डॉ. पवन विजय : ऐसी फिल्में दैव संजोग से बनती हैं
फगुआ आते ही बलिहार की होली याद आती है,
जोगी जी धीरे धीरे
नदी के तीरे तीरे…
होली के इतने शुद्ध भाव का फिल्मांकन जिस तरह नदिया के पार फिल्म में ताराचंद बड़जात्या ने किया, अन्यत्र उदाहरण मिलना दुर्लभ है। हमारी पीढ़ी वह गीत कभी नही भूल पाएगी। जब जब फागुन आएगा, यह गीत हमें याद दिलाएगा हमारा बचपन, कच्चे घर, ढोल ताशा के साथ स्वांग रचाए काका, परिहास करती भौजाइयां, वह मोड़ जहां से लड़कपन जाने को था और जवानी आने को थी।
नदिया के पार से मेरा जुड़ाव कई वजहों से है। पहली वजह तो इसका कथानक, इसका गीत संगीत। कोहबर की शर्त पर आधारित यह फिल्म गांव की पेंटिंग हैं।
दूसरी वजह यह फिल्म मेरे गृह जनपद जौनपुर में बनी। विजयीपुर और राजेपुर गांव में बनी इस फिल्म का जौनपुर में शूटिंग का एक मजेदार किस्सा है। ताराचंद बड़जात्या एक ऐसी ग्रामीण लोकेशन तलाश रहे थे जो नदी के किनारे हो, उनके एसोसिएट बाबू रामजनक सिंह जौनपुर के रहने वाले थे उन्होंने अपने गांव के आस पास के लोकेशन की चर्चा की। जब बड़जात्या उनके गांव पहुंचे तो सई और गोमती के किनारे के आस पास का माहौल उन्हे फिल्म के अनुकूल लगा। उस समय गांव में बाबू रामजनक का मकान पक्का था, उसे ही गुंजा का घर बनाया गया, फिल्म की टीम भी वहीं रुकी। फिल्म में लीला मिश्रा का भी किरदार था, वह अवधी थीं,सुल्तानपुर/ प्रतापगढ़ की थी उनके लिए अवधी फिल्म में काम करना घर में बातचीत जैसे था।
चंदन और गुंजा का रोल इतना स्वाभाविक था कि उस समय हर बालक अपने को चंदन और बालिका गुंजा समझने लगी थी। कौने दिशा में लेके चला रे बटोहिया हर तरुण के हृदय को किंशुक के फूल जैसा बना रहा था, नेह छोह के अबूझ बंधन में बंधने को कह रहा था।
फिल्म से तीसरा जुड़ाव गुंजा की वजह से है। गुंजा यानी साधना सिंह कानपुर में रहती थीं। इन्होंने कानपुर के एएनडी कॉलेज से पढ़ाई की थी अर्थात कानपुर विश्वविद्यालय में हम लोगों की सीनियर रही हैं।
नदिया के पार का शहरी संस्करण हम आपके हैं कौन थी पर जो निर्दोषता, जो सौंदर्य, जो भाव नदिया के पार में था उसका कोई जोड़ हो ही नही सकता। ऐसी फिल्में दैव संजोग से बनती हैं।
गांव देस की परंपराओं का दस्तावेज के रूप में जब किसी फिल्म का नाम आयेगा , ग्रामीण भूगोल, धर्म, पारिवारिक रिश्तों के समाजशास्त्र और संबंधो की मर्यादा का सजीव साक्ष्य के रूप में जब किसी फिल्म का नाम आयेगा, प्रेम और त्याग की परिभाषा के रूप में जब किसी फिल्म का नाम आयेगा तो एक ही नाम लिखा जाएगा…
नदिया के पार ।।
