बसहुं सदा पदधूरि सुखागर पूरवहु प्रभु अभिलास। राम अब एक तुम्हारो आस।।
राम अब एक तुम्हारो आस।
कलि खल तमस मोह अंधियारो पद पावक उजियास।।
कनक मोह मन कामिनि नैनन्हिं कर जोरत नित दामा।
मनज मथै निसिवासर चिन्तन इन्द्रिय कहं बिसरामा।।
मन अधीर सुख वैभव चिन्ता नित नव नव चतुराई।
जोरि जुगुत सोचत खुद जोरे माया खेल रचाई।।
पलक झपति अवलोपति सगरो सुख सम्पति परिवारा।
मलि मलि उबटन रच्यो कलेवर जरि डारत खंगारा।।
दिन तेरह के बाद सुमिरिहैं को भरिहैं अंकवारी।
तजि प्रपंच आन्हर हो उड़िहैं भजु भवनाथ खरारी।।
रटु रसना हरिनाम मनोहर राम नाम सुखरासी।
राम नाम चिर आदि पुरातन जगत मूल अविनासी।।
राम नाम नित आश्रय अनुपम तीनहुं लोक विराजैं।
त्रिभुवन सरन कलानिधि राघव नाम धाम बसि राजैं।।
बसहुं सदा पदधूरि सुखागर पूरवहु प्रभु अभिलास।
राम अब एक तुम्हारो आस।।
श्री हरि ॐ
