पंकज कुमार झा : आवश्यकता आज मतदाता परिष्कार की..गिरोह को आज भी भाजपा से मात्र दो प्रतिशत कम वोट मिले

आपने Maha Kumbh में हुए हादसे के बाद एक बात गौर किया होगा। भाजपा विरोधी सभी समूहों की एकमात्र रुचि मरे हुए लोगों की संख्या जानने में थी, या फिर उन लाशों की तस्वीरें-वीडियो आदि देखने दिखाने में।

किसी भी गिरोह को न तो राहत कार्य आदि में किसी तरह का कोई सहयोग देना था, न ही कुंभ के माहात्म्य से किसी का कोई सरोकार था। एकमात्र चिंता सबकी यही थी कि चाहे जैसे भी हो, मोदी-योगी को बदनाम करना होगा। इसके उलट भाजपा चाहे सत्ता में हो या नहीं, पर किसी भी आपदा के समय प्रातः स्मरणीय स्वयंसेवकों का समर्पण और सेवाभाव तो देखा ही होगा आपने? जब भी देश की बात आती, तब भाजपा या जनसंघ के लोग पक्ष-विपक्ष का अंतर बिसर जाते थे। पर आज ….

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हां। इस बार मीडिया ने अवश्य अपेक्षाकृत अधिक जिम्मेदार भूमिका निभाया, पर विपक्षियों ने जिस गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार का परिचय दिया, जिस तरह हर विपक्षी नेता की जीभ लाशों की संख्या जानने और तस्वीरों को देखने के लिए लपलपाती दिखी, वह शर्मिंदा करने वाला है।

याद कीजिए अमेरिका के 09-11 की घटना। आपने किसी भी माध्यम से उस हमले में दिवंगत हुए एक भी व्यक्ति की लाश नहीं देखी होगी। विपक्षी पार्टियां तो क्या खा कर देश को चलायेगी, उसे दशकों लगेंगे यह सीखने में कि विपक्ष को कैसा होना चाहिए। विपक्ष के नेता ऐसा होने चाहिये जिसे वोट भले नहीं मिले, लेकिन सम्मान किसी भी सत्ताधारी से कम न हो।

स्मरण कीजिये अटलजी का दौर! समूचे देश के लाड़ले थे। कई बार उलाहना देते हुए जनता से कहते भी थे कि भाषण पर तालियां बजाते हैं आप सभी, पर वोट नहीं देते। ऐसा कोई एक भी नेता आपको विपक्ष का मिलेगा आज, जिसे आप समर्थन नहीं करते हों लेकिन उनके लिए करतल ध्वनि करते हों? नहीं न?

आज स्वयं से पूछिये कि विपक्ष का एक भी नेता देश भर में ऐसा दिखता है क्या आपको जो आपकी जात/विचार का न हो फिर भी और आप प्यार या सम्मान करते हों उन्हें? आज विपक्ष के नेताओं ने अपनी करतूतों से किसी भी दुश्मन से अधिक घृणा कमाया है। यह ठीक है कि उसी घृणा से पैदा हुए दूसरे समूह के अंध समर्थन से उनका घर चलता है। लेकिन लोकतंत्र का अर्थ यह तो नहीं है न श्रीमान!

देश में अराजकता फैला कर विपक्षी दल तरह कुछ सीटें प्राप्त कर ही लिए,  शहरी नक्सली का गिरोह इकट्ठा कर ही लें, तो आखिर लाभ क्या इसका?

छत्तीसगढ़, दिल्ली आदि में भाजपा की जीत हम जैसों के लिए तो किसी से भी अधिक प्रसन्नता का सबब इसलिए भी है क्योंकि निजी तौर पर भी इसका लाभार्थी हूं। फिर भी कुछ देर संतुष्ट हो जाने के बाद थोड़ा चिंतित भी हो जाता हूं कि खतरा थोड़ी देर के लिए भले टल जाय, लेकिन समाप्त नहीं हुआ है।

इस बुरी पराजय के बावजूद भी छत्तीसगढ़ में कांग्रेस आज वोट प्रतिशत के मामले में वहीं खड़ी है, जितने वोट प्रतिशत से उसने पिछली बार ऐतिहासिक जीत प्राप्त की थी। इसी तरह गर्त में चले जाने के बावजूद आआपा गिरोह को आज भी भाजपा से मात्र दो प्रतिशत कम वोट मिले हैं। इसका क्या अर्थ है?

इसका अर्थ यह है कि आज भी देश में बड़ी संख्या में ऐसे तत्व हैं, जिसे भारत के हित से कोई मतलब नहीं है, वह अपनी लिप्सा के लिए देश को वैसे ही केक की तरह टुकड़े कर सकते हैं, जैसा नेहरूजी ने कर दिया था। जरा सा समीकरण बदलते ही, या थोड़े से अपनों के स्वार्थी हो जाते ही ये तत्व हावी हो जाएँगे, फिर न तो पाकिस्तान से हाथ मिलाते इन्हें हिचक होगी, न ही चीन के हाथ देश को बेचने में या सर पर लाल टोपी रूसी रख लेने में। इसलिए सबसे अधिक आवश्यकता आज मतदाता परिष्कार की है।

आज अमेरिका से अवैध प्रवासियों को बाहर किया गया है। हमें बहुत ही प्रसन्नता हुई, चाहे हथकड़ी लगा कर भेजे या नंगा कर भेज दे, उसके देश में चोरी से घुसने वालों से जैसी मर्जी व्यवहार करना उनका अधिकार है। हमें भी देश के हित में वैसा ही होना होगा तभी स्थायी सुरक्षा हो पाएगी हिंदुस्थान की। अन्यथा राष्ट्रद्रोही दलों के अस्तित्व में रहते हुए मां भारती के ललाट पर चिंता की रेखायें विद्यमान ही रहेगी। ऐसे-ऐसे कपूत के रहते कोई भी मां आश्वस्त और प्रसन्न तो नहीं रह सकती।

पता नहीं क्या-क्या लिखता गया। सिलसिला भी टूटा है अनेक बार। पर ऐसा ही महसूस करता हूं मैं। ये लोग महज राजनीतिक विपक्ष नहीं हैं। ये दुश्मन हैं। उससे अधिक खतरनाक दुश्मन, जैसे सीमा पार के मियाँ हाफिज या कोई और….

कुछ अनर्गल तो नहीं लिखा है न मैंने? बताइये भी।

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