NRI अमित सिंघल : निर्णय लेते समय राष्ट्रप्रमुख ओबामा- मोदी का मानसिक द्वंद एवं उलझन
कुछ समय पूर्व अर्बन नक्सल चीन के द्वारा कोरोना कंट्रोल करने की प्रशंसा में लगा हुआ था। आज चीन में कोरोना को लेकर क्या स्थिति है?
राष्ट्रपति बैरक ओबामा अपनी पुस्तक ‘ए प्रोमिज़्ड लैंड’ (A Promised Land) में लिखते है कि राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने रियलाइज़ किया कि जो भी देशी या विदेशी समस्या उनकी टेबल पर आती थी, उसका कोई भी 100% शुद्ध समाधान (clean solution) नहीं था।
अगर उस समस्या का 100% परफेक्ट समाधान होता, तो उनके नीचे बैठे अधिकारियों ने उस समस्या को सुलझा लिया होता।
ओबामा लिखते हैं कि लगातार वह संभावनाओं से जूझते रहते हैं।
कहीं पर 70% संभावना है कि परिणाम मिल जाए और उनके निर्णय से स्थिति और नहीं बिगड़े। कहीं 55% चांस है कि इस नीति के बदले उस नीति को अपनाने से वे समस्या को सुलझा लेंगे; जबकि केवल 0% संभावना होती थी कि जो भी निर्णय लेंगे उसका परिणाम 100% उनकी इच्छा के अनुसार सामने आएगा।
30% संभावना होती थी जो भी वह निर्णय लेने जा रहे हैं उसका कोई परिणाम नहीं निकलेगा, जबकि 15% संभावना होती थी उनके निर्णय से समस्या और भी बिगड़ जाएगी।
ऐसी परिस्थितियों में, ओबामा लिखते हैं, कि अगर वह परफेक्ट समाधान के पीछे भागते तो वे कभी भी निर्णय नहीं ले पाते।
अगर वे सहज-ज्ञान (gut) या मन के अनुसार निर्णय लेते, तो उसकी परिणति ऐसे निर्णयों में होती जिनका राजनैतिक विरोध कम लोग करते; या फिर वे तथ्य को अपनी सुविधा के अनुसार तोड़ मरोड़ लेते।
उन्होंने तय किया कि वह तथ्य और तर्क के अनुसार निर्णय लेंगे जिसमें वह अपने लक्ष्य तथा सिद्धांतों को भी कंसीडर करेंगे। उनके निर्णय लेने की एक कसौटी यह भी होगी कि अगर कोई अन्य व्यक्ति उनके पद पर होता, और अगर उसे भी वही सूचना और आंकड़े मिलते जो ओबामा को मिले थे, तो वह व्यक्ति उनसे बेहतर निर्णय नहीं ले सकता था।
वह लिखते हैं कि प्रेसिडेंसी ने उन्हें एक अन्य पाठ भी सिखाया: यह आवश्यक नहीं है कि उनकी निर्णय लेने की प्रक्रिया – यानी कि तर्क एवं आंकड़े – कितने सॉलिड थे; बहुधा “you are just screwed” – यानी कि आप एक कठिन या निराशाजनक स्थिति में होते ही हैं।
कई बार आपको अपूर्ण जानकारी (imperfect information) तथा अनचाहे परिणामों (unintended consequences) के बावजूद निर्णय लेना पड़ता है।
वह लिखते हैं कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर हर समस्या डायलॉग के द्वारा सुलझाए जा सकती है यह परिकल्पना कभी भी पूर्ण रूप से सत्य नहीं थी।
उन्होंने महसूस किया कि उनके कार्य की एक नई जिम्मेवारी थी: बाहरी रूप से एक ऐसी स्थिति का आभास देना कि सब कुछ नॉर्मल है, हम सभी लोग एक सुरक्षित एवं व्यवस्थित विश्व में रह रहे हैं; “जबकि दूसरी तरफ मैं एक डार्क होल (dark hole) की तरफ देखता रहता था कि किसी भी क्षण एकाएक पूर्ण रूप से अराजकता छा जाए”।
वह एक सलाहकार को कोट करते हुए लिखते हैं कि जब स्थिति खराब है तो कोई भी इस बात की चिंता नहीं करता कि आप (ओबामा) के निर्णय के बिना स्थिति और भी खराब हो सकती थी।
ओबामा ने अपने रक्षा मंत्री बॉब गेट्स – जो बुश के समय भी रक्षा मंत्री थे तथा सात राष्ट्रपतियों के साथ काम कर चुके थे – से राष्ट्रपति पद की जिम्मेवारी ठीक तरीके से निभाने के बारे में सलाह मांगी।
गेट्स ने जवाब दिया: राष्ट्रपति महोदय, आप केवल एक चीज पर भरोसा कर सकते हैं, कि हर पल हर क्षण कोई ना कोई व्यक्ति कहीं पर स्थिति को बिगाड़ रहा है (somebody somewhere is screwing up) ।
अब इस मानसिक द्वंद को तथा निर्णय लेने की कठिनाई को प्रधानमंत्री मोदी के संदर्भ में देखिए।
जब उन्होंने पुलवामा-बालाकोट, अनुच्छेद 370, चीन से सीमा विवाद, कोरोना संकट, नागरिक संशोधन कानून, कृषि सुधार, देश तोड़क शक्तियों के सन्दर्भ में निर्णय लिया, तब उन्होंने जिस 100% परिणाम की आकांक्षा की थी, क्या वह सामने आया?
कुछ समय पूर्व अर्बन नक्सल चीन के द्वारा कोरोना कंट्रोल करने की प्रशंसा में लगा हुआ था। आज चीन में कोरोना को लेकर क्या स्थिति है?
आज जो लोग प्रधानमंत्री पद की आकांक्षा रखते हैं, क्या वह उनसे बेहतर निर्णय ले सकते थे अगर उनके पास यही सूचना तथा आंकड़े होते?
