नितिन त्रिपाठी : …के अंदर बैठ कर रोना सड़क पर खड़े होकर रोने से ज्यादा आराम देह है
एक कहावत है सच है पैसे से ख़ुशी नहीं ख़रीदी जा सकती पर हाँ BMW कार के अंदर बैठ कर रोना सड़क पर खड़े होकर रोने से ज्यादा आराम देह है.
पैसे की सबकी परिभाषा अलग होती है और पैसे का कोई अंत नहीं होता. पर सामान्य जीवन के ऐंगल से यदि आपको कुछ करने के लिए अपनी जेब न टटोलनी पड़े, इतना पैसा अच्छे जीवन के लिये पर्याप्त है.
माल गये मन किया h&m से एक जोड़ी कपड़े ले लिये जायें. बच्चे ने बोला स्कूल टूर पर जाना है. मित्र / परिवारी जन घर आये, उन्हें घुमाने बाहर खिलाने का मन किया. गर्मी में घर में एसी चलाना और जाड़े में हीटर चलाना. छुट्टियों में घूमने जाना. इन सब कार्यों को करते समय यदि आपको पहले अपनी जेब न चेक करनी पड़े आप पर्याप्त अमीर हैं. और इतने तक पहुँचने का सबको प्रयत्न करना चाहिये.
मैंने मिडिल एज तक आते आते एक बात यह देखी कि जिन मित्रों के पास प्रोफेशनल डिग्री रही मोस्टली वह सभी आज इस लेवल पर हैं कि उन्हें यह सब करने के लिए जेब नहीं देखनी पड़ती. डॉक्टर, इंजीनियर, अच्छे कॉलेज से एमबीए किए मैनेजर, चार्टर्ड अकाउंटेंट आदि इन सबको अपनी पसंद का कार्य करने से पूर्व अपनी जेब नहीं चेक करनी पड़ती. वहीं सामान्य पढ़ाई वाले लोग भले ही कितने एक्सेप्शनल रहे हों अपनी एज में सामान्यतः मिडिल एज तक आते आते एवरेज लाइफ स्टाइल और जेब के चक्कर में फँस जाते हैं.
कलियुग है, अब कृष्ण सुदामा की मित्रता नहीं होती. हाँ अभी भी बचपन में होती है ऐसी मित्रता लेकिन बड़े होने पर मित्रता चल वही पाती है जो बराबर लेवल की होती है, जहां आर्थिक बंधन नहीं होते. एक मित्र उन्नति कर गया दूसरा पिछड़ गया – बड़ी संभावना रहती है दूसरा पहले से मिलने में कतराता है.
इस युग में सफ्फीसिएंट आराम वाला जीवन जीने का स्योर शॉट उपाय है एक अच्छी प्रोफेशनल शिक्षा. बाक़ी फिर एक्सेप्शन सब जगह होते हैं, होते रहेंगे.