सिने समीक्षा : “वो छावा है दहाड़ेगा ही”
“वो छावा है दहाड़ेगा ही” .. लेकिन साम्यवाद के कानों को यह बस एक चीख ही सुनाई देगी। चीख यह मेरा कहना नहीं है देश के एक प्रतिष्ठित मीडिया हाउस के रिव्यू का कहना है। मैने एडवांस बुकिंग करवा रखी थी तो रिव्यू पढ़ के मायूस सा हो गया लेकिन संभाजी महाराज के बारे में जानने और सुनने की उत्कंठा मुझे सिनेमा हॉल तक लेकर गई ही। यह फिल्म देखकर मुझे ऐसा लगा कि इतिहास के कुछ ऐसे पन्ने जिनपर इस तरह से धूल जम गई की इसे पढ़ने की कोशिश ही नहीं कर सका। और शायद इसी कारण मैं आज अपना पहला रिव्यू लिख रहा हूं।
मैंने आज तक किताबों और कहानियों में केवल छत्रपति शिवाजी महाराज के बारे में ही पढ़ा सुना था लेकिन धर्मवीर संभाजी महाराज की जैसी छवि देखी वो शायद ऐसी ही वास्तविक रही होगी। विकी कौशल ने इस किरदार की निभाया नहीं बल्कि जिया है , आजकल की मेरी जैसी पीढ़ी को दिखाने के लिए जिन्हें बस इतिहास से अकबर द ग्रेट ही देखा सुना है। “ॐ नमः पार्वती पतये, हर-हर महादेव” का नाद आपके रोम रोम में धर्म का नाद कर देता है। सिनेमा का संवाद और छावा की अभिव्यक्ति का संगम अद्भुत है। रश्मिका और आशुतोष राणा ने अपने सीमित दृश्यों के साथ न्याय किया है। औरंगजेब के किरदार के साथ अक्षय खन्ना ने जो न्याय किया है वो शायद उन्हें अपने समकक्षों से बहुत ही अलग श्रेणी में ले जाता है। स्वेटर बुनते हुए उनका पहला दृश्य और अंतिम दृश्य में अपनी खीझ से अपने अर्दली की जान लेना सभी में जान फूंक दी है।
इस पूरी फिल्म के अंतिम के आधे घंटे पूरी फिल्म पर भारी है। धर्मवीर महाराज और औरंग के आमने सामने होने का दृश्य जिसका चित्रण ऐसा हुआ है जिसकी आप बस उम्मीद कर सकते हैं। आपको कोई पश्चाताप नहीं करना होगा। अगर आपके हृदय में यदि कोई कवि मन है तो आप वो अंत के १० मिनट बिल्कुल नहीं छोड़ना चाहेंगे। बस मुझे संगीत से थोड़ी निराशा हुई शायद रहमान सर प्रेम और वीर रस को सुरों अच्छे से ढाल नहीं पाए।
जाइए और धर्मवीर राजे छत्रपति संभाजी महाराज को देखिए और अपने इतिहास को समझने का प्रयत्न कीजिए। हां अपने बच्चों को भी यह जरूर मूवी दिखाए अन्यथा रील और शॉर्ट्स के पीछे अंधी पीढ़ी शायद हिंदवी साम्राज्य का अर्थ ही न समझ पाए जो शिवाजी महाराज से होकर लोकमान्य तिलक तक आ गई और अब ग्लोबलाइजेशन की बलि न चढ़ जाए।
साभार – केशव राय
