सुरेंद्र किशोर : पात्रता खत्म होने के दूसरे ही दिन मुख्तार अब्बास नकवी ने खाली किया दिल्ली का सरकारी बंगला

मुख्तार अब्बास नकवी का राज्य सभा का कार्यकाल गत गुरुवार को समाप्त हुआ और उन्होंने अगले दिन लुटियन दिल्ली का बंगला छोड़ दिया।
मंत्री की हैसियत से उन्हें आठ कमरे का बंगला मिला था।
वे अगले एक माह तक अभी उसमें रह सकते थे।
किंतु अब वे अपने फ्लैट में हैं।
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आजादी के तत्काल बाद के अधिकतर विधायक,संासद,मंत्री अपना कार्यकाल समाप्त होते ही सरकारी मकान छोड़ देते थे।
पर, बाद के वर्षों से ,जब सत्तर के दशक में राजनीति का कलियुग शुरू करा दिया गया ,

अनेक बंगला धारी लोग खुद को सेवक के बदले राजा-महाराजा समझने लगे हैं ।
वे समझते हैं कि सरकारी धन,जमीन,बंगला आदि उनके पूर्वजों का है।
ऐसे में नकवी की इस बात के लिए तारीफ होनी चाहिए।
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दिल्ली के सरकारी मकानों के प्रति एक तथाकथित प्रगतिशील पत्रकार का रवैया देखिए।
कुछ दशक पहले उन्हें सरकार ने पद्मश्री दिया।
उन्होंने लौटा दिया।इस पर उन्होंने खूब नाम कमाया।
पर बाद में लोगों को मालूम हुआ कि उनके लिए पद्मश्री से अधिक महत्वपूर्ण सरकारी मकान है।
याद रहे कि सरकारी मकान में बने रहने की उनकी पात्रता जब समाप्त हुई तो सरकार ने उन्हें निकल जाने का नोटिस दिया।
फिर क्या था !
नोटिस के खिलाफ वे तुरंत कोर्ट चले गए।
कोर्ट में उन्हें मुंह की खानी पड़ी।
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हाल के वर्षों में कई बड़े नेताओं और उनके परिजनों ने दिल्ली के सरकारी बंगलों को स्मारक के रूप में बनाए रखने के लिए जमीन-आसमान एक किया।
पर भला हो,सुप्रीम कोर्ट का जिसने यह आदेश दे रखा है कि लुटियन दिल्ली को स्मारकों को नगर नहीं बनने दिया जाएगा।

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