टीशा अग्रवाल : राष्ट्रधर्म सर्वोपरि.. बाकी तो…आल इज वेल!

राष्ट्र या धर्म ? तिरंगा या भगवा?

क्या यह वाकई बहस का विषय होना चाहिए?

हम जिस सनातन से हैं वहाँ ‘राष्ट्रधर्म सर्वोपरि’ माना जाता है। जहाँ धर्म और राष्ट्र दोनो को अलग समझा ही नहीं गया, दोनो का महत्व एक समान है।

जहाँ हम बचपन से प्रार्थना में वंदेमातरम गाते हैं, और अंत मे भारत माता की जय का नारा लगाते हैं। एक बात राष्ट्र से जुड़ी है, और एक आस्था धर्म से। जहाँ हम अपने देश को अपनी माता के समान मानते हैं, और सदैव उनकी जयजयकार करते हैं।

हम विजयी विश्व तिरंगा प्यारा गाते हैं। और ‘इतनी शक्ति हमे देना दाता’ भी हमारी ही प्रार्थना का हिस्सा है।

हम तो “जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी|” (जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी श्रेष्ठ हैं ) में विश्वास रखते हैं।

हम जन्म से ही राष्ट्र को समर्पित हैं। पर मृत्यु के बाद भी इसी धरा पर, इसी के जल में, इसी की वायु में रह जाते हैं।

हम तो राष्ट्रधर्म से जुड़े और राजधर्म से बंधे भीष्मपितामह के वंशज हैं…जिन्होंने बाणों की शैय्या पर सो जाना स्वीकार किया, किन्तु अपने धर्म से और राष्ट्र के प्रति अपने वचन से पीछे हटना नहीं स्वीकारा।

हम राम के वंशज हैं। जिन्होंने राजधर्म के लिये राजगद्दी छोड़कर वन जाना चुना। तो हम उस भरत के भी वंशज हैं जिन्होंने राष्ट्र के साथ अपने धर्म को भी आत्मसात कर…राज के सुख को त्याग चरण पादुका को चुना!

हम कृष्ण के वंशज है। जिनसे बेहतर न्याय, अन्याय, नीति और अनीति , कर्म, पाप पुण्य का ज्ञान तो कोई दे ही नहीं सकता। धर्म और राष्ट्र को सर्वोपरि रखकर उन्होंने राष्ट्रधर्म से हमे अवगत कराया।

हमारा राष्ट्र ही हमारा धर्म है। और हमारा धर्म ही हमारा राष्ट्र है। हमारी प्रतिबद्धता समान हैं।

हम अनर्गल प्रलाप में न पड़ें। यह सब बातें हमे अपने लक्ष्य और विचारों से भटकाने के लिए ही गढ़ी जा रही। इतना ध्यान रहें।

बाकी तो…आल इज वेल!

और हाँ

जय हिंद ?? जयतु सनातन।

 

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