नितिन त्रिपाठी : कैडर नारेबाज़ी करता है, नेता कार्य.. यदि मुझे मोदीजी बना दें तो शाम 8 बजे ये घोषणा कर दूं…

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता हैं, नाम लेना उचित नहीं. मंत्रि मण्डल में विस्तार के समय उनकी खूब चर्चा थी मंत्री बनाए जाने की. पर उनकी समस्या यह कि वह लिखित में / ऑन कैमरा/ ट्विटर आदि पट उस समय भी जिसे भड़काऊ बयान बाज़ी कहना चाहिए चालू रही. PMO के एक अधिकारी से मेरी मित्रता थी, उसने फ़ोन करके विशेष बोला कि यह कभी भी मंत्री नहीं बनाए जाएँगे. ज़ाहिर सी बात है नहीं बने.
सुनने में बुरा लग सकता है, पर कड़वा सच यह है कि आप बड़ी पोस्ट पर हों, विधायक, सांसद, मंत्री हों – आपके स्टेट्मेंट सदैव नपे तुले होने चाहिए, यही राजनैतिक परिपक्वता होती है. जब आप स्ट्रीट फ़ाइटर होते हैं तब कुछ भी बोलिए चलता है, पर जैसे जैसे आप सीढ़ियाँ चढ़ते हैं, आपकी वाणी और हाव भाव मेच्योर हो जाने चाहिए. अब आपसे उम्मीद बयान बाज़ी की नहीं बल्कि ऐक्चूअल कार्य की होती है.
भाजपा में रहते हुवे श्री राम आंदोलन के लगभग सभी बड़े नेताओं से मिलना हुआ – आडवाणी जी, उमा श्री भारती जी, अशोक सिंघल जी, विनय कटियार जी, साध्वी रितंबरा दीदी. अगर कभी भड़काऊ स्पीच दी होगी, तब दी होगी, समय के साथ इतने परिपक्व हो गए थे कि बहुत महीन काटते थे. कैडर और नेता में यह बेसिक फ़र्क़ होता है. कैडर नारेबाज़ी करता है, नेता कार्य करता है.
ज़्यादा दूर क्यों जाएँ, मोदी जी और अब योगी जी को ही देख लीजिए. सुलगती सबकी है इनसे लेकिन इनके बयान माइक्रो स्कोप लेकर ढूँढ डालिए, आप एक वाक्य ऐसा न पाएँगे जिसे डिस्प्यूटेड कहा जा सके.
इन दिनों यह मुद्दे तूल पकड़ रहे हैं. भाजपा से जुड़े सभी पदाधिकारियों, नेताओं को सजग रहना चाहिए, वाणी में परिपक्वता रखनी चाहिए कि उनके बयानों से उन्ही का ही व्यक्तिगत नुक़सान न हो.
शेष जो है सो है ही.
……..
यदि मुझे मोदी जी बना दिया जाए तो शाम आठ बजे घोषणा कर दूँ कि भारत में वहतसप्प पर हेल्थ / आयुर्वेद सम्बंधित जानकारी फ़ॉर्वर्ड करना आज से इल्लीगल है.
आयुर्वेद अपने आप में बहुत अच्छी जीवन शैली बताती है. उस जीवन शैली को आप फ़ॉलो करेंगे तो निहसंदेह स्वस्थ लम्बा जीवन होगा, लेकिन आयुर्वेद सम्बंधित वहत्सप फ़ॉर्वर्ड ने इस पीढ़ी के बुजुर्गों के स्वस्थ का जितना नुक़सान किया है उसकी मिशाल न मिलेगी.
एक सज्जन मिले, ज़बर्दस्त डायबेटिक. शुगर कभी 250 से कम नहीं होती. साथ में थे दो बड़े बड़े गुलाब जामुन खाए. फ़िर पानी नहीं पिया. वहत्सप पर पढ़ा था कि शरीर ने मीठा खाया, यह दिमाग़ बताता है. दिमाग़ कैसे बताता है – मीठा खाने के बाद पानी पीते हैं. मीठा खूब खाओ बस पानी मत पियो. दिमाग़ को पता ही नहीं चलेगा मीठा खाया, कोई नुक़सान न होगा. डायबिटीज़ मीठे से नहीं पानी से होता है, इस खोज पर तो नोबल मिलना चाहिए.
एक सज्जन का कॉन्सेप्ट इससे भी ज़्यादा वैज्ञानिक. उनका तर्क न्यूटन के क्रिया प्रतिक्रिया सिद्धांत पर आधारित. शरीर में मीठा जाता है, उसकी प्रतिक्रिया शरीर देता है जिससे डायबिटीज़ होता है. तो मीठा खाओ और उसके साथ नमकीन भी खा लो, हिसाब बराबर. जितने पीस रसगुल्ले खाओ, उतने ही पीस समोसे खा लो डायबिटीज़ बेवक़ूफ़ बन जाएगा.
एक सज्जन कभी अपने बिस्तर से नहीं हिलते. नो फ़िज़िकल ऐक्टिविटी. रीजन उनका यह कि उन्होंने पढ़ा है स्वस्थ शरीर के लिए एक्सर्सायज़ से ज़्यादा भोजन ज़रूरी होता है. तो इसी लिए वह एक्सर्सायज़ में टाइम वेस्ट न कर भोजन पर ही फ़ोकस करते हैं. शुद्ध तेल में घर के पिसे बेसन की पकौड़ी, पराठे, पूरियाँ खाते हैं. डायबिटीज़ आदि तो पश्चिम के डाक्टरों की बताई बीमारियाँ हैं. सौ साल पहले कभी सुना था. अब उन्हें कौन बताए कि सौ साल पहले डायबिटीज़ का टेस्ट भी नहीं होता था और इतना पूरी पराठा उपलब्ध न था, फ़िज़िकल ऐक्टिविटी भी थी.
एक आम भारतीय इस अधकचरे ज्ञान के चक्कर में फँस शरीर का जितना नुक़सान करता है मिसाल मुश्किल है.

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