सुप्रीम कोर्ट जज नजीर बोले..”धर्मो रक्षति रक्षितः..”देश के लिए कुछ भी….”
अयोध्या प्रकरण में में फैसला देने वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच में शामिल जस्टिस एस अब्दुल नजीर ने कुछ दिनों पूर्व रिटायर होने के मौके पर संस्कृत का एक श्लोक उद्धृत करते हुए कहा -“धर्मो रक्षति रक्षितः।”
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस अब्दुल नजीर बुधवार को रिटायर होने पर विदाई समारोह के एक कार्यक्रम में उन्होंने संस्कृत के एक श्लोक को पढ़कर जज के तौर पर अपना अंतिम भाषण दिया, जो न्यायपालिका की आने वाली पीढ़ियों तक के लिए उदाहरण बन गया है। उन्होंने कहा “धर्मो रक्षति रक्षितः।” जस्टिस नजीर ने कहा कि यह श्लोक उनके जीवन में बहुत महत्व रखता है। जस्टिस नजीर अयोध्या विवाद से लेकर ट्रिपल तलाक तक के मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाने वाले सुप्रीम कोर्ट की बेंच में शामिल रहे जस्टिस नजीर का मानना है कि ”अगर कोई कानून के पेशे में फिट नहीं हो सकता तो वह किसी में भी नहीं हो सकता।” वे इसे अपने जीवन का मूल मंत्र बना के चले और दो दशकों तक वकालत और फिर हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में जज की भूमिका निभाई। कई ऐतिहासिक फैसलों से उनका नाम जुड़ चुका है, जिसमें अयोध्या श्रीराम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद भी शामिल है।
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उल्लेखनीय है नवंबर, 2019 में जब सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय संविधान पीठ ने अयोध्या पर सर्वसम्मति से ऐतिहासिक फैसला सुनाया तो जस्टिस एस अब्दुल नजीर से कहा गया कि फैसले को प्रभावित किए बिना वे चाहते तो बाकी जजों से उलट फैसला भी दे सकते थे! ऐसा करके वह अपने समाज में हीरो तो बन सकते थे! जस्टिस नजीर ने मुस्कुरा कर इतना भर कहा, ”देश के लिए कुछ भी….”
” दुनिय में सब कुछ दुनिया में धर्म पर आधारित”
सुप्रीम कोर्ट के जज के तौर पर सर्वोच्च अदालत के वकीलों को अपने आखिरी संबोधन में जस्टिस नजीर ने एक बहुत ही प्रसिद्ध संस्कृति श्लोक को कोट किया, जो उनके मुताबिक उनके जीवन में बहुत मायने रखता है- धर्मो रक्षति रक्षितः। इसका अर्थ है- जो धर्म की रक्षा करते हैं, धर्म उनकी रक्षा करता है। जस्टिस नजीर बोले- ‘इस दुनिया में सबकुछ धर्म पर आधारित है। धर्म उनका नाश कर देता है, जो इसका नाश करते हैं और धर्म उनकी रक्षा करता है, जो इसकी रक्षा करते हैं।’
