बिरसामुंडा के रास्ते पर कब चलेगा आदिवासी समाज…?
आदिवासी समाज आज मात्र बिरसा मुंडा के आदर्शों पर ही चलने की ठान ले तो समाज में जागरूकता आ जाएगी। बिरसा मुंडा ने आदिवासी समाज को शराब से दूर रखने के लिए जन जागरूकता का अभियान चलाया। उन्हें दुख होता था जब शराब की खातिर लोग अपने परिवारिक जमीन को भी गिरवी रख देते थे और शराब के नशे में अपने ही परिवार समाज से उलझ जाते थे।
वर्तमान समय में शिबू सोरेन ने भी इस अभियान को बढ़ावा दिया। कटघोरा तीवरता के रहने वाले आदिवासी नेता दादा कहे जाने वाले हीरा सिंह मरकाम ने तो बकायदा शराब भठ्ठी तोड़ो आंदोलन चलाया। शराब भट्ठी तोड़ो आंदोलन चलाने के साथ ही उन्होंने आदिवासियों के लिए पृथक से बैंक की स्थापना भी की। यह कुछ उदाहरण है जिन्होंने आदिवासियों के हितों की खातिर लंबी लड़ाइयां लड़ी।
इस क्रम में यह ध्यान देने वाली बात है कि विभिन्न राजनीतिक दल शराब को आदिवासी समाज की संस्कृति से जोड़कर आदिवासियों का शोषण करते आए हैं और शराबबंदी करने के स्थान पर शराब को आदिवासियों की संस्कृति का हिस्सा बना कर बता कर शराब बनाने के लिए महज वोट बैंक की खातिर सत्ता में बने रहने की खातिर शराब बनाने की लगातार छूट देते आए हैं।
अब आदिवासी समाज को खुद ही जागरूक होकर इस अभियान से जुड़ना होगा कुछ वर्ष पहले छत्तीसगढ़ के कई आदिवासी बाहुल्य गांव में शराबबंदी को लेकर पंचायतों द्वारा जुर्माना लगाने का प्रावधान भी किया गया। यहां पर यह देख कर पीड़ा होती है कि आदिवासी समाज अपने पूर्वर्ती आदिवासी नेताओं की जयंती तो बनाता है उनको मानता भी है लेकिन उनके बताए रास्ते पर चलने से परहेज करते हैं। बिरसा मुंडा की बात चली तो आपको यह भी बता दें कि बिरसा मुंडा शाकाहारी थे और किसी भी रूप में पशु बलि के खिलाफ थे। उनका मानना था की मांसाहार से जहां स्वास्थ्य खराब होता है वही गरीब आदिवासी परिवार की दशा और दिशा और भी खराब होती है। मांसाहार को लेकर भी उन्होंने व्यापक रूप से जन जागरण अभियान चलाया था। कहा जाता है की मिशन स्कूल में पढ़ने के लिए वे गए लेकिन बाद में जब उन्होंने भारतीय संस्कृति का वहां पर उपहास दिखा तो स्कूल उन्होंने छोड़ दिया और इसके बाद भारतीय संस्कृति और महाभारत का अध्ययन किया इसके बाद उनकी धारणा पूरी तरह बदल गई और आदिवासियों के हित में जल जंगल की लड़ाई लगातार अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ उन्होंने छापामार युद्ध करते हुए जारी रखा। अंतिम लड़ाई जब उनकी अंग्रेजों के साथ हुई थी तब कहा जाता है कि करीब उनके 400 लोग मारे गए थे। इससे स्पष्ट होता है कि सत्ता चाहे कितनी ताकतवर हो,वे अपने हक के लिए कभी लड़ने से पीछे नहीं हटे। आदिवासी समाज को उनसे प्रेरणा लेते हुए उनके बताए हुए रास्ते पर चलना चाहिए। विशेषकर शराबबंदी की दिशा में उनकी दी गई सीख को अमल में लाना चाहिए तभी आदिवासी समाज का उद्धार संभव है। किसी भी आदर्श चरित्र का मात्र सही मायनों में सम्मान तभी होता है जब फूल माला चढ़ाकर औपचारिकता निभाने के स्थान पर उनके बताए हुए मार्ग पर भी चला जाए।