NRI अमित सिंघल : “ब्राह्मणवाद” की आलोचना की आड़ में देशतोड़क शक्तियों का सनातन संस्कृति को विखंडित करने का कुत्सित प्रयास
और प्रधानमंत्री मोदी ने इन लोगो को कैसे उत्तर दिया? पिछले माह कर्नाटक में उन्होंने कहा कि नारद सूक्त अद्भुत ग्रंथ है। पिछले चार-पांच शताब्दियों में दुनिया में समाज विज्ञान पर जो कुछ भी लिखा गया है, अगर उसका अध्ययन करेंगे तो इस विषय के जानकार लोग पाएंगे कि नारद सूक्त उससे भी पुराना है और समाज विज्ञान का एक बहुत बड़ा उत्कृष्ट संग्रह हमारे पास है। जो पश्चिम के विचारों को जानते हैं, वो कभी नारद सूक्त के माध्यम से दुनिया को देखने का, समाज व्यवस्था को देखने का, मानवीय मूल्यों को देखने का प्रयास करे।
“ब्राह्मणवाद” की आलोचना की आड़ में देशतोड़क शक्तियां हिन्दुओ के प्रति घृणा (Hinduphobia) उकसाने और सनातन धर्म को विखंडित करने का कुत्सित प्रयास कर रही है।
कुछ समय से एक शब्द प्रायः सुनने को मिलता है: ब्राह्मणवाद। देशतोड़क शक्तियां कहती है कि वे ब्राह्मणवाद के विरोध में खड़ी है; ना कि हिन्दुओं के विरोध में। यह बदलाव हाल ही में आया है। पहले वे सीधे कहती थी कि वे हिंदुत्व के विरोध में खड़ी है। यहाँ तक कि पिछले वर्ष अमेरिका-कनाडा में “हिंदुत्व का विखंडन” वाले शीर्षक से तीन दिवसीय सम्मलेन भी आयोजित किया गया था।
कारण यह है कि प्रत्यक्ष रूप से हिंदू धर्म की कुत्सित, एजेंडा से प्रभावित, आलोचना करने पर अब हिंदू संगठन ऐसे लोगो के विरूद्ध स्थानीय न्यायालयों में हेट स्पीच या घृणा भड़काने का केस रजिस्टर कर रहे है। ऐसे केस भारत या अन्य विदेशी लोकतान्त्रिक राष्ट्रों के संविधान के अंतर्गत किये जाते है जो किसी की पहचान के विरोध में घृणा फ़ैलाने को अपराध मानते है।
आखिरकार आप किसी समलैंगिक समूह, ब्लैक व्यक्ति, प्रजाती (Race, gender), त्वचा का रंग, धार्मिक मान्यता, नाबालिग के विरोध में घृणा नहीं फैला सकते; उनके विरुद्ध हिंसा नहीं उकसा सकते।
हिंदू विरोधियों ने चाल बदली और कहा कि वे हिंदुत्व के विरोध में है, ना कि हिन्दुओं के विरोध में। यहाँ भी हिंदू संगठनों ने प्रतिकार किया कि हिंदुत्व का अर्थ ही है हिंदू का सत्व या मूल।
अतः कोर्ट से बचने के लिए इन शक्तियों ने “ब्राह्मणो” को गरियाना शुरू कर दिया; कहने लगे कि वे ब्राह्मणवाद के विरोध में है; ब्राह्मणो के प्रभुत्व के विरोध में है।
इस रणनीति का एक अन्य लाभ भी है – इनको लगता है कि शेष हिन्दुओं को लगेगा कि यह लोग केवल ब्राह्मणो को कोस रहे है, अतः वे चुप रहेंगे।
तभी कुछ सप्ताह पूर्व कुछ भारतीय मूल की अमेरिकी महिलाओ ने गूगल, माइक्रोसॉफ्ट इत्यादि के मुखिया – जो भारतीय मूल के ब्राह्मण है – के विरोध में नारेबाजी शुरू कर दी। मूर्खता यह कर दी कि अमेरिकी व्यवस्था में ऐसे पद भीख में नहीं मिलते। फिर, अगर इस आर्गुमेंट को मान ले, तब आप को वाल स्ट्रीट (अमेरिकी शेयर मार्किट एवं वित्तीय कंपनियां) के विरोध में भी खड़ा होना पड़ेगा जिन पर किसी अन्य समूह (नाम लिखना उचित नहीं होगा) का वर्चस्व है। अतः यह ड्रामा स्वतः समाप्त हो गया।
इन सब नारेबाजी एवं ब्राह्मण-हिंदू विरोध का चार लक्ष्य है – प्रधानमंत्री मोदी को सत्ता से हटाना; सनातन धर्म को अपमानित करना, प्रभुत्वविहीन करना; हिन्दुओं में विभाजन एवं विवाद बढ़ाना; और दूषित-छद्म तरीके से धर्मपरिवर्तन को बढ़ावा देना।
समस्या यह है कि ऐसे लोग कुछ लोगो को भड़का तो सकते है, लेकिन आप प्रधानमंत्री मोदी को सत्ता से नहीं हटा सकते। ना ही सनातन धर्म को प्रभुत्वविहीन कर सकते है। भड़काना तो दूर, ऐसे घिनौने प्रयास हिंदुओ को संगठित कर रहे है।
और प्रधानमंत्री मोदी ने इन लोगो को कैसे उत्तर दिया? पिछले माह कर्नाटक में उन्होंने कहा कि नारद सूक्त अद्भुत ग्रंथ है। पिछले चार-पांच शताब्दियों में दुनिया में समाज विज्ञान पर जो कुछ भी लिखा गया है, अगर उसका अध्ययन करेंगे तो इस विषय के जानकार लोग पाएंगे कि नारद सूक्त उससे भी पुराना है और समाज विज्ञान का एक बहुत बड़ा उत्कृष्ट संग्रह हमारे पास है। जो पश्चिम के विचारों को जानते हैं, वो कभी नारद सूक्त के माध्यम से दुनिया को देखने का, समाज व्यवस्था को देखने का, मानवीय मूल्यों को देखने का प्रयास करे।
उन्होंने आगे बताया कि हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि ज्ञान के समान पवित्र कुछ भी नहीं है और ज्ञान का कोई विकल्प भी नहीं है। और इसीलिए, हमारे ऋषियों ने, मनीषियों ने भारत को उस चेतना के साथ गढ़ा- जो ज्ञान से प्रेरित है, विज्ञान से विभूषित है। जो बोध से बढ़ती है, और शोध से सशक्त होती है। और सत्य का अस्तित्व संसाधनों पर नहीं, सेवा और त्याग पर टिका होता है।
यही तृप्तिकरण (fulfilment) है। अर्थात, किसी की क्षमताओं या चरित्र को पूरी तरह से विकसित करने के परिणामस्वरूप संतुष्टि या खुशी। इस से क्या शिकायत हो सकती है?
