सुमंत विद्ववंश : POK कब्जानें से भारत का सिरदर्द ही बढ़ेगा.. वे इसका आशय भी समझ जाएंगे

मेरी बात बहुतों को पसंद नहीं आएगी, फिर भी कहना चाहता हूँ कि भारतीय मीडिया चाहे कितना ही उकसाता रहे, पर अभी युद्ध की इच्छा मत कीजिए क्योंकि इस समय विश्व का कोई भी देश हमारे साथ नहीं खड़ा होगा। हमारे समर्थन में कोरी बयानबाजी करना एक बात है, पर वास्तविक युद्ध में साथ खड़े होना बिलकुल अलग बात है।

अमरीका की नई नीतियों के कारण अभी दुनिया के अधिकांश देश अपनी अर्थव्यवस्थाओं को बचाने में लगे हुए हैं। भारत का एक भरोसेमंद साथी रूस है, लेकिन अभी वह स्वयं यूक्रेन से युद्ध में उलझा हुआ है। इजराइल हमास से लड़ रहा है। अमरीका हमारा दोस्त कभी नहीं था और आज भी नहीं है।

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यूरोप के अधिकांश देश भी इस समय स्वयं अपनी ही सुरक्षा को लेकर परेशान हैं क्योंकि अमरीका ने यूक्रेन की सैन्य सहायता बंद कर दी और यूक्रेन युद्ध में हार गया, तो रूस यूरोप के भीतर पहुंच जाएगा।

जिस पीओके को कब्जाने की बातें लोग करते हैं, उसे अभी भारत में जोड़ भी लेंगे, तो केवल सिरदर्द ही बढ़ेगा। जो आधा काश्मीर हमारे पास है, उसी की सुरक्षा अभी ठीक से नहीं हो पाई है, अन्यथा पुलवामा से पहलगाम तक की घटनाएं नहीं हुई होतीं। ऐसी परिस्थिति में बाकी बचे काश्मीर को भी अपने सिर पर लादकर अपना बोझ और खतरा क्यों बढ़ाना चाहते हैं?

इस बात को भी समझिए कि पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह तक जाने के लिए चीन ने जो लंबा हाइवे बनाया है वह पीओके से होकर ही जाता है। अभी उस तरफ हमला करने का सीधा मतलब है कि चीन भी युद्ध में पाकिस्तान के साथ खड़ा हो जाएगा, फिर चाहे वह भारत पर सीधे हमला करे या न करे। यह भी स्पष्ट है कि तुर्की और कतर जैसे देश पाकिस्तान के पक्ष में ही खड़े रहेंगे। तुर्की से कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन कतर को भारत नाराज नहीं कर सकता, यह बात पहले कई बार देखी जा चुकी है। उसका कारण मैं नहीं जानता।

अमरीका चीन को जिस प्रकार से टैरिफ में जकड़कर कमजोर करने के प्रयास में लगा हुआ है, उसका परिणाम आने तक प्रतीक्षा करनी चाहिए। यदि अमरीका के प्रयास सफल हो गए, तो चीन का पूरा ढांचा ही एक झटके में ढह सकता है। जब चीन कमजोर हो जाए, तो भारत पाकिस्तान से कभी भी निपट सकता है। दूसरी संभावना यह भी है कि एकाध वर्ष या दो वर्ष में चीन ताइवान को वापस पाने के लिए कोई हलचल करे। तब अमरीका और चीन दोनों उधर उलझ जाएंगे। तब तक संभवतः रूस और यूक्रेन का युद्ध भी निपट चुका होगा। उस समय भी भारत पाकिस्तान से निपट सकता है।

मेरे ख्याल से अभी यही अच्छा है कि एकाध वर्ष तक पाकिस्तान के साथ छोटी-मोटी झड़पें भले ही करते रहें लेकिन सीधे युद्ध की परिस्थिति न बनने दें। उसके अलावा बलूचिस्तान वालों को और तालिबान वालों को इतनी सहायता देते रहें कि वे लोग पाकिस्तान को अपने साथ लड़ाई में फंसाए रखें और खुद भी पाकिस्तान से लड़ाई में उलझे रहें, पर तीनों में से कोई भी पक्ष जीत न पाए।

तब तक भारत को अपना पूरा ध्यान अपनी सेना, अर्धसैनिक बलों, गुप्तचर विभाग आदि को सुदृढ़ बनाने, सीमाओं को सुरक्षित करने और विश्व में कम से कम दो चार विश्वस्त देशों को खोजने में लगाना चाहिए। इन सब विषयों की गहराई में मैं नहीं जाना चाहता क्योंकि यह समय अपनी सरकार की आलोचना करने या सरकार पर प्रश्न उठाने का नहीं है।

अक्सर लोग दोहराते हैं कि भारत को ढाई मोर्चों पर युद्ध लड़ना पड़ेगा। इस बात को समझिए कि उनमें से आधे मोर्चे को जीतना सबसे ज्यादा जरूरी है। उसके बिना शेष दो को भारत कभी नहीं जीत पाएगा, पर अभी तो हम आधे मोर्चे से निपटने की स्थिति में भी नहीं हैं। इस बात को मैं स्पष्टता से लिख नहीं सकता, इसलिए इसे यहीं छोड़ रहा हूँ। लेकिन मुझे पता है कि जिन लोगों तक यह बात पहुंचनी चाहिए, वहां तक पहुंच जाएगी और वे इसका आशय भी समझ जाएंगे। सादर!

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