वेदांता इस क्षेत्र में भारत को देगी नई उड़ान..

अनिल अग्रवाल के नेतृत्व में वेदांता समूह मोदी सरकार की सेमीकंडक्टर PLI योजना में शीर्ष पर आने प्रयासरत है। इको-फासिस्ट, वामियों और चीन ने जब तमिलनाडु में वेदांता समूह के स्टरलाइट कॉपर प्लांट को बंद करने के लिए एक समय एड़ी चोटी का जोर लगा दिया था, तब भी समूह ने प्रयास बंद नहीं किया।

विगत पिछले दो वर्षों में धातुओं और कच्चे माल की कीमतों में वृद्धि के साथ इस समूह का उदय तय माना जा रहा है। वेदांता समूह की कंपनियां रिकॉर्ड मुनाफा कमा रही हैं और इस सफलता से उत्साहित वेदांता समूह ने सेमीकंडक्टर क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए ताइवान स्थित फॉक्सकॉन के साथ एक संयुक्त उद्यम स्थापित किया है।

दुनिया के सबसे बड़े इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माताओं में से एक फॉक्सकॉन ने पिछले कुछ वर्षों में इस कंपनी ने भारत में भारी निवेश किया है।

वेदांता 15 अरब डॉलर के निवेश की योजना बना रही

10 अरब डॉलर की मोदी सरकार द्वारा घोषित PLI योजना को भुनाने के लिए वेदांता ने सेमीकंडक्टर चिप्स और डिस्प्ले मैन्युफैक्चरिंग में लगभग 15 अरब डॉलर निवेश करने की योजना बनाई है। फॉक्सकॉन भारत की इलेक्ट्रॉनिक्स मांग को लेकर भी काफी उत्साहित है और कुछ वर्षों में 350 मिलियन डॉलर का निवेश उसके द्वारा किया गया है। अब ताइवान की इस कंपनी द्वारा वेदांता समूह में अल्पमत हिस्सेदारी पाने के लिए अरबों डॉलर का निवेश किए जाने की उम्मीद है।

वेदांता समूह का अनिल अग्रवाल के नेतृत्व में जोरदार ‘comeback’ करने का इतिहास रहा है। वामपंथी और राष्ट्र-विरोधी तत्वों के समन्वित विरोध के कारण कंपनी के तमिलनाडु स्थित कॉपर प्लांट को बंद करने के कारण शेयर न्यूनतम स्तर पर पहुंच गए थे और विश्लेषक फर्म भी इसके दिवालिया होने की भविष्यवाणी कर रहे थे। कोरोना वायरस-प्रेरित लॉकडाउन के दौरान, इसके शेयरों में गिरावट आई और कंपनी को एक बार फिर आसन्न आपदा का सामना करना पड़ा, लेकिन धातुओं, ऊर्जा और पेट्रोकेमिकल की कीमतों के पुनरुद्धार के साथ कंपनी ने अपनी शानदार वापसी की।

उल्लेखनीय है कि वर्ष 1980 से अब तक, वेदांता समूह को लगातार कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है और यह समूह कई बार पतन के कगार पर पहुंच गया, लेकिन हर बार और भी मजबूती के साथ वापसी करता है। छोटे स्तर  स्क्रैप धातुओं का कारोबार बहुत छोटे से शुरू करने वाले अग्रवाल परिवार का आज अरबों डॉलर का साम्राज्य है और शायद यही कारण है कि वे बड़े जोखिम उठाने से नहीं कतराते।

वेदांता समूह ने पहले भी सेमीकंडक्टर निर्माण व्यवसाय में प्रवेश करने के प्रयास को सरकारी समर्थन और शातिर नौकरशाहों की कमी ने इस प्रयास को विफल कर दिया। परंतु, जब से महामारी शुरू हुई है, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की मांग में वृद्धि के कारण अर्धचालकों की मांग में वृद्धि हुई है। आमतौर पर सिलिकॉन से बने अर्धचालक आज की वैश्वीकृत दुनिया में एक रणनीतिक तकनीकी संपत्ति है।

कार बैटरी से लेकर लैपटॉप तक, स्मार्टफोन से लेकर घरेलू उपकरणों तक, गेमिंग कंसोल से लेकर सभी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों तक, सेमीकंडक्टर्स स्मार्ट इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को पावर देने का आधार है। वैश्विक अर्धचालक उद्योग के वर्ष 2018 तक लगभग 481 बिलियन डॉलर पहुंचने का अनुमान है और इसमें दक्षिण कोरिया, ताइवान और जापान की कंपनियों का वर्चस्व है।

वैश्वीकरण के इस दौर में अर्धचालक एक रणनीतिक संपत्ति हैं और अर्धचालक निर्माण एक कठिन प्रक्रिया है। अगर भारत सरकार वर्ष 2025 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के सपने को साकार करना चाहती है, तो इसमें महीनों लग सकते हैं और मोदी सरकार इतनी लंब अवधि तक का इंतजार नहीं कर सकती।

यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश में सेमीकंडक्टर क्रांति लाने के लिए आक्रामक रणनीति बना रहे हैं।इस तथ्य को देखते हुए कि सॉफ्टवेयर उद्योग के मामले में भारत पहले से ही संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद दूसरा सबसे बड़ा खिलाड़ी है, सरकारी समर्थन के माध्यम से हार्डवेयर निर्माण में बढ़त देश को एक तकनीकी पावरहाउस बना देगी।

वेदांता जैसी कंपनी, जिसके पास धातु और ऊर्जा व्यवसाय का अनुभव है, सेमीकंडक्टर व्यवसाय की जटिलता और उछाल से निपटने के लिए एकदम सही होगी। धातुओं का व्यापार चक्र अर्धचालकों के समान ही होता है, हालांकि इसमें शामिल होने की जटिलता और भी अधिक होती है। इस प्रकार, वेदांता ने इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण में ताइवान की कंपनी फॉक्सकॉन के साथ सहयोग करने का विकल्प चुना है। वेदांता और फॉक्सकॉन का संयुक्त उद्यम निश्चित रूप से देश को सेमीकंडक्टर निर्माण में आत्मनिर्भर बना देगा।

 

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