अमित सिंघल : जातिगत जनगणना.. श्रेष्ठ यौद्धा कौन होता है ?

श्रेष्ठ यौद्धा कौन होता है?

मुझसे पूछेंगे तो मेरा जवाब होगा, वो, जो शत्रु से उसके ही अस्त्र छीन कर शत्रु का वध कर दे। मौत के घाट उतार दे। वही श्रेष्ठ यौद्धा।

Veerchhattisgarh

SC/ST Act भी सत्ता की सियासत है। जिसका नैरेटिव स्वतंत्रता के बाद गढ़ा गया और एक राजनीतिक हथियार के रूप में प्रयोग किया गया। यही वह हथियार है, जिस हथियार पर “जय मीम”, “जय भीम” चिपका हुआ है। स्वतंत्रता के पहले भी और स्वतंत्रता के बाद फेविकोल की तरह चिपका हुआ है। इसी की आड़ में मजहब की विकृतियों, मानवाधिकारों का हनन एवं अत्याचारों को छिपा दिया जाता है।

स्वतंत्रता के बाद के दो आंदोलन उल्लेखनीय है। जेपी मूवमेंट में क्या हुआ ? जैसे ही जनांदोलन व्यवस्था अनुशासन के नारे से निकल ट्रेन बस की तोड़फोड़ की ओर मुड़ा। इंदिरा का मीसा, डीआईआर का सोंटा चला, मध्यम वर्ग घरों में दुबक गया। जेपी अकेले पड़ गए। ताकत दिखी तो पोलिंग बूथ पर। सड़क पर नहीं।

दूसरा आंदोलन वीपी का रहा। जिन्होंने “करप्शन” को “व्यवस्थाजन्य” ना बता कर “परिवार जन्य” करार दिया। मध्यम वर्ग लहालोट हो गया। फिर आते ही करप्शन को किनारे कर “आरक्षण” को बीच में ला दिया। वो तो भला हो मुलायम, लालू का, जो वीपी की जमा पूंजी ले उड़े। वीपी हाथ मलते रह गए। एकाकी मौत मरे। और उधर, मध्यम वर्ग ठगा महसूस करता रह गया।

फिर भी, दलित एवं पिछड़ा वर्ग राजनीति का जीवन काल कुछ दशक का है। इसे स्थापित करने में, न्याय प्रक्रिया से जड़े कथित सवर्ण न्यायाधीष-वकील, यूनिवर्सिटीज में वेतनभोगी ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य प्रोफेसर, अस्पतालों में कार्यरत कथित ऊंची जातियों के डॉक्टर, दफ्तरों में बैठे सवर्ण अफसर, मीडिया में बैठे सवर्ण पत्रकार, कहाँ नहीं इन्होंने दलित एवं पिछड़ा थ्योरी को साकार किया? या समर्थन दिया?

आज यदि उल्लेख करो तो हरेक के बाप-दादा “परम् समाजसेवी और सदाचारी” मिलते हैं। तो ये बाकी कौन थे? एलोन मस्क मंगल ग्रह से लाए थे क्या?

जब राहुल SC-ST Act जैसे दमनकारी कानून होने के बाद भी कांग्रेस शासित राज्यों को “रहित वेमुला एक्ट” लाने का आदेश दे चुका है एवं समय-समय पर जातिगत सर्वे या जनगणना की मांग उठाता रहता है क्योकि उसे भारत की जाति-आधारित फाल्टलाइन को एक्सप्लॉएट करके सत्ता में आना है, तो प्रधानमंत्री मोदी को डिफेंसिव होने की जगह उसका राजनीतिक रूप से प्रतिउत्तर देना होगा।

अब यदि प्रधानमंत्री मोदी, शत्रु के तैयार इस अस्त्र को छीनने की “निर्णायक लड़ाई” का मन बना चुके है तो सवर्ण सोशल मीडिया पर हाहाकार शुरू कर देगा। और जब चुनाव होगा तो एकबार फिर घरों में दुबक जाएगा या उन परिवारवादियों को वोट दे देगा जो इसे एक अस्त्र के रूप में प्रयोग करते आए है। बाकी सोशल मीडिया पर तो हम सभी महाराणा प्रताप और आरा वाले बाबू कुंवर सिंह हैं।

एक बार के लिए सोचिए प्रधानमंत्री मोदी आलरेडी गाँधी, अंबेडकर, सामाजिक न्याय, गरीबी हटाओ जैसे कोंग्रेसी-लालू-अखिलेश “अस्त्र” या नारे को इन परिवारवादियों से छीन चुके है।

अब यदि मोदी या बीजेपी यदि जातिगत जनगणना की पक्षधर बन कर खड़ी हो गई तो विपक्ष की झोली में क्या बचेगा?

“जय मीम”, “जय भीम” किस “हथियार” पर चिपक कर अपने अस्तित्व का संघर्ष करेगा? कौन होगा उसका तारणहार?

अब यदि बीजेपी दलित-पिछड़ा राजनीति को ले उड़ी तो इस फाल्टलाइन में निवेश करने वाले, पूंजी लगाने वालों के पास अपनी अपनी आढ़त पर बेचने के लिए कौन सा सौदा बचेगा? क्या बेचेंगे?

अगर मोदी सरकार जाति-आधारित राजनीति को “उनके” ही अस्त्र छीन कर उन्हें मात न दे, तो आने वाले चुनाव में गैर-भाजपा सरकार उन अस्त्रों से आपका और हमारा वध कर देगी।

क्योंकि अब अस्त्र हमारे हाथ है। शत्रु का वध भी इसी से होगा।
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यह लेख मित्र Sumant Bhattacharya के विचारो से प्रेरित है जो कुछ वर्ष पूर्व फेसबुक पर लिखा करते थे।

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