सुरेंद्र किशोर : ‘कुत्ते और क्रिमिनल की ‘आयु’ दस साल… आतंकवाद और भ्रष्टाचार
बचपन में एक कहावत सुनी थी,
‘‘कुत्ते और क्रिमिनल की ‘आयु’ दस साल होती है।’’
पर,अस्सी के दशक से ऐसे -ऐसे क्रिमिनल प्रकट होने लगे
जिनकी ‘आयु’ बढती चली़ गई।
ऐसा क्यों हुआ ?
क्योंकि उन्हें ‘राजनीति’ से बल मिलने लगा।
खास कर सत्ताधारी राजनीति से।
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नतीजतन, समय बीतने के साथ क्रिमिनल खुद भी राजनीति में शामिल होकर सदन की शोभा बढ़ाने लगे।
फिर क्या था ?
पुलिस -प्रशासन क्रिमिनल राजनेताओं के आगे-पीछे विचरण करने लगा।
कुछ जिलों में तो खूंखार की कमीज के एक पाॅकेट में डी.एम. और दूसरे पाॅकेट में एस.पी.रहने लगे।
यह सिर्फ एक प्रदेश की बात नहीं रही।
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पर जिन -जिन प्रदेशों में खास तह की राजनीति का सूरज डूबने लगा,वहां के चंद्रमा का तेज भी मद्धिम होने लगा।
कुछ कारणवश कई जिलों के बड़े खूंखार लोग दृश्य से ओझल होने लगे।
हालांकि छोटे खूंखार अब भी सक्रिय हैं।
छोटे खूंखार कब बड़े बन जाएंगे, कोई ठिकाना नहीं ।
वहां के शासक गण नजर रखें।
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यानी कुत्ते की आयु तो वही है,
किंतु क्रिमिनल की घट गई।
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आतंकवाद और भ्रष्टाचार।
इस देश की यही दो सबसे बड़ी समस्याएं हैं।
हालांकि समस्याएं और भी हैं।
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जातीय-सांप्रदायिक ‘वोट बैंक’ के दायरे के बाहर वाली जनता तो इन्हें ही सबसे बड़ी समस्याएं मानती है।
जो राजनीतिक दल इन दो प्रमुख समस्याओं को हल करने की राह में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से बाधा डालेंगे ,देर-सवेर इस देश की जनता उनको कहीं का नहीं छोड़ेगी।
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भ्रष्टाचार और आतंकवाद के समर्थकों को जनता ने नकारना शुरू भी कर दिया है।
हालांकि नकारने की रफ्तार अभी धीमी है।
ये दो समस्याएं जैसे -जैसे अपना विकराल स्वरूप दिखाएगी,
इन समस्याओं को लेकर अगर-मगर करने वाले दलों पर आफत आनी तेज हो जाएगी।