सुरेंद्र किशोर : नेताओं की अदूरदर्शिता.. सिंधु जल संधि..भारत जो चाहता वह करा लेता…
हमारे नेताओं की अदूरदर्शिता
——————-
जब सिंधु जल संधि पर भारत ने हस्ताक्षर किये थे,तब पाकिस्तान की हालत इतनी खराब थी कि भारत जो चाहता वह करा लेता।
इसका उल्लेख पाकिस्तान के तत्कालीन सैन्य शासक अयूब खान ने अपनी आत्म कथा ‘फं्रेड्स नाट मास्टर्स’ में किया है।उन्होंने लिखा है कि तब हालात पूरी तरह उनके खिलाफ थे।
— पत्रकार ब्रजेश कुमार सिंह,
दैनिक जागरण, 29 अप्रैल 25
ब्रजेश कुमार सिंह की इस टिप्पणी से यह बात एक बार फिर साबित होती है कि आजादी के तत्काल बाद के हमारे हुक्मरान कितने अदूरदर्शी थे।
चीन के साथ के सबंधों को लेकर भी प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने ऐसी ही अदूरदर्शिता दिखाई थी।वे उसके खतरनाक इरादों को नहीं समझ सके थे।
जब चीन ने तिब्बत को हथियाने की प्रक्रिया में अपनी सेना वहां भेजी थी तो उसे अनाज की सख्त कमी पड़ गई।दुर्गम रास्तों के कारण चीन से तुरंत अनाज वहां पहुंचाना चीन सरकार के लिए असंभव था।
चीनी सैनिकों को भुखमरी से बचाने के लिए नेहरू सरकार ने चीन सरकार के आग्रह पर उसे हजारों टन अनाज वहां भेज दिया था।भारत से परिवहन अपेक्षाकृत आसान था।
हमारी सरकार को यह समझना चाहिए था कि तिब्बत को हड़पने के बाद चीन हमारे भूभाग पर हमला करेगा।किया भी।
ए.जी.नूरानी के अनुसार सोवियत संघ से पूर्व अनुमति लेकर ही 1962 में चीन ने हम पर हमला किया था।नूरानी ने इस संबंध में इलेस्टेटेड वीकली आॅफ इंडिया में लंबा लेख लिखा था।
——————-
इतना ही नहीं,नेहरू के जमाने के आई.एफ.एस.मुचकंुद दुबे को एक टी.वी.डिबेट में मैंने यह कहते सुना था कि यदि हम बांग्ला देश सीमा पर बाड़ लगाएंगे तो दुनिया में हमारे देश की छवि खराब हो जाएगी।उस डिबेट में शिवसंना से तब के राज्य सभा सदस्य संजय निरुपम भी थे।निरुपम ने बिना देर किए दुबे जी से पूछा–आप भारत सरकार के विदेश सचिव थे या बांग्ला देश सरकार के ?
दुबे जी चुप रह गये।
