कलेक्टर श्रीमती रानू साहू : कार्यकाल के 1 बरस.. फ्लॉवर, फायर और मोटिवेटर भी..आमजन की कलेक्टर..
ग्रामीण परिवेश में पली-बढ़ी श्रीमती साहू का जीवन के प्रति व्यापक दृष्टिकोण के.एन.कॉलेज में छात्रों को मोटिवेट करते हुए उनकी इस बात से स्पष्ट होता है -” जीवन के हर मोड़ पर अनेक मुश्किलें आएंगी, पर अपना आत्मविश्वास कायम रखना सफलता के लिए जरूरी है. खुद पर दृढ़ संकल्पित होकर अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर रहें और उसे पाने पूरी निष्ठा से समर्पित होकर प्रयास करते रहें. अपने आप को कमतर आंकना ही सबसे बड़ा पाप है. जब तक आपको खुद पर विश्वास नहीं रहेगा, आप दुनिया में कैसे साबित कर पाएंगे कि आप में भी कुछ कर गुजरने का जज्बा है. आपकी यह उम्र बहुत कुछ कर गुजरने की है, जो एक ही बार मिलती है. इसलिए जीवन की कठिनाइयों से घबराकर रुकिए मत, मंजिलों तक पहुंचने तक कदम-दर-कदम बढ़ते रहिए.”
कलेक्टर अपने स्तर पर सरकार के प्रतिनिधि हैं। उन्हीं के काम पर जिले में जनता को सुशासन देना निर्भर करता है। उन्हीं के कार्य क्रियान्वयन की शैली से सरकार की विभिन्न योजनाएं जनता तक पहुंचती हैं।
जिला स्तर पर कलेक्टर के अच्छे कार्य का बेहतर प्रभाव होता है, परंतु जहां ढिलाई रहती है उससे सरकार की छवि प्रभावित होती है। कोरबा कलेक्टर श्रीमती रानू साहू की तेजतर्रार काम करने शैली से जिले में राज्य सरकार की छवि निखरी है।
प्रशासन चलाने में सबसे अहम बात है जनता से सीधा संवाद। बीते एक वर्ष के मध्य कलेक्टर श्रीमती रानू साहू कार्यशैली में ज्यादा से ज्यादा दौरे करना और जनता से चर्चा-परिचर्चा करना शामिल है। कोरबा में वे पदस्थापना के काल से ही जनता से संवाद निरंतर रखकर समस्याओं के समाधान की ओर बढ़ने का प्रयास उन्होंने किया है।
कार्यभार संभालने के साथ ही उन्होंने जिले में काम करने के लिए कुछ प्राथमिकताएं निर्धारित की। जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार प्रमुख थे। कार्यभार ग्रहण करने के बाद भाषण देना और लंबी-चौड़ी प्राथमिकताएं तय करने का काम सब करते हैं लेकिन उनको कार्यरूप में परिणित कर मूर्तरूप देना करना अलग बात है। श्रीमती साहू ने तय प्राथमिकताओं को मूर्त रूप देने में कोई कसर नही छोड़ी।
प्रथम प्राथमिकता..
श्रीमती साहू ने कार्यभार ग्रहण करने के बाद उन्होंने मीडिया से संक्षिप्त चर्चा में कहा था कि उनकी प्रथम प्राथमिकता शिक्षा के क्षेत्र में उन्नयन को लेकर है। इस दिशा में उल्लेखनीय काम उन्होंने किया भी। चूंकि वे ग्रामीण परिवेश से किसान परिवार से आतीं हैं, सो जीवन में शिक्षा की भूमिका को वे बेहतर समझतीं हैं।
मंच कितना भी बड़ा हो श्रीमती रानू साहू छत्तीसगढ़ी में अपनी बात रखने का मोह नही छोड़ पाती हैं । चूंकि वे ग्रामीण परिवेश में पली-बढ़ी, किसान परिवार से आईं हैं, सो वे शिक्षा के महत्व को भी लोगों के बीच रेखांकित करना नहीं भूलतीं हैं। देखें ऐसा ही एक vdo
उल्लेखनीय है कि शिक्षा के क्षेत्र में श्रीमती रानू साहू उत्कृष्ट योगदान, प्रदर्शन को लेकर वे पूर्व राष्ट्रपति स्व. प्रणव मुखर्जी द्वारा पुरस्कृत भी की जा चुकीं हैं।
दूसरी प्राथमिकता
दूसरी प्राथमिकता मीडिया चर्चा में ही उन्होंने स्वास्थ्य को लेकर काम करने की कही थी, उन्होंने इस क्षेत्र में उल्लेखनीय काम किया भी। एक जिला अधिकारी ने नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर बताया कि ” स्वास्थ्य के क्षेत्र में अब तक के सभी कलेक्टरों से बेहतर काम श्रीमती रानू साहू ने किया है। उन्होंने दूरस्थ ग्रामीणांचलों में व्यापक स्तर पर स्वास्थ्य शिविर आयोजित किए और जिले के बाहर के विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम की चिकित्सा सुविधाओं का लाभ ग्रामों तक पहुंचाया और स्वास्थ्य शिविर के समाप्त होने के बाद भी वे अपना मूल प्रयोजन नहीं भूलीं। शिविर समाप्त होने के बाद भी शिविर में आए लोगों के स्वास्थ्य को लेकर लगातार अपडेट लेती रहीं।”
स्वास्थ्य के विषय पर उनकी गंभीरता पहाड़ी कोरवा आदिवासी बच्चों पर भी झलक जाती है। आपको याद होगा कुछ अरसे पूर्व कोरबा आदिवासी बच्चों की बदहाल स्थिति के समाचारों को लेकर किस तरह का शोर कुछ समय तक प्रदेश भर में राजनीतिक दलों के लोग करते रहे। इस बिंदु पर देखभाल कर रहे डॉ. धर्मवीर सिंग बताते हैं – “शोर मचाने पर पूर्णविराम भी लग गया, नेता-संस्थाएं दूसरे मुद्दे की खोज में जुट गए लेकिन कलेक्टर मैडम के लिए यह मुद्दा नहीं था बल्कि एक चुनौती थी और वे उन बच्चों की ताजा स्थिति पर लगातार अपडेट लेते रहीं। यही नहीं उनके इलाज में कोई कसर न रहे इसके लिए विशेष रूप से फण्ड भी जारी किया। जब इलाज के लिए दोनों की स्थिति संवेदनाहीन, निर्लिप्त भाव की थी। आज वे इमोशंस समझते हैं और प्रतिउत्तर भी प्रकट करते हैं।”
टीम कलेक्टर है तो मुमकिन है.. ऐतिहासिक बना दिया कोरबा के लिए 18 नवंबर..
कोरोना संक्रमण से बचाव को भी अपनी प्राथमिकता में उन्होंने रखा और यही कारण है कि 18 नवंबर 2021 के पूर्व जितना वैक्सिनेशन पूर्व के 10 महीनों में नहीं हुआ था, 18 नवंबर को उससे भी ज्यादा हो गया। तब निश्चित रूप से जिला कलेक्टर श्रीमती रानू साहू और उनकी पूरी टीम अन्य जिलों के लिए एक प्रेरणा के रूप में उभरकर सामने आई। कोविड से लड़ने के लिए जिले भर में एक लाख वैक्सिनेशन के तय 01 लाख के आंकड़ों को पार करते हुए 18 नवंबर ऊर्जानगरी के इतिहास में दर्ज करा दिया। दूरस्थ आदिवासी अंचल तक इसका लाभ कलेक्टर के कुशल मार्गदर्शन में पूरी टीम ने पहुंचाया था।
इसके साथ ही रोजगारपरक योजनाओं का क्रियान्वयन, राज्य सरकार की बजट घोषणाएं, फ्लैगशिप योजनाओं का गतिशील क्रियान्वयन भी उनकी प्राथमिकता में रहा है। नगरीय विकास के कार्यों को गति देने में उनकी भूमिका अद्भुत रही है।
श्रीमती रानू साहू को गुस्सा क्यों आता है..?
राज्य सरकार द्वारा घोषित योजनाओं के क्रियान्वयन में लापरवाही उनको पसंद नहीं है। 7 जून को जिले में पदभार ग्रहण करने के साथ ही उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि किसी भी अधिकारी-कर्मचारी के पास कोई सुझाव है तो बेहिचक अपनी बात मेरे सामने रखे। काम के विषय पर किसी भी प्रकार की ढिलाई बर्दाश्त नहीं की जाएगी। यही कारण है कि बार-बार चेतावनी देने के बाद भी कोई लापरवाही बरतने का प्रयास करे तो वे फायर हो जातीं हैं लेकिन इसके बाद भी बात को गांठ बांध कर नहीं रखतीं और सुझाव को गंभीरता से लेतीं हैं।
इस विषय पर कोरबा को बनाया देश का प्रथम जिला
कलेक्टर श्रीमती रानू साहू की पहल पर कोरबा जिला देश का पहला जिला है, जहॉं ड्रायविंग लाईसेंस परिवहन कार्यालय से बाहर शिविर में बनाया जा रहा है। छत्तीसगढ़ के अन्य जिलों की अपेक्षा कोरबा में विभिन्न समस्याओं के निदान को श्रीमती साहू के मार्गदर्शन में बेहतर तरीके से सुलझाया जा रहा है। राशन कार्ड,पेंशन, जाति, निवास व जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र, नल कनेक्शन, अतिक्रमण, वन अधिकार पत्र, अभिलेख दुरूस्ती, राशन कार्ड में नाम जोडने व काटने, नोनी सुरक्षा योजना, नया आयुष्मान कार्ड, दिव्यांगता प्रमाण पत्र, बिजली बिल सुधार सहित अन्य विषयों से संबंधित समस्याएं लोगों के घर पहुंचकर दूर की जा रही है।
श्रीमती रानू साहू की कार्यशैली का परचम जैसे त्रिवेणी का संगम
मनु स्मृति में राजा के गुणों एवं कर्तव्यों के विषय में कहा गया है कि प्रजा का ध्यान रखने वाले में आध्यात्मिक है तो संवेदनशीलता का स्वभाव उसमें होगा और संवेदनशील होने का गुण सभी को सहयोग के लिए प्रेरित करेगा।
‘बाइबल इन इण्डिया’ नामक ग्रन्थ में लुई जैकोलिऑट ने भी लिखा है – “मनुस्मृति ही वह आधारशिला है जिसके ऊपर मिस्र, परसिया, ग्रेसियन और रोमन कानूनी संहिताओं का निर्माण हुआ। ” जिलाधीश श्रीमती रानू साहू की प्रशासनिक स्तर पर, नीजि कार्यशैली में आध्यात्मिकता,सहयोग, संवेदनशीलता ये सारे गुण स्पष्ट रूप से दृष्टिगत होते हैं।
आध्यात्म : बिना प्रचार के प्रसाद…
जिले में स्थित कनकी स्थित महादेव के मंदिर में कलेक्टर मैडम का आध्यात्मिक पक्ष सामने आया। महाशिवरात्रि के अवसर पर श्रीमती रानू साहू दर्शन करने गईं और कतार में खड़े भक्तों को जब वे स्वयं प्रसाद बांट रहीं थीं, उस मध्य कुछ लोगों ने प्रचारित करने के लिए फ़ोटो शूट करना चाहा लेकिन श्रीमती साहू ने विनम्रता से मना कर दिया। मंदिर की दानपेटी में भी जो अर्पण कीं, उसकी झलक भी लोगों को नहीं मिली। “नेकी कर दरिया मे डाल” यह अर्थ खोती अनुकरणीय कहावत आज भी प्रासंगिक है तो कलेक्टर श्रीमती रानू साहू जैसे जमीन से जुड़े लोगों के कारण, जो किसी काम को छोटा नहीं समझते और प्रचार भी नहीं चाहते।
सहयोग : प्रथम प्राथमिकता विभागीय अधिकारियों के साथ बेहतर समन्वय
कुछ समय पूर्व ऐसा ही दृश्य सामने आया था जब कलेक्ट्रेट परिसर में लंच के लिए ऑफिस से बच्चे के साथ निकलते ही श्रीमती साहू ने सीढ़ियों से ऊपर आ रहे DIC के तिर्की साहब के साथ अन्य लोगों को देखकर पूछ बैंठी – ” कैसे ?” उन्होंने बताया कि मीटिंग थी ? उनके द्वारा मैडम को सूचना करने में चूक हुई थी। लगभग 3:30 बज रहे थे। तत्काल श्रीमती साहू ने लंच का कार्यक्रम कैंसिल कर सबको मीटिंग हॉल में बैठने को कहा, चूंकि आगे शनिवार, रविवार की छुटियां भी थी, विभागीय काम की गति बनी रहे, सो मीटिंग के बाद ही वे लंच के लिए निकलीं।
संवेदनशीलता : बुजुर्गों के साथ ही मूक जीवों के प्रति संवेदनशील
कलेक्टर श्रीमती रानू साहू कई अवसरों पर बुजुर्गों के प्रति एक्सट्रा संवेदनशीलता बरतती हैं। ऐसा ही एक अवसर पसान प्रवास के दौरान वापसी में ग्राम घुमानीडांड के शासकीय उचित मूल्य की दुकान के निरीक्षण के मध्य सामने आया जब ग्राम घुमानीडांड की बुजुर्ग महिला श्रीमती बुधनी बाई को मैले कुचैले कपड़े और उनके पैरों को बिना चप्पल के देख कलेक्टर श्रीमती साहू के निर्देश पर तत्काल बुजुर्ग महिला को साड़ी और चप्पल एसडीएम श्री कौशल प्रसाद तेंदुलकर ने उपलब्ध कराएं थे।
बेजुबान मवेशियो को गर्मी के दिनो मे पानी पिलाने की व्यवस्था अगर प्रशासनिक पहल पर हों तो ये फिर एक बड़ी बात हो जाती है। कोरबा कलेक्टर श्रीमती रानू साहू ने संवेदनशीलता दिखाते हुए निगम आयुक्त को आवारा मवेशियो के लिये गर्मी के दिनो मे पानी की समुचित व्यवस्था करने के निर्देश दिये थे। पत्रकार अरविंद पांडे कहतें हैं – ” इस तरह की जागरूकता अभी तक के किसी अधिकारी ने नही दिखाई थी। श्रीमती साहू की पहल उच्च प्रशासनिक स्तर के अधिकारी की सड़क पर पड़े बेजुबानो के प्रति अथाह करुणित मन की गाथा कह जाता है। गर्मी मे पानी की व्यवस्था आम इंसान तो कर लेता है लेकिन बेजुबान कहां जाएंगे ? किससे पानी मांगेगे ? उनकी ओर तो कोई देखने वाला नही यही सोच कर बेजुबान रह जाते है उनके मालिक तो उन्हे ऐसा छोड़ते जैसे उन्हे अब कोई लेना देना नही आवारा मवेशियो के लिये प्रशासनिक व्यवस्था होगी.. इसकी उम्मीद बेजुबानो को क्या जुबान वालो को भी नही थी लेकिन कलेक्टर श्रीमती साहू ने निराशा को भी आशा में बदलकर लोगो को यह संदेश भी दे दिया कि प्रशासन जुबान वालो के लिये ही नही बेजुबानों के लिये भी है। ”
वरिष्ठ पत्रकार तपन चक्रवर्ती – कलेक्टर जनहित के मुद्दों एवं कोरबा जिले के चहुंमुखी विकास को लेकर बहुत ही संवेदनशील
विगत 40 वर्षों से पत्रकारिता जगत में जनसत्ता, फाइनेंशियल एक्सप्रेस सहित कई पत्र-पत्रिकाओं लंबे समय से जुड़े रहे जनहित के मुद्दों पर अपनी बेबाक राय रखने वाले “दादा” के नाम से लोगों के मध्य पुकारे जाने वाले वरिष्ठ पत्रकार तपन चक्रवर्ती प्रशासनिक अधिकारियों की कार्यशैली पर खुलकर बात रखने के लिए भी जाने जाते हैं। नवपदस्थ ज़िलाधीश श्रीमती रानू पर की पदस्थापना से लेकर अब तक की जिले में नजर आ रही कार्यशैली पर उन्होंने लिखा है –
“40 वर्षों की पत्रकारिता के दौरान मैंने कई राजनीतिक एवं प्रशासनिक उथल-पुथल को देखा एवं इसका बारीकी से विश्लेषण भी करता रहा हूं। कोरबा के जिला बनने के बाद प्रशासनिक स्तर पर भी समय समय पर राजनीतिक महत्वाकांक्षा को ध्यान में रखते हुए कई परिवर्तन होते रहे हैं और कुछ कलेक्टरों ने अपनी कार्यशैली को लेकर एक साफ़ सुथरी छवि भी बनाई ।
वर्तमान में नवपदस्थ कलेक्टर श्रीमती रानू साहू की कार्यशैली से मैं बहुत प्रभावित हुआ हूं। वे एक ईमानदार , कर्मठ एवं दक्ष प्रशासनिक अधिकारी हैं और जनहित के मुद्दों एवं कोरबा जिले के चहुंमुखी विकास को लेकर बहुत ही संवेदनशील हैं और समर्पित हैं। उनके द्वारा अभी तक जनहित में एवं कोरबा जिले के विकास को लेकर जो भी निर्णय लिये गए हैं , वह स्वागत योग्य है । मैं आशा करता हूं कि वह इनके प्रभावशील क्रियान्वयन को लेकर भी संबंधित विभाग के अधिकारियों के साथ मिलकर इसे ईमानदारीपूर्वक समयावधि में पूर्ण करने का निष्ठापूर्वक प्रयास कर अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करेंगी।
पूर्व में भी, श्रीमती रानू साहू की छवि एक तेज़तर्रार अधिकारी के रूप में रहीं है और वह आम जनता में भी लोकप्रिय रहीं है।
मैं परमपिता परमेश्वर से उनके स्वस्थ एवं दीर्घायु जीवन की नेक कामना करते हुए उनके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूं और यह आशा करता हूं कि वह जहां कहीं भी पदस्थ रहे, इसी तरह ईमानदारी,निष्ठापूर्वक एवं दक्षत्तापूर्वक अपनी सेवाएं देती रहेंगी।
अस्तु…….
जय हिन्द, वन्देमातरम, जय भारत.
जय छत्तीसगढ़..
छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया…”
आमजन को शासन-प्रशासन से जोड़ती श्रीमती रानू साहू की कार्यशैली और वर्ष 2002 में बिलासपुर उच्च न्यायालय का छत्तीसगढ़ी में ऑर्डर शीट
कहने को तो जिलेवासियों की समस्याओं को दूर करने के लिए, क्षेत्र के विकास को नया स्वरूप प्रदान करने के जिले के उच्चतम पद पर नियुक्त होकर लोग आते हैं लेकिन यहां की स्थानीय भाषा छत्तीसगढ़ी को अपनी दिनचर्या में प्रयोग करने से झिझकते नजर आते है।
छत्तीसगढ़ी बोली जिसे अब राजभाषा का दर्जा दिया गया है इसमें इतनी सहजता और मिठास है कि यह मन को भीतर तक छू लेती है। इसमें इतनी सरलता और स्वाभाविकता है कि बोले गए बोल कानों में रस घोल जाते हैं और स्वास्थ्य लाभ के लिए जूझ रहे किसी इंसान को अगर जिले के मुखिया द्वारा छत्तीसगढ़ी बोली में संवाद किया जाए तो स्वाभाविक है कि पीड़ित की आधी समस्या ऐसे ही हल हो जाए या मरीज की आधी बीमारी बोली की मिठास से आधी हो जाए।
यह घटना कोरबा में कार्यभार ग्रहण करने के मात्र 3 दिनों बाद की विकासखंड करतला की है, जहां जिले की नवपदस्थ जिलाधीश श्रीमती रानू साहू दौरे पर थी। इस दौरान करतला के स्थानीय अस्पताल में भी निरीक्षण के लिए गईं। वहां भर्ती एक महिला मरीज को जब छत्तीसगढ़ी भाखा में हालचाल पूछा तो महिला मरीज को वो अपनापन याद आया होगा, जो अब तक पहले कभी नही मिला।
हालांकि ये एक छोटी Vdo Clip थी लेकिन इसमें जिलाधीश श्रीमती साहू के कार्यशैली की झलक से स्पष्ट दृष्टिगत हुआ था कि ” आम आदमी के कलेक्टर ” के रूप में उनकी छवि बनेगी और ऐसा हुआ भी है।
Vdo में वे मरीज से छत्तीसगढ़ी में पूछ रहीं हैं – ” कोन गांव के अस ”
इस लिंक में VDO
महिला मरीज प्रतिउत्तर में कहती है – ” जाटा”
भाषा में पिता सी गरिमा होती है लेकिन बोली में मां की ममता सा ठेठपन-अल्हड़पन समाया होता है। नवपदस्थ ज़िलाधीश श्रीमती रानू साहू की कार्यशैली बिलासपुर उच्च न्यायालय में छत्तीसगढ़ी में पारित एक आदेश की याद दिला गई थी।
प्रसंगवश जब बात चली है तो आपको बता दें वर्ष 2002 में एक प्रकरण बिलासपुर उच्च न्यायालय ने पारित किया था, जिसमें ऑर्डर शीट छत्तीसगढ़ी में पारित हुआ था। इस ऑर्डर शीट में लिखा गया था –
” दिनांक 8.1.2002
आवेदिका कोति ले श्री के.के. दीक्षित अधिवक्ता,
शासन कोति ले श्री रणबीर सिंह, शास. अधिवक्ता
बहस सुने गइस।
केस डायरी ला पढ़े गेइस
आवेदिका के वकील हर बताइस के ओखर तीन ठन नान-नान लइका हावय। मामला ला देखे अऊ सुने से ऐसन लागत हावय के आवेदिका ला दू महिना बर जमानत मा छोड़ना ठीक रही।
ऐही पायके आदेश दे जात है के कहुँ आवेदिका ला पुलिस हर गिरफ्तार करथे तो 10000/- के अपन मुचलका अऊ ओतके के जमानतदार पुलिस अधिकारी लंग देहे ले आवेदिका ला दू महीना बर जमानत मे छोड़ देहे जाय।
आवेदिका हर ओतका दिन मा अपन स्थाई जमानत के आवेदन दे अऊ ओखर आवेदन खारिज होए ले फेर इहे दोबारा आवेदन दे सकथे।
एखर नकल ला देये जाये तुरन्त।”
संघर्ष ने हर पग पर विजयश्री की माला पहनाकर किया स्वागत
ग्रामीण परिवेश में पली-बढ़ी श्रीमती साहू का जीवन के प्रति व्यापक दृष्टिकोण एक समारोह में उनकी इस बात से स्पष्ट होता है -” जीवन के हर मोड़ पर अनेक मुश्किलें आएंगी, पर अपना आत्मविश्वास कायम रखना सफलता के लिए जरूरी है. खुद पर दृढ़ संकल्पित होकर अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर रहें और उसे पाने पूरी निष्ठा से समर्पित होकर प्रयास करते रहें. अपने आप को कमतर आंकना ही सबसे बड़ा पाप है. जब तक आपको खुद पर विश्वास नहीं रहेगा, आप दुनिया में कैसे साबित कर पाएंगे कि आप में भी कुछ कर गुजरने का जज्बा है. आपकी यह उम्र बहुत कुछ कर गुजरने की है, जो एक ही बार मिलती है. इसलिए जीवन की कठिनाइयों से घबराकर रुकिए मत, मंजिलों तक पहुंचने तक कदम-दर-कदम बढ़ते रहिए.”
13 दिसंबर 2007 को जीवन का पहला कदम, जब कलेक्टर श्रीमती रानू साहू की शासकीय सेवा का आरंभ कोरबा से हुआ और यहीं रहते हुए उनको आई.ए.एस. का पद अपार संघर्ष में प्राप्त हुआ और छत्तीसगढ़ में ही इस पद की जिम्मेदारी निभाने का अवसर मिला. 12वीं तक की शिक्षा गरियाबंद जिले के छोटे से गांव पांडुका से उन्होंने प्राप्त की. शिक्षकों का प्रोत्साहन उनके जीवन में उत्कर्ष का आधार बना और कई अवसर पर वे इसे व्यक्त भी करतीं हैं. इसके पीछे भावना सम्भवतः यह भी है कि सभी गुरुजनों का सम्मान करें.
अपना संघर्ष याद करते हुए आगे उन्होंने बताया -“मेरे लिए मेरा गांव और परिवार सब कुछ था. मैं पीएमटी के लिए रायपुर जाना चाहती थी, पर बड़े मुझे गांव से बाहर नहीं जाने देना चाहते थे. झगड़ा किया, किसी तरह उन्हें मनाया, कि मुझ पर भरोसा रखें, मैं जरूर कुछ कर के दिखाउंगी. पीएमटी में सफल नहीं हुई, फिर बीएससी किया. पीएससी के बारे में पता चला तो प्रयास किया, सफल हुई और 21 साल की उम्र में मैंने डीएसपी की वर्दी हासिल की. मैं रुकी नहीं, यूपीएससी प्रयास किया और सफल हुई. मेरे गुरुजनों का प्रोत्साहन और बड़ों का आशीष ही था, जो छह मार्च का दिन था और मैं कोरबा में ही पदस्थ थी, मेंस का रिजल्ट आया और मैं पास हो गई. फिर इंटरव्यू हुआ और छह मई को फाइनल रिजल्ट आया, जिसमें मैं आइएएस के पद पर चुनी गई.”
डी.एस.पी. पद खोने की स्थिति में भी हार नहीं मानीं
श्रीमती साहू ने कठिन पुलिस ट्रेनिंग करते हुए यूपीएससी प्री दिया. जब रिजल्ट आया, तीन कंप्यूटर सेंटर गई, दो सेंटर में कहा गया कि आपका रोल नंबर नहीं है. उन्होंने कहा ऐसा हो ही नहीं सकता. उन्हें पूरा विश्वास था. तीसरे सेंटर ने कहा कि आपका रोल नंबर है. इसके बाद उन्होंने मेंस की तैयारी छुट्टी मांगी तो नहीं मिली. एक महीना मेंस परीक्षा बचा था, तब श्रीमती साहू ने सगाई होने की बात कह दो दिन की छुट्टी मांगी. किसी तरह छुट्टी मिली और वे दिल्ली चली गई.
परीक्षा को 15 दिन बचे थे, तब श्रीमती साहू को कॉल आया कि अगर आप वापस नहीं आईं, तो आपको बर्खास्त कर देंगे. आपकी फाइल कैबिनेट में चली गई है, उनका जवाब था “जो होगा देखा जाएगा, मुझे अपने आप में विश्वास है.” और भारी तनाव के बीच भी मेंस में उन्हें सफलता मिली.
