देवांशु झा : भारत – इजराइल तुलना क्यों नहीं हो सकती !! BJP से सत्ता छूटते ही विपक्ष आपको ऐसे फाड़ देगा..!

पहलगाम.. कब तक

पहलगाम पर हितोपदेश सुन रहा हूॅं। सुनना पड़ता है। वे कहते हैं कि यह देश पर हमला है! हिन्दू मुसलमान न करें! बहुत अच्छी बात है। मेरे कुछ साधारण से प्रश्न हैं। भला वह कौन सा देश है जिस पर यह हमला हुआ है? वह किसका देश है? उस देश पर पिछले हजार वर्ष में जितने हमले हुए वो किस पर हुए? वो हमले किन लोगों ने किए? मध्यकालीन हमलों और आज के बंगाल और पहलगाम में क्या अंतर है? कोई अंतर है भी क्या? क्या अंतर केवल इतना नहीं कि हथियार बदल गए हैं? और कई जगहों पर तो हथियार भी मध्यकालीन ही हैं। घर और बाजार जलाना, लूटना, पथराव करना, स्त्रियों से बलात्कार करना, धर्म पूछ कर मारना आदि-आदि।‌ तब फिर क्या बदल गया है?
क्या वह हमला उस देश पर नहीं है, जहां हजारों-हजार वर्ष से हिन्दू रहते आए हैं? तो प्रकारान्तर से, क्या वह हिन्दुओं पर मजहब विशेष का हमला नहीं है? फिर अन्तर क्या है? क्यों शब्दजाल में उलझाते हैं?

Veerchhattisgarh

पहलगाम और बंगाल में क्या अन्तर है? कोई अन्तर है भी? क्या केवल इतना अन्तर नहीं कि बंगाल में एक विशाल भीड़ ने हिन्दुओं को अपने पास उपलब्ध असलहों, हथियारों, मशालों से प्रताड़ित किया। उनके घर जलाए। लूटा। महिलाओं को अपने साथ चलने को कहा। कश्मीर में आधुनिक हथियार से गोलियां बरसाईं। आतंक में दोनों एक जैसे थे। दोनों के रास्ते, मकसद एक थे। दोनों हिन्दुओं यानी बुतपरस्तों को खत्म करना चाहते थे, चाहते हैं। आप आंखें खोल कर देखिए, आपको पहलगाम ही पहलगाम और बंगाल ही बंगाल दिखेंगे। एक हजार वर्ष से यही हो रहा। आप उसे देखना स्वीकारना नहीं चाहते। आपको तहजीब याद आती है। आप ताबीज पहनते हैं। आप ग़ज़ल सुनकर मानवतावाद में डूबते हैं। आप महान आत्मा हैं। आप मानवतावादी हैं। आपकी मानवता प्रणम्य है। हमारे लाखों पृष्ठों के प्राचीन साहित्य में ऐसी मानवता का उदाहरण नहीं मिलता। यह और बात है कि आप ने उसे परे हटाकर गांधीवादी साहित्य पढ़ना शुरू कर दिया था।

यह पहलगाम तो बहुत पहले हो जाता। न जाने कितने पहलगाम और बंगाल हो चुके होते। कितने शहर दहल चुके होते। आप धन्य मानिए सरकार का, जिसने अपनी आन्तरिक सुरक्षा व्यवस्था से आपको बचाए रखा। आपके शहर बचे रहे। कोई आतंकी हमला नहीं हुआ। बस कश्मीर में ही हमले हुए। वहां भी बहुत कुछ बदल चुका है। वरना पुलवामा के बाद छह वर्ष का फांका पड़ता क्या? कभी नहीं। विश्वास न हो तो 2014 से पीछे पलट कर देख लीजिए। मैं देख रहा कि लोग ललकार रहे। इजरायल बन जाओ। तबाह कर दो! भारत और इजरायल एक ही तो हैं! दोनों देशों में कोई भेद है भला? यह भी एक विद्वत्ता है। परन्तु इजरायल और भारत की कोई तुलना नहीं हो सकती। भारत इस संसार का सबसे जटिल देश है, जो जनसंख्या में सबसे विकराल तो है ही, जिसकी आन्तरिक जटिलताएं भी उतनी ही भयंकर हैं। इजरायल के यहूदी जात-पात के नाम पर नहीं लड़ते। एक छोटी सी टिप्पणी भर या दुष्प्रचार से वहां अयोध्या की सीट नहीं गंवाते। जातिगत अहंकार और वर्चस्व के नाम पर वहां आए दिन मारकाट का खेल नहीं चलता। जातियां सरकार को धमकी नहीं देतीं। जातियां एक झटके में सत्ता परिवर्तन कराने का दम नहीं रखतीं। इजरायल में तीस करोड़ मुसलमान नहीं रहते। आप क्या बकवास करते हैं?

आप कल्पना कीजिए कि आज भाजपा सत्ता से चली जाती है, फिर क्या होगा। आप देश के भीतर फाड़ डाले जाएंगे। इस देश का विपक्ष आपकी वो दुर्गति करेगा कि आप सोच नहीं सकते। आप इजरायल नहीं हैं। इजरायल बनने का प्रयास मत कीजिए। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि आप चुपचाप बैठकर हलाक होने का इन्तजार कीजिए। आप प्रतिरोध करना सीखिए। आप सरकार पर दबाव डालिए। और आपके दबाव डालने की भी बात नहीं है, सरकार खुद कुछ न कुछ करेगी। कुछ बड़ा प्रतिशोध लेगी। लेकिन उसकी रणनीति अपनी होगी। वह समय और अवसर देखकर वार करेगी। आपको धैर्य रखना होगा। मेरा यह मानना है कि हिन्दू समाज को किसी भ्रम में नहीं रहना चाहिए। वह युद्ध में है। यह युद्ध उस पर सदा-सदा से थोपा गया है। हिन्दुओं को यह नहीं सोचना चाहिए कि मध्यकाल बीत गया है। वह कभी नहीं बीत सकता। जब तक इस संसार में अब्राहमिक आस्थावान हैं तब तक वह कायम रहेगा, लौट-लौट कर आता रहेगा।

पहलगाम एक संदेश है कि कश्मीर को आतंक मुक्त समझने का भ्रम न पालिए। जब कंगाल हो चुके पाकिस्तान का आर्मी चीफ कहता है कि कश्मीर हमारे गले की नस है। जब वह देश के सबसे बड़े आतंकी को सेना के सामने भाषण देने को बुलाता है और वह आतंकी कहता है कि हम एक बरस में कश्मीर ले लेंगे तब आप सोच सकते हैं कि आप किस से लड़ने जा रहे। उनके एक जिहादी नारे पर हजारों हजार युवा टिड्डे की तरह मरने को तैयार हो जाते हैं। आपके लिए जीवन मूल्यवान है। आप उसे यूं भस्म नहीं कर सकते। करना चाहिए भी नहीं। फिर उनसे लड़ना कितना कठिन है? कठिन इसलिए नहीं कि वे शूरवीर हैं। कठिन इसलिए कि मरने के बाद जन्नत जाने की ख्वाहिश बुलंद है। वहां जीवन की पवित्रता या स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं है। वे मरने को तैयार बैठे हैं। किन्तु यह भी एक सत्य है कि लड़ाई अंतहीन नहीं हो सकती। संभवतः अंतिम और निर्णायक युद्ध का समय आ गया है। यह भारत के भाग्यविधाता लिख कर चले गए। वे सबसे बड़े मानवतावादी थे। विश्व के उन जैसे महात्माओं के कारण ही संपूर्ण मानव जाति पर सबसे बड़ा संकट छाया हुआ है।

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