए सीधे पैर को पानी में नहीं रखते बल्कि हाथों में लेकर पहले सिर-माथे पर लगाकर क्षमा याचना करते हैं कि “हे मां तुझ पर पैर रख रहा हूं क्षमा करना, अपने आशीष से सदा हमारे जीवन को शीतलता प्रदान करना।”…लेकिन आज गंदगी हम पर डालकर अपनी समृद्धि के द्वार खोले जा रहे हैं और हमें जीवनधारा, जीवनदायिनी की कागजी उपाधि देनें वाले हमें बचाने के लिए जल-जीव संरक्षण का ढोल पीटने पीटने करने वाले भी न जाने कहां खो गए हैं!! यह अवश्य है कि जब कोई दिवस आता है यदा कदा अपनी झलक प्रेस विज्ञप्तियों में दिखा जाते हैं।
ये हैं मेरी बर्बादी के कारक..
न्याय दिलाएंगे आप…?
मैं हसदेव और बालको का बहुत पुराना नाता रहा है। मेरे जल ने ही बालको की समृद्धि को जन्म दिया लेकिन आज उसके कारिंदों ने मेरी बहन मेरी सहायक नदी केसला नदी (डेंगुर नाला) को माध्यम बनाकर सिसकियों के मध्य जीने को मुझे विवश कर दिया है।
आपके कार्यकाल में देश की सांस्कृतिक विरासत को बड़े जतन से सहेजा जा रहा है। संस्कृति-सभ्यताएं हमारे तटों पर ही जन्म लेती हैं और हमारा अस्तित्व मिटने पर ये भी नष्ट हो जाती हैं।
अपनी बहन केसला नदी या कहें डेंगुर नाला के साथ ही कोरबा शहर के एक बड़े हिस्से की जनसंख्या को अकाल मौत की तरफ धकेलती हुई मैं आज आपसे अपने दुर्भाग्य की कथा कहने बैठी हूं। कभी मैं भी बल खाती, इठलाती चलती थी, मेरे भी पास लोग आते, लेकिन अब मैं कोमा में हूं, उन्हीं लोगों के कारण जिनकी समृद्धि के कारण हम हैं।
मैं आज सिसक रही हूं क्योंकि मेरे प्रदूषण का स्तर खतरनाक तरीके से बढ़ गया है। मेरी गोद में खेल रही मछलियों समेत सभी जल-जीवों का अस्तित्व संकट में है।
मैं भी कभी लोगों के लिए जीवनदायिनी सिद्ध हुआ करती थी। पशु पक्षियों की टोलियां मेरे जल को पीकर तृप्त हो जाते थे। लोग मुझमें स्नान कर सूर्यदेव को अर्द्ध अर्पित कर दिन का आरंभ करते थे। सबके लिए मैं वरदान थी लेकिन बालको प्लांट द्वारा मेरी सहायिका नदी केसला(डेंगुर नाला) में लालघाट की ओर से बहाए जा रहे ऑयल युक्त विषैले तत्वों के कारण मेरी निर्मल जलधारा में मिलकर लोगों के शरीर में आज विषैली होकर नसों में बसकर लोगों के जीवन को श्रापित कर रही हूं।
लालघाट की सीमा को छूते ही मेरी सहायिका नदी केसला(डेंगुर नाला) बालको द्वारा प्रवाहित किए जा रहे विषैले जल प्रवाह के कोमा की स्थिति में पहुंचने लगती है, तब उसके साथ ही मेरा मन भी अशांत हो उठता है कि जो मुझे मां कहकर सम्मान देतें है, उनके शरीर में निगम के नल कनेक्शन के द्वारा पहुंचकर अपने बच्चों के स्वस्थ शरीर को रोगों से भर देने वाली हूं।
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मैं विषैली हो रही हूं, मेरी तलहटी में राख जमने लगा है, इतनी कालिमा भरा कलंक भला कोई अपनी मां को कैसे कर सकता है, सोचकर मन दहल जाता है कि मेरे कारण ही बालको फ़ला फूला है लेकिन आज मुझे ही बर्बाद करने में लगा हुआ है, जिसने लाखों लोगों की जीवनचर्या को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से लाभांवित किया है।
इससे कैंसर, विकलांगता, ब्लड प्रेशर, त्वचा रोग और फेफड़े की बीमारियों को बढ़ावा ही मिल रहा है।
कोरबा का प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का क्षेत्रीय कार्यालय भी मान चुका रहा है कि मुझमें लालघाट एवं चेकपोस्ट बस्ती के समीप के नाले के माध्यम से ऑयलयुक्त काला दूषित जल व्यापक मात्रा में प्रवाहित किया जाता रहा है, तब धारा – 33(क) के तहत नोटिस जारी करते हुए 03 दिनों में मेसर्स भारत एल्युमिनियम कंपनी लिमिटेड से स्पष्टीकरण मांगा था। इन्हीं व्यथाओं को लेकर, स्वास्थ्य को लेकर हाई कोर्ट में याचिका भी लगी थी।
छत्तीसगढ़ की हरित धरा पर आपका शुभ-मंगल आगमन 7JULY को हो रहा है। समय निकालकर कोई रास्ता हमारे उद्धार के लिए भी निकालिएगा।
भूजलस्तर हो रहा है कम
तलहटी में नीचे राख जम जाने के कारण हमारी जलभराव की क्षमता भी कम हो रही है और यही कारण है कि शहर का भूजलस्तर प्रतिवर्ष नीचे जा रहा है।
भारतवर्ष की सांस्कृतिक धरोहरों, संस्कृति को सहेजने वाले भारत के मेरे प्रिय लाल आशा की अंतिम कड़ी के रूप में मेरा विश्वास है कि मेरी व्यथा भरी गुहार मुझे और हम पर पलने वालों की पुकार भारत के इतिहास के सबसे अधिक मजबूत-जागरूक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अवश्य सुनेंगे।
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