रहस्य : विश्व के सबसे बड़े भौतिकी लैब में नटराज की मूर्ति का राज

वर्ष 2012 में स्विटज़रलैंड में यूरोपियन सेंटर फॉर न्यूक्लियर रिसर्च (सर्न ) के वैज्ञानिकों ने घोषणा की  कि ‘गाड पार्टिकल ‘यानि ईश्वरीय कण की खोज कर ली गई है।इसे वैज्ञानिक अपनी भाषा में ‘हिग्स बोसोन ‘के नाम से भी प्रतिपादितकर रहे हैं।इस खोज को इन वैज्ञानिको ने गत 100 वर्षों सबसे बड़ी उपलब्धि की संज्ञा दी है। इस पार्टिकल की खोज के लिए ही फ्रांस और स्विटजरलैंड की सीमा पर 17 मील लंबी सुरंग बनाई गई थी। असल में वैज्ञानिक जिस ईश्वरीय कण को खोजने की बात कर रहे हैं ,वो भारतीय संस्कृति और सभ्यता का वो एक ऐसा आधार बिंदु है,जहाँ से ज्ञान की परम्परा का श्री गणेश हुआ। हज़ारों  वर्ष पूर्व भारतीय ऋषियों ने इस ऊर्जा क्षेत्र को न  सिर्फ अनुभव ही किया था ,अपितु अपने अनेक ग्रंथों में इसका सविस्तार वर्णन  भी किया था। इस संबंध में राजस्थान के आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक जी ऋग्वेद से अनेकों भौतिकी के सिद्धांतों को दुनिया के सामने लाकर साबित कर चुके हैं कि ये सब वेदों में है। आचार्य जी के सवालों का जवाब तो नासा से लेकर स्टीफन हॉकिंग भी नही दे पाए।अब आते हैं दुनिया के सबसे बड़े इसी भौतिकी लैब पर जिन्होंने महाकाल शिव के नटराज स्वरूप की मूर्ति को किन कारणों से यहां लगाया है। लैबोरेट्री में भगवान की मूर्ति पर भी वैज्ञानिकों के पास अपने तर्क हैं। इस मूर्ति के नीचे एक पट्टी लगी है और इस पर मशहूर भौतिक विज्ञानी फ्रिटजॉफ कैप्रा की कुछ लाइनें लिखी हैं। कैप्रा ने भगवान शिव की अवधारणा की व्याख्या करते हुए लिखा है-‘हजारों साल पहले भारतीय कलाकारों ने नाचते हुए शिव के चित्र बनाए। कांसे के बने डांसिंग शिवा की सीरीज में मूर्तियां हैं। हमारे समय में हम फीजिक्स की एडवांस्ड टेक्नोलॉजी की मदद से कॉस्मिक डांस को चित्रित करते हैं।दुनिया की सबसे बड़ी  फिजिक्‍स लैब में भगवान शिव की मूर्ति वैज्ञानिकों को प्रेरित करती है। एक बार इस लैब में काम करने वाले रिसर्चर ने भी इस तरह की बात कही थी कि किस तरह से भगवान शिव की मूर्ति उन्‍हें प्रेरित करती है। उन्‍होंने बताया था कि दिन के उजाले में जब सर्न जीवन के साथ ताल से ताल मिलाता है तो शिव इसके साथ खेलते हुए दिखते हैं। शिव याद दिलाते हैं कि ब्रह्मांड में लगातार चीजें बदल रही हैं और कोई भी चीज स्थिर नहीं है। वहीं, रात के अंधेरे में जब हम इस पर गहराई से विचार करते हैं तो शिव हमारे काम से उजागर हुई चीजों की परछाइयों से रूबरू करवाते हैं।फ्रिटजॉफ कैप्रा मशहूर भौतिकविज्ञानी हैं.वो द ताओऑफ फिजिक्स में शिव की अवधारणा के साथ विज्ञान के मेल को लेकर लिखते हैं- “शिव का नाचता हुआ रूप ब्रह्मांड के अस्तित्व को रेखांकित करता है. शिव हमें याद दिलाते हैं कि दुनिया में कुछ भी मौलिक नहीं है। सबकुछ भ्रम सरीखा और लगातार बदलने वाला मॉर्डन फिजिक्स भी इस बात की याद दिलाता है कि सभी सजीव प्राणियों में निर्माण और अंत, जन्म और मरण की प्रक्रिया लगातार चलती रहती है। ये इनऑर्गेनिक मैटर्स पर भी लागू होता है।”भौतिक विज्ञानी फ्रिटजॉफ कैप्रा आगे लिखते हैं- “क्वॉन्टम फिल्ड ध्योरी के मुताबिक किसी भी पदार्थ का अस्तित्व ही निर्माण और अंत के नृत्य पर आधारित है. मॉर्डन फीजिक्स इस बात को उजागर करता है कि सभी सबएटॉमिक पार्टिकल ना सिर्फ एनर्जी डांस करते हैं, बल्कि ये एनर्जी डांस ही निर्माण और संहार को संचालित करता है।मॉर्डन फिजिक्स के लिए शिव का डांस सबएटॉमिक मैटर का डांस है. ये सभी तरह के अस्तित्व की कुदरती अवधारणा है।”बहरहाल सत्य यही है कि तांडव करते हुए नटराज के पीछे बना चक्र ब्रह्मांड का प्रतीक है।उनके दाएं हाथ का डमरू नए परमाणु की उत्पत्ति और बाएं हाथ में अग्नि पुराने परमाणुओं के विनाश की ओर संकेत देती है। इससे ये समझा जा सकता है कि अभय मुद्रा भगवान का दूसरा में दायां हाथ हमारी सुरक्षा, जबकि वरद मुद्रा में उठा दूसरा बायां हाथ हमारी जरूरतों की पूर्ति सुनिश्चित करता है।

*आचार्य अग्निव्रत जी के प्रयासों को जितना समझ-पढ़ पाया और विभिन्न स्रोतों से जो पढ़ा वह अद्भुत है, उन्हीं सब को आपके सामने रख पाया।आज जगन्नाथ जी,बाबा महाकाल जी के आशीर्वाद के साथ उन्ही के गुणगान के साथ प्रस्तुति.

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