प्रसिद्ध पातकी : विष्णुसहस्रनाम में “वनमाली” ..एकादशी की राम राम

भगवान का एक प्यारा नाम है वन माली. देखा जाए तो माली उपवन का होता है . वाटिका का होता है. पर बियाबान जंगल का भी भला कोई माली हो सकता है. जी हां, हम अपने ईश्वर को वन माली कहते हैं. भगवान को वनमाली यूं भी कह सकते हैं कि वे वन के चित्र विचित्र फूलों की माला पहनते हैं.


वैसे भगवान विष्णु की माला का एक स्टेंडर्ड नाम है..वैजयन्ती माला. यह कोई सामान्य माला नहीं होती. विष्णु पुराण की माने तो इसमें मुक्ता,माणिक्य, हरकत,इन्द्रनील और हीरा जड़े होते हैं. इस वैजयन्ती माला में पंच तन्मात्राएं और पंच महाभूत सूक्ष्म रूप में उपस्थित रहते हैं. पर विष्णु सहस्रनाम तो भक्तों का कण्ठहार है, वहां भगवान वनमाली की तरह अधिक प्रिय हैं…
भगवान भगहा नन्दी वनमाली हलायुध:
आदित्यो ज्योतिरादित्य: सहिष्णुर्गतिसत्तम:

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भगवान इस बात को जानते हैं कि गोप-गोपियां,राधा और जनक नंदिनी जो उनके प्रेम में बेमोल बिक चुकी हो,उनके लिए बैजयन्ती माला का होना या ना होना, कोई अधिक मायने नहीं रखता. वहां तो एक ऐसा वन राजकुमार रहता है जो हृदय प्रांत को शीतलता से भर देता है और जिसका शृंगार स्वयं वन देवी ने हाथों से मनोहर फूल चुन चुन कर किया हो. ” फूलन के बाजुबंद..फूलन के हरवा…” कुछ ऐसा दिखता होगा वनमाली हमारा.
बाबा भी बस जादू बुनते हैं. जनकपुर की पुष्प वाटिका देखते देखते मानों वृंदावन में रूपातरित हो जाता है. सारी सृष्टि का ध्यान मोहने वाला यह वनमाली उस दिन बिना किसी माला के जनकपुर की वाटिका में फूल चुनने पहुंच जाता है. ” चहुं दिसि चितइ पूछंहि मालीगन लगे लेन दल फूल मुदित मन”. पर माता जानकी तो बिना माला वाले इस वनमाली को एक दृष्टि में ही पहचान लेती हैं. पुरातन प्रेम का प्रतीक श्रीवत्स चिन्ह आज फुलवारी में बिना माला के अनावृत है. ऐसे में जनकनंदिनी की पुरातन प्रति ने वनमाली के मन में दुंदुभी घोष कर दिया. वनमाली का श्रीवत्स चिन्ह पद्म पराग से गमक गया.
वनमाली का यह प्रेम हमारे पंच प्राणों में जीवन के उत्साह का निरंतर संचार करता रहे. शीत से शिथिल हमारे नाड़ी जाल में गर्म हवाओं की उष्मा भरता रहे.
एकादशी की राम राम।।

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