टुकड़े टुकड़े हिन्दुत्व की राजनीति के सहारे हिंदुओं का हिंदूपन नष्ट करने का असफल प्रयास
धर्म को सिख , बौद्ध , जैन आदि में बांटने पर पर भी हिन्दुत्व न टूटा तो मनुस्मृति के बाद अब रामचरितमानस जैसे उन ग्रंथों को तोड़ दो जो भारतवर्ष की आत्मा हैं । ग्रंथों को तोड़ते ही हिंदू समाज टूट जाएगा । हिंदू टूटा तो राजनीति को जीतने का मौका मिल जाएगा ।
भारत के मुसलमानों और ईसाइयों को इस देश के हिंदुओं से कभी भी कोई खतरा न कभी रहा था , न कभी रहा है और कभी रहेगा भी नहीं !
फिर अब तो यह भी नहीं पता कि जात पात में बंटे हिंदुओं में ही आपसी एकता रहेगी भी या नहीं ?
हिंदुओं को तोड़ने का काम अब दलीय छुटभैये अब शुरू कर चुके हैं !
वैसे जातीय जनगणना को भी इसका आधार बनाकर प्रयास किया जा रहा है।
विपक्ष को यह वहम हो चुका है कि आने वाले समय में वे अंबेडकर या कांशीराम का दर्जा हासिल कर सकते हैं ?
साफ साफ कहें तो नौ साल पहले राष्ट्रीय राजनीति में नरेंद्र मोदी का पदार्पण होने के बाद देश ने हिंदुओं को एक नई लय में आते देखा है । सच कहें तो पूरा देश ही नई लय में आता चला गया । गुजरात का देश की राजनीति पर गहरा असर पड़ा था । मोदी एक मजबूत नेता के रूप में उभरे।
खास तौर से मनमोहन सिंह जैसे एक्सीडेंटल प्राईमिनिस्टर तथा राहुल गांधी जैसे राजनैतिक दुधमुहे नेता के सामने नरेंद्र मोदी का व्यक्तित्व बहुत भारी पड़ा । जाहिर है दशकों से छद्म धर्मनिरपेक्षता के बोझ में दबा बृहत्तर हिंदू समाज मोदी के साथ आ खड़ा हुआ और आज तक खड़ा नजर आ रहा है । भारत में पहले ऐसा कभी नहीं हुआ ।
2014 के बाद 2019 में मोदी के दोबारा पीएम बनने और पहले से ज्यादा बहुमत से जीतकर आने के बाद देश की विपक्षी राजनीति को मानों सांप सूंघ गया । कुछ दिनों के सन्नाटे के बाद चरणबद्ध कोशिश हर स्तर पर शुरू हुई । वह यह कि किसी भी स्तर पर राज्यों में करिश्मा दिखाया जाए । कुछ राज्यों में यह सफल हुआ । उदाहरण के लिए बंगाल में मोदी को सचमुच ताकतवर होता देख कांग्रेस और वामपंथियों ने अपने तमाम वोट ममता को ट्रांसफर करा दिए। यह बुरी नहीं , अच्छी बात थी । मोदी जैसी फिगर को हराने के लिए यह बहुत अच्छा प्रयास था । लेकिन बंगाल के साथ ही इस एकता का बंटाधार हो गया । अगले लोकसभा चुनाव में मोदी को हराने का कोई सामूहिक प्रयास सामने नहीं आया । उल्टे विपक्ष राज्यों में हारता चला गया ।
तो अब हाथ लग गया मोदी को शिकस्त देने का बड़ा हथियार । हिंदुओं और हिन्दुत्व का जातीय विभाजन ? राजनीति अभी तक मुस्लिम और दलितों की राजनीति करती आ रही थी । कोशिश है कि आगे टुकड़े टुकड़े हिन्दुत्व की राजनीति हुआ करेगी । हिंदुओं का हिंदूपन तोड़ने की कोशिश शुरू हुई है । आक्रामकों के भारत में आने से पहले भी देश में अलग अलग राजा थे , भाषा और बोलियां थी , रंग और वेशभूषा थी । परंतु जिसने हिन्दुत्व को जोड़े रखा , वह था अध्यात्म । वह था धर्म।
धर्म को सिख , बौद्ध , जैन आदि में बांटने पर पर भी हिन्दुत्व न टूटा तो मनुस्मृति के बाद अब रामचरितमानस जैसे उन ग्रंथों को तोड़ दो जो भारतवर्ष की आत्मा हैं । ग्रंथों को तोड़ते ही हिंदू समाज टूट जाएगा । हिंदू टूटा तो राजनीति को जीतने का मौका मिल जाएगा । चलो कोशिश होने दीजिए । इस देश में हिन्दुत्व की जड़ें कितनी मजबूत हैं , इस देश के निवासियों में मजहब अलग अलग होते हुए भी जुड़े रहने की ताकत है या नहीं , पता चल जाएगा । तथापि जाति के आधार पर देशवासियों के विभाजन की कोशिश काफी खतरनाक है ।