वेदों में क्या है…?
ॐ : हिंदुओं का मूल धार्मिक ग्रंथ कौन सा है? किसी भी सनातनी से पूछे तो जवाब रामायण मिलेगा, गीता मिलेगा और सच कहा जाए तो असंख्य लोग आज भी नहीं जानते की सनातन धर्म का,हिंदुओं का मूल ग्रंथ वेद है।
वेद से आया है या वेदोक्त कहकर कुछ भी परोस दिया जाता है लेकिन वेद क्या है यह जानने का प्रयास कभी गंभीरता से नहीं किया जाता और जहां तक मैं समझता हूं की 90% हिंदुओं के घर में वेद से संबंधित कोई भी पुस्तक नहीं है, जिससे वेदों के संबंध में प्राथमिक स्तर पर भी जानकारी मिल सके।
वेदों को लेकर ऐसे ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने लंदन के एक कार्यक्रम भारत की बात, सबके साथ में प्रश्न पूछा था लेकिन कोई जवाब नही आया।इस लेख को पूरा पढ़ने के बाद मोदी जी के 2 मिनट के vdo clip को देखियेगा जरूर, जिसमें उन्होंने वेदों को लेकर प्रश्न किया था।
जबकि
मुस्लिम क्रिश्चियन सहित अन्य लोग जानते हैं कि उनका धर्म ग्रंथ क्या है और उसकी एक प्रति उनके घर में अवश्य कर मिलेगी ही।
वेदों में क्या है? वेदों में ऐसा क्या विज्ञान है जो आज के विज्ञान से बहुत आगे है?
क्यों हिटलर स्वयं को अपनी आत्मकथा में आर्य कहता है और वेदों का प्रशंसक रहा ?
वेदों और विश्व के प्रथम संविधान मनुस्मृति में क्या सचमुच जाति व्यवस्था को बढ़ावा दिया गया है?
स्त्री को लेकर वेदों और मनुस्मृति में क्या कहा गया है?
किस वर्ग से थे महर्षि वाल्मीकि जिन्होंने सीता, लव-कुश का पालन-पोषण किया और उनकी शिक्षा की व्यवस्था की? क्या एकलव्य का अंगूठा सच में गुरुदक्षिणा में ले लिया गया था??वेदों और अन्य ग्रंथों में स्त्री व्यवस्था पर क्या कहा गया है?
इन सब मुद्दों पर कुछ करने की इच्छा काफी लंबे अरसे से थी। समयाभाव के बावजूद भी इन विषयों पर कोई भी सामग्री आती थी तो पढ़ता और इन्हें पढ़ते-पढ़ते लंबे अरसे से मन में था कि इस संबंध में एक बड़े वर्ग में कुछ भ्रांतियां वेद,मनुस्मृति सहित अन्य ग्रंथों में समाहित विज्ञान, जातिप्रथा, स्त्रियों की दशा को लेकर हैं, जिन्हें दूर किया जाना आवश्यक है। इस कॉलम में इन्हीं तथ्यों को सामने लाने का प्रयास रहेगा।
किसी भी पुस्तक को पढ़ने के लिए पहले उसकी भूमिका और प्रस्तावना को पढ़ने से पुस्तक को पढ़ने और समझने की रुचि जागृत होती है,बस वेदों के साथ भी यही बातें हैं।
वेदों को आप सीधे नहीं समझ सकते वेदों को समझने के लिए प्रस्तावना एवं भूमिका के रूप में ब्राम्हण ग्रंथों व उपनिषदों का अध्ययन व वेदों से संबंधित भाष्य का अध्ययन आवश्यक है।उसके बिना आप सीधे-सीधे क्लिष्ट वेदो तक नहीं पहुंच सकते।
शिव जी के दर्शन से पहले नंदी जी को प्रणाम करना पड़ता है ऐसे ही वेदों के साथ हैं।
यह अद्भुत लगता है जब सनातन धर्म से जुड़े हुए बहुसंख्य जो पूजा पाठ एवं अन्य व्यवस्थाओं को लेकर लगातार आक्षेप करते रहते हैं।इसके लिए वे भारतीय राजनीति के महानायक डॉ. भीमराव अंबेडकर की बात भी करते हैं। ऐसा इसलिए कि उन्होंने कभी महानायक अम्बेडकर को पढ़ा ही नही।
अम्बेडकर साहब के संबंध में मैं उन लोगो को कह रहा हूं जो सनातन संस्कृति की जड़ों से जुड़े हुए हैं और स्वयं भी घर में ना केवल पूजा पाठ करते हैं, मंदिर भी जाते हैं लेकिन सामाजिक व्यवस्था में कुछ इस तरह बंधे हुए हैं कि खुलकर अपने सनातन धर्म वेद के पक्ष में या कहें कि सनातन धर्म वेद की अच्छी बातों को भी सामने लाने से कतराते हैं कि समाज-संगठन के लोग क्या कहेंगे !
आर्य-अनार्य,विदेशी रटते-रटते वामपंथियों ने देश मे जहर घोल दिया है। वस्तुतः आर्य कोई जाति नही बल्कि संस्कृत का एक सम्मानसूचक शब्द है, जिसका आशय उत्तम, श्रेष्ठ,पूज्य, मान्य, प्रतिष्ठित व्यक्ति,धर्म एवं नियमों के प्रति निष्ठावान व्यक्ति से है।
वेदों,मनुस्मृति में मानवता के विरुद्ध एक शब्द भी नहीं लिखा है। नारी को वेदों,मनुस्मृति में मातृ शक्ति के साथ साथ शक्ति का रूप भी बतलाया गया है। हो सकता है लोगो ने वो मिलावटी मनुस्मृति पढ़ ली हो जिसमें वामपंथीयो ने ये लिख दिया कि जो शूद्र वेद,भजन या धार्मिक कुछ भी सुने उनके कान में गर्म सीसा घोल कर डाल दो।
देश-समाज को तोड़ने वालो की लिखी मिलावटी मनुस्मृति बाजार में बिक रही है सनातनी इसके विरूद्ध आवाज ही नहीं उठाते और उसी मनुस्मृति का सहारा लेकर वामपंथी लोग हिन्दुओं को भड़काते है,डरातेऔर उनका धर्मातरण करवाते है।वेदों की गलत व्याख्या और मिलावटी मनुस्मृति से लाखो-करोड़ों हिन्दू गुमराह है।
सनातन धर्म के चार वर्णों में से चौथा वर्ण शूद्र कहलाता है। जो कि जन्म के आधार पर ना होकर कर्म के आधार पर था। इनका कार्य उद्योग करना और निम्न कोटी के शिल्प के काम करना माना गया कुछ वैश्य वर्ण उच्च कोटी के धातु के भी शिल्प कार्य करते है बस वो कर्म शूद्र लेकिन उनका वर्ण वैश्य माना जाता है।
यजुर्वेद में शूद्रों की उपमा समाजरूपी शरीर के पग से दी गई है;अर्थात अर्थव्यवस्था इन्ही की उपमा है । समाजरूपी शरीर इन्ही के अर्थव्यवस्था के पैर से समाज गतिशील है । इसीलिये किवदंतियों में कुछ लोग इनकी उत्पत्ति ब्रह्मा के पैरों से मानते हैं।
देश को तोड़ने वाले विघटित मानसिकता के लोगो ने भ्रम फैलाया है कि हम ही मूलनिवासी हैं और आर्य बाहर से आये हुए विदेशी हैं।
डॉ. अम्बेडकर ने अपनी पुस्तक “शुद्र कौन” में आर्यों के विदेशी होने की बात का खंडन किया है। उनका वैज्ञानिक आधार पर ब्राह्मणों और अछूतों की एक जाति है। इस आधार पर सभी ब्राह्मण आर्य है और सभी अछूत भी आर्य है। अगर सभी ब्राह्मण द्रविड़ है तो सभी अछूत भी द्रविड़ है।।डॉ अम्बेडकर ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र सभी को आर्य मानते थे।
वेदों में विशुद्ध विज्ञान, प्रकृति पूजा,सामाजिक न्याय व व्यवस्था का ज्ञान है।वेदों में किसी का कोई इतिहास नही है।कोई इतिहास नहीं है तो किसी व्यक्ति विशेष का नाम भी नहीं है लेकिन कुछ पंथवाद के भ्रमित गुरु वेदों में 1-2 स्थानों पर नाम को अपना कहते हैं।
चंद्रगुप्त द्वितीय1650 वर्ष पहले,सम्राट विक्रमादित्य 2100 वर्ष,आचार्य चाणक्य 2300 वर्ष,श्रीकृष्ण 5000 वर्ष, रामायण काल 7000 वर्ष,वैवस्वतमनु 8500 वर्ष, सम्राट ययाति 9000 वर्ष,स्वायंभुव मनु 11,000 वर्ष,नीलवराह 16,000 वर्ष पूर्व…इन कालों में अनवरत वैदिक उपासना का आपका,हम सबका सनातन इतिहास है।
विश्व की तमाम संस्थाओं, संगठनों ने वेदों को विश्व का प्रथम ग्रंथ माना है। वेद मानव सभ्यता के सबसे पुराने लिखित दस्तावेज़ हैं। यूनेस्को ने वेदों को विश्व के सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल किया है।
जो वेदों में नही वो कहीं नहीं..
आरंभ में नास्तिक रहे प्रोफेसर गुरूदत्त विद्यार्थी जी वेदों में विज्ञान को लेकर कई पुस्तकें लिखी और उनकी उनकी पुस्तक ‘द टर्मिनोलॉजि ऑफ वेदास्’ को आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की पाठ्यपुस्तक के रूप में स्वीकृत किया गया। मात्र 26 वर्ष की अल्पायु में उनका चले जाने अद्भुत रहा।
वर्तमान में राजस्थान के आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक जी वेदों में आये विज्ञान को विश्व के समक्ष लाने के लिए सतत प्रयासरत हैं। स्टीफन हॉकिंग, नासा सहित अन्य लोगों को वेदों में उल्लेखित विज्ञान को लेकर कई पत्र उन्होंने लिखें हैं और सब निरुत्तर हैं।
इस कॉलम में वेद मनुस्मृति के अलावा पुराण, रामायण महाभारत सहित संस्कृति संस्कृति से जुड़े संदर्भ तथ्यों को भी इसमें जोड़ा जाएगा, आधुनिक परिपेक्ष में आध्यात्म के संबंध में लोगों के विचारों का समावेश किया जाएगा।
भौतिकतावादी युग में जो लोग अपने जड़ों से दूर जा रहे हैं उन्हें हम सबका यह प्रयास कहीं एक सूत्र में बांधे रखने में सहायक होगा ऐसी आशा है।
गीतिका काव्य के छंद को कहा जाता है और वेद मनुस्मृति महाभारत रामायण महान ग्रंथ है और इन्हीं में से कुछ छंदों,अंशों को आप सब तक सहेजे गए सरल,सारगर्भित पठनीय सामग्रियों से लोगों तक पहुंचाने का प्रयास “वेदों में क्या है..?” के माध्यम से जारी रहेगा।