सुरेंद्र किशोर : हिन्दी दिवस पर आग्रह.. संविधान के अनुच्छेद-357(2) में 135 शब्दों में प्रावधान…

भारत के संविधान के अनुच्छेद-357(2) में यह प्रावधान किया गया है कि
‘‘राज्य के विधान मंडल की शक्ति का प्रयोग करते हुए संसद द्वारा अथवा राष्ट्रपति या खंड -1 के उप खंड (क)में निर्दिष्ट अन्य प्राधिकारी द्वारा बनाई गई ऐसी विधि जिसे संसद अथवा राष्ट्रपति या ऐसा अन्य प्राधिकारी अनुच्छेद-356 के अधीन की गई उद्घोषण के अभाव में बनाने के लिए सक्षम नहीं होता,उद्घोषणा के प्रवर्तन में न रहने के पश्चात एक वर्ष की अवधि के अवसान पर,अक्षमता की मात्रा तक ,उन बातों के सिवाय जिन्हें उक्त अवधि के अवसान के पहले किया गया है या करने का लोप किया गया है प्रभावहीन हो जाएगी यदि वे उपबंध जो प्रभावहीन हो जाएंगे ,सक्षम विधान मंडल के अधिनियम द्वारा पहले ही निरसित या उपांतरणों के सहित या उनके बिना पुनः अधिनियमित नहीं कर दिए जाते हैं।’’
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ऊपर लिखा वाक्य 135 शब्दों का है।
यह भारतीय संविधान के अधिकृत हिन्दी अनुवाद से उधृत किया गया है।
मेरे लिए तो इस हिन्दी अनुवाद की अपेक्षा इसकी मूल यानी अंग्रेजी वाक्य को समझना
अधिक आसान है।
क्योंकि मुझे थोड़ी -बहुत अंग्रेजी आती है।
किंतु यदि कोई हिन्दी भाषी, जिसे अंग्रेजी नहीं आती, इसे पढ़कर समझना चाहेगा,तो क्या वह समझ पाएगा ?
मुझे तो नहीं लगता।
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संविधान के हर अनुच्छेद का अनुवाद इसी तरह लंबे वाक्यों में क्लिष्ट हिन्दी के साथ किया गया है।
यानी, सामान्य हिन्दी भाषा भाषियों के लिए संविधान को पढ़ना-समझना ‘‘मना’’ है।
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इस लिए आज ‘हिन्दी दिवस’ के अवसर पर मेरी यह अपील है कि बेहतर समझदारी के लिए संविधान का समझ में आ जाने वाला हिन्दी अनुवाद करवाया जाना चाहिए।
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इतना ही नहीं,आई.पी.सी.,सीआर.पी.सी.तथा अन्य कानूनी किताबों का भी हिन्दी अनुवाद इसी तरह हुआ है।
दरअसल,लंबे-लंबे वाक्य अंग्रेजी के स्वभाव में है।
हिन्दी में छोटे-छोटे वाक्य और भरसक आम बोलचाल में आने वाले शब्द लिखने पर सराहना मिलती है।उसकी उपयोगिता भी बढ़ती है।

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