डॉ.भूपेंद्र सिंग : नरेंद्र मोदी समेत संघ ने कई बार कहा है कि राहुल गांधी जिस जातीय जनगणना की बात कर रहे हैं वह…

राहुल गांधी जिस प्रकार की जातीय जनगणना कराना चाहते हैं, वह देश के एकता और अखंडता के लिए न केवल बाधक है बल्कि यदि उसी दिशा में यह आगे बढ़ता है तो यह देश को गृहयुद्ध में धकेल देगा। लेकिन ईश्वर की कृपा से राहुल गांधी न वर्तमान में प्रधानमंत्री हैं और न आगे कभी बनने वाले हैं।

राहुल गांधी केवल जातीय जनगणना नहीं कराना चाहते। पिछले सात आठ सालों से जब से वह कम्यूनिस्टों के प्रभाव में आए हैं तब से वह भारत को सोवियत यूनियन बनाना चाहते हैं। इसलिए उन्हें भारत कभी राष्ट्र नहीं लगता बल्कि देशों का समूह समझ आता है, तो वह कभी लोगों के पास कितना ज़मीन, सोना चाँदी आदि है, वह पता करना चाहते हैं। पूरी तरह से सोवियत संघ का फेलियर मॉडल राहुल को पसंद आया है जिसमें बुर्जुआ समाज (अपर मिडल क्लास) की संपत्ति सरकार ले लेगी और उसको समानता के साथ सर्वहारा समाज (गरीब वर्ग) में बांट देगी।

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किसी भी देश में स्थिरता मिडिल क्लास के कारण होती है क्यूंकि समाज के नैतिक मानबिंदुओं को जीने वाला मध्यमवर्ग ही होता है। यहीं माध्यम वर्ग मेहनत करके अपर मिडिल क्लास में पहुँचने के प्रयास में समाज में नेट उत्पादकता को बनाकर रखता है। गरीब वर्ग नैतिकता अफ़्फोर्ड नहीं कर सकता और अपर क्लास को नैतिकता के चोले की ज़रूरत नहीं है। ऐसे में जब कम्युनिस्ट विचारधारा समाज से अपर मिडल क्लास और मिडल क्लास को समाप्त करता है तो समाज में नैतिकता अपने थ्रेसहोल्ड से भी नीचे चली जाती है और फलस्वरूप समाज एक झटका लगते ही गिर जाता है।

नरेंद्र मोदी समेत संघ ने कई बार कहा है कि राहुल गांधी जिस जातीय जनगणना की बात कर रहे हैं वह अंततः माओवादी विचार है। इसलिए जातीय जनगणना जैसे अति संवेदनशील विषय को ऐसे व्यक्ति के लिए छोड़ देना आत्मघाती कदम होगा। इस समय देश बहुत तेज़ी से आर्थिक रूप से आगे बढ़ रहा है। मात्र पाँच सात सालों में हमारे देश को अर्थव्यवस्था डेढ़ गुनी हो चुकी है। हम यह ग्रोथ तब पा रहे हैं जब हमारी आबादी भी तेज़ी से बढ़ रही थी और कोरोना जैसा महामारी भी झेला है। इसका स्पष्ट कारण है कि हमें पूंजीवादी व्यवस्था को ठीक प्रकार से अडॉप्ट किया है। यदि समाज में जातीय जनगणना के नाम पर इस प्रकार का ध्रुवीकरण हो सकता है जो इससे प्राप्त आकड़े का प्रयोग माओवादी मॉडल के रूप में कर सकता है, वह घातक साबित होगा। इससे अच्छा है कि इस विषय को नरेंद्र मोदी डील करें। वह डील करेंगे तो यह पिछड़ों के भीतर के EBC के अधिकारों की तो सुनवाई होगी, लेकिन जब देश इतनी तेज़ी से आगे बढ़ रहा है और 2047 तक हम विकसित बनाना चाहते हैं, ऐसे में वह इस कम्युनिस्ट मॉडल को कतई लागू नहीं होने देंगे।

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