पंकज झा : वे चंद पैसों के लिए एसबीआई, एलआईसी या देश की ही सुपारी ले-ले तो क्या बड़ी बात..
अदानी अब हिंडनबर्ग रपट से पहले वाली स्थिति में लगभग आ गये। एशिया के दूसरे सबसे अमीर बन गये फिर से। अंबानी पहले पायदान पर हैं।
होना ही था ऐसा। वैसे भी जो भी उथल-पुथल था, वह केवल शेयर बाजार में था। अदानी की कंपनियां आम दिनों की तरह चल ही रही थी, चलनी थी ही।
तो, अदानी को नुकसान हुआ नहीं। हिंडनबर्ग और ऐसे सभी मंदरियों ने खूब पैसे कूटे। बाद में उस्ताद ट्रेडर्स ने भी इस उथल-पुथल में जम कर पैसे बनाये…
तो जब सबने बनाए ही, तो गवाये किसने? जानते हैं? आगे की पंक्ति लिखते हुए दिल रो रहा है। गंवाये केवल आम भारतीयों ने जिसने थोड़ी सी हिम्मत करके अपने बच्चे की उच्च पढ़ाई, बेटी की शादी, अपने बुढ़ापे आदि के लिए एफडी की नकारात्मक ब्याज से छुटकारा पाने शेयर बाजार की तरफ थोड़ा रूख कर लिया था।
ऐसे मध्य और निम्न मध्य वर्ग के लोग, जिन्होंने भारत पर भरोसा कर, देश के भविष्य से आशान्वित होकर स्वयं को भी कॉर्पोरेट विकास का एक रंच मात्र ही सही, अंश बनने का साहस कर लिया था। और यह साहस अनुचित तो बिल्कुल नहीं था और न है भी।
सामान्यतः बिना जोखिम के किसी भी निवेश का कोई लाभ नहीं होता। रिस्क है तो इश्क है। लेकिन जानते हैं इस ‘इश्क’ के सबसे बड़े खलनायक कौन हैं? सबसे बड़ा खलनायक वह है जो दुनिया में मोहब्बत की दुकान लगाने निकला है। वही इस इश्क का सबसे बड़ा दुश्मन है। वह या उसका दल जी ही नहीं सकता अगर मध्यवर्ग अपने सपने पूरे कर ले तो। इसने ‘गरीबी हटाओ’ का सपना भी मुहब्बत की तरह बेच-बेच कर पीढ़ियों तक अपना पेट भरा है। समूचा देश खाते रहने के बाद भी उसका पेट भर ही नहीं रहा है।
ऐसा क्यों कह रहा हूं मैं? विचारिये तनिक! हिंडनबर्ग आज समूची दुनिया के लिये एक डकैत की तरह सामने आया है। वह व्यापारियों का सामान लूट लेने वाले समुद्री डाकू का नया वेरियेंट है। आज भी नाइजीरिया के एक शेयर में सेंध लगा कर उसने उसकी कीमत आधी कर दी। यह तो पता ही है आपको, कि जिस भी शेयर का रिपोर्ट जारी करता है वह, उसमें पहले ही इसने ‘शॉर्ट’ किया होता है। अर्थात् शेयर की कीमत कम होते ही, उसे अरबों का लाभ मिल जाता है।
अब इस कहानी में ‘मुहब्बत की दुकान’ कैसे फिट होता है? उस अभागे को इस बाजार की क्या समझ या भूमिका है? इसी सवाल के लिए यह पोस्ट लिखा गया है। जवाब यह है कि जरा सा भी गरीब और मध्यवर्ग के प्रति गिरोह को ममता होती, तो वह सीधे स्टैंड लेते कि मेरे देश के अर्थव्यवस्था को तबाह करने का यह विदेशी षड्यंत्र है, इससे डरें नहीं। देश के साथ खड़े रहें। इतने मात्र से वह बवंडर रुक जाता काफी हद तक। मध्य वर्ग के निवेशकों से अपील कर सकता थे वह कि घबरायें नहीं, भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत है, कहीं कोई दिक्कत नहीं है।
जानते हैं, इतना करने मात्र से वे इतिहास में दर्ज हो जाते। भारत के लोकतंत्र का वह स्वर्णिम अध्याय साबित हो सकता था। लोग उदाहरण देते कि देखो, जिम्मेदार विपक्ष किसे कहते हैं? चुनाव तो पता नहीं जीतेगा या नहीं, दिल जीत लेता वह अभागा इस महान देश का। लेकिन…
लेकिन किया क्या उसने और उसके गिरोह ने? हिंडनबर्ग को जो हवा देनी थी, वह तो दी ही। दुष्प्रचार कर-कर के इतना माहौल खराब कर दिया कि जमीन पर आ गये थे सारे शेयर। न केवल अदाणी का बल्कि स्टेट बैंक और एलआईसी जैसी हीरे जैसी कंपनियों को भी बदनाम करने में कसर नहीं उठा रखा उसने। अगर यह युद्ध है, तो विपक्षी एक युद्ध अपराधी हैं हमारे। जब सुप्रीम कोर्ट से भी लगभग क्लीन चिट मिल गई है इस मामले में, तब आपराधिक मुकदमा चलाना चाहिए उनपर स्टेट बैंक और एलआईसी द्वारा।
सोचिए जरा… आपने एक भी ऐसा कोई उदाहरण देखा जब स्टेट बैंक में कोई पैसा लेने गया हो, या एलआईसी का पॉलिसी परिपक्व हो गया हो और इन्होंने डिफॉल्ट कर दिया हो, पैसे नहीं दिये हों? नहीं न? बार-बार ये संस्थान सफाई देते रहे, आंकड़े बताते रहे कि उन्हें अदानी के शेयर गिरने से कोई नुकसान नहीं हुआ है, फिर भी न रत्न कंपनियों के डूब जाने, बिक जाने, दिवालिया हो जाने का शिगूफा छोड़ते रहे ये। यहां तक कि अदानी की कंपनियों के कामकाज पर भी प्रत्यक्ष रूप से कोई रुकावट नहीं आयी लेकिन गिरोह ने समूचे देश की साख को गर्त में धकेलने के लिए अभियान चलाया। क्या कहें….
मुझे पहले दिन से केवल चिंता उस मध्य वर्ग की रही जिसने अपना पेट काट काट कर, अपनी जरूरतों को कम कर भविष्य के लिए थोड़ा निवेश किया था। वे डूब गये। बेतहाशा लुट गये वे। और उन्हें हिंडनबर्ग से अधिक उस अभागे ने लूटा जो विदेशियों के हाथ खेल रहा है।
यह तो भला हो कि आज भी देश के दो प्रतिशत लोग भी बाजार में निवेश नहीं करते हैं। अगर अमेरिका आदि जैसा यहां चलन हो, और जिस देश में मुहब्बत तक की खुलेआम दुकान लगा देने वाले तत्व हों, जो मुहब्बत तक को बेच दे, वे चंद पैसों के लिए एसबीआई, एलआईसी या देश की ही सुपारी ले-ले तो क्या बड़ी बात है। समझ गये न?
छि। धिक्कार है…