पूनम रानी : अंग्रेजी में कहतें हैं.. Just say it !

प्रेम में पास होना ज़रूरी नहीं साथ होना ज़रूरी है। ऐसी ही एक कहानी है, ‌ अंग्रेजी में कहते हैं… 
ज़रूरी नहीं हर कहानी में हीरो बाहे फैलाए अपनी हीरोइन के लिए और शुरू हो एक नए प्रेम का सिलसिला। कुछ कहानियां रोजमर्रा जिंदगी की हमारे आस-पास घटित होती हैं और उनमें इतना प्रेम होता है, जिन्हें हम महसूस ही नहीं कर पाते। कहानी की शुरुआत होती है यशवंत बत्रा जो कभी अपनी पत्नी के लिए अपना प्रेम जता ही नहीं पाया। सच में जताना ज़रूरी है..? यह सब आपको फिल्म देखने के बाद पता चलेगा। उन्हें लगता है किरण बत्रा
(पत्नी)  सब समझती है।
प्रेम प्राप्ति नहीं तृप्ति है। सच्चा प्रेम यही तो है। (फिरोज़)पंकज त्रिपाठी और(सुमन) इप्शिता चक्रवर्ती से बेहतर इस बात को कौन समझ सकता है। सुमन के लिए प्यार दवाई की एक चम्मच से लेकर बाहे फैलाकर उसे मापना तो फिरोज़ के लिए दवाइयों की शीशी में बंद 90ml जितना कोई रोना धोना नहीं अंत में हंसते हुए अपने “प्रेम” को अलविदा कहना।
अगर किसी के जीवन में प्रेम उतर आए तो फिर दुख और कष्ट के लिए कोई स्थान कहां बचता है ? सारा कष्ट सिर्फ़ इसलिए नहीं है कि हम प्रेम में भी कुछ पाना चाहते हैं और उस कुछ के अभाव में कष्ट झेलते रहते हैं। प्रेम में कुछ पाने की चाह कैसी…? फिरोज और सुमन का प्रेम निश्चल है। फिल्म पूरी तरह फैमिली ड्रामा है फिल्म में 3 जोड़ों की कहानी को प्रेम के लिए अपने-अपने नजरिए को बहुत ही खूबसूरती और सादगी से दर्शाया गया है। हर किरदार की बेहतरीन अदाकारी है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *