प्रधानमंत्री हो तो गलती से भी.. जो अपने एक एक दुश्मन को याद रखता है और बदले लेता है…

पहले शिव सेना अब NCP भी..
मोदीजी किसी को नहीं छोड़ते।
कहते हैं कर्म जरूर लौटता है आज शरद पवार के साथ वही हुआ।

झूठ बोलना और राजनीति करना दो अलग अलग बातें होती हैं।

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शरद पवार के घर मोदी जी हमेशा से जाते रहे, बारामती में उनके बुलाने पर प्रधानमंत्री रहते हुए सभा की। सहकारिता आंदोलन के मुखिया के तौर पर उनके उपलब्धि को स्वीकार करके उन्हें पद्मविभूषण दिया।

महाराष्ट्र में उद्धव के द्वारा धोखा दिए जाने के बाद प्रधानमंत्री ने शरद पवार से सहयोग माँगा। शरद पवार को मना कर देना चाहिए था लेकिन इतने बड़े आदमी के घर पर बैठकर शरद पवार ने झूठा वचन दे दिया। उस वचन के आधार पर प्रधानमंत्री ने देवेंद्र फड़नवीस को मुख्यमंत्री की शपथ लेने के लिए अजीत पवार के साथ भेज दिया और स्वयं की तरफ़ से सरकार बनने पर बधाई भी दे दी। लेकिन एक दिन के बाद शरद पवार का मन बदल गया, उन्हें लगा की भाजपा के साथ सत्ता लेने पर उन्हें वह फ़्री हैंड नहीं मिलेगा जो शिवसेना के साथ मिलेगा सो उद्धव से बातचीत कर अपने वादे से पलट गए।

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे बड़े व्यक्ति के सामने किया वादा केवल दो दिन में बिना कारण बताए तोड़ दिया। यदि झूठ बोलने को राजनीति कहते हैं तो यह राजनीति नहीं है बल्कि अपना कब्र खोदना और सदा सदा के लिए अपनी क्रेडिबिलिटी समाप्त करना है। प्रधानमंत्री ने तभी से इनको टार्गेट पर लिया हुआ है। एक के बाद एक इनके दोनों हाथ नवाब मलिक और अनिल देशमुख को जेल भेज दिया गया। इनके परिवार के दोनों उत्तराधिकारियों पर केंद्रिय एजेंसियाँ चढ़ी बैठी हैं।

हैरान परेशान शरद पवार दिल्ली तीन चक्कर लगा चुके हैं पर प्रधानमंत्री ने कोई भाव नहीं दिया। जो प्रधानमंत्री पैर छूते थे वह उनको अपने ऑफ़िस में नहीं घुसने दे रहे। विपक्ष द्वारा राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया गया पर…, हिम्मत नहीं हो रही है किसी और प्रकार से सामना करने की। अभी तक राज्य की एजेंसियाँ साथ में थीं, एक बचाव का रास्ता था। शरद पवार को यह नहीं भूलना चाहिए था की ख़ासकर उस व्यक्ति से वादा करके अकारण नहीं मुकरना चाहिए जो अपने एक एक दुश्मन को याद रखता है और बदले लेता है।

यदि ऐसा व्यक्ति भारत का प्रधानमंत्री हो तो गलती से भी यह सब नही करना चाहिए। सुनने में आ रहा है की अन्य एजेंसियों के साथ ही साथ इनकम टैक्स विभाग भी इनके परिवार तक पहुँचने वाला है। इनके सहकारिता के रैकेट को तोड़ने के लिए पहले ही अमित शाह के नेतृत्व में सहकारिता मंत्रालय बनाया जा चुका है। शिंदे का मुख्यमंत्री बनना जितना बड़ा सेटबैक उद्धव के लिए है, उससे बड़ा सेटबैक पवार के लिए है। मराठी कुणबियों की राजनीति करके अपना स्थान सुरक्षित करने वाले शरद पवार किस प्रकार अपने दम पर मुख्यमंत्री बने कुनबी मराठी एकनाथ शिंदे का विरोध करेंगे??
शरद पवार के परिवार पर एक वर्ष के भीतर बड़े संकट के बादल मंडराने वाले हैं। पवार को भी यह अंदाज़ा है पर उनका दुर्भाग्य यह है की अब उनके पास इसका उपाय कुछ नहीं है। प्रधानमंत्री ज़िद्दी हैं, वह तीन बार में नहीं पिघल पाए तो उनका आगे भी पिघलना मुश्किल है। न ढाई साल वह महाराष्ट्र में आने वाले हैं और न 2024 में प्रधानमंत्री बदलने वाले हैं। बुढ़ापे में उन्हें अपना राजपाट नष्ट होते हुए देखना ही पड़ेगा। यह एक सबक़ भी है नेताओं के लिए की यदि कोई व्यक्ति आपके व्यक्तिगत सम्बंध के आधार पर आप पर भरोसा जता रहा है तो अकारण धोखा मत दीजिए वरना आज नहीं तो कल जब आपको उसका हिसाब देना होगा तो बहुत समस्या खड़ी हो जाएगी।
– साभार

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