सुरेंद्र किशोर : मेलबर्न (न्यूजीलैंड) के ‘काॅलेज ऑफ सर्जन’ में ऋषि सुश्रुत की 550 किलोग्राम की मूर्ति क्यों है?
चिकित्सा पद्धतियों के बीच आपसी विवाद
की जगह सब अपनी-अपनी गुणवत्ता बढ़ाए।
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दवा की गुणवत्ता पर सवाल उठाइए।
चिकित्सा शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर करने के लिए भी
आवाज उठाइए।
पर, एक चिकित्सा पद्धति के लोग दूसरी पद्धति को नीचा दिखाने की कोशिश न करंे तो अच्छा।
सभी प्रणालियों का अपना-अपना महत्व है।
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शल्य चिकित्सा के पितामह व प्राचीन भारतीय ऋषि सुश्रुत का नाम
सुना है ?
नहीं सुना है तो गुगल से मदद लीजिए।
मेलबर्न (न्यूजीलैंड) स्थित ‘काॅलेज ऑफ सर्जन’ के परिसर में ऋषि सुश्रुत की 550 किलोग्राम की मूर्ति आपको मिल जाएगी।
हड्डी के एक बड़े डाक्टर ने मुझसे कहा कि अनुलोम-विलोम करने से सर्वाइकल स्पोंडोलाइटिस में आपको लाभ होगा।
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मैंने खुद आयुर्वेद दवाओं से अपना कोलोस्ट्रोल घटाया है।
आयुर्वेद की दवा का साइड इफेक्ट नहीं है।
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प्राकृतिक चिकित्सा बुनियादी चिकित्सा है।
प्राकृतिक चिकित्सा की ही एक शाखा है–मूत्र चिकित्सा।
कैंसर का इलाज मूत्र चिकित्सा में उपलब्ध है।
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(नब्बे के दशक में जापान के एक चिकित्सक हाशीबारा ने आॅटो यूरिन थेरैपी पर अपने देश में एक शोध संस्थान खोला।
उन्होंने यह भी बताया कि इससे कई असाध्य रोगों का इलाज संभव है।
हाशीबारा ने बताया कि जापान में 20 लाख लोग मूत्र चिकित्सा को अपना रहे हैं।
–विद्योतमा वत्स,
जनसत्ता,
24 अप्रैल, 1996)
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हाशीबारा ने मोरारजी देसाई से भी सलाह ली थी।
मैंने खुद मूत्र चिकित्सा पर मोरारजी देसाई और जार्ज फर्नांडिस से पत्र-व्यवहार किया था।
दोनों ने इसके पक्ष में राय दी।
देसाई ने इस विषय पर किताब का नाम भेजा।(9 अगस्त 1981)जार्ज ने 26 अक्तूबर 1993 को लिखा कि यदि मूत्र चिकित्सा से सफेद दाग होता तो मोरार जी सफेद होने चाहिए थे।इस मामले में जार्ज देसाई के शिष्य थे।
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जिस मूत्र चिकित्सा पद्धति में एडवांस स्टेज के कैंसर का इलाज भी संभव है,उसका उपहास सर्वाधिक होता है।मैं वैसे दो मरीजों को जानता हूं जिनके मर्ज ठीक हुए।
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इस देश में भ्रष्टाचार सर्वव्यापी और सर्वग्राही है।इसीलिए किसी भी चिकित्सा पद्धति से तैयार दवाओं की शुद्धता के बारे में आपको कोई
गारंटी नहीं दे सकता।
एलोपैथिक दवाओं के एक स्टाॅकिट ने, जो स्कूल में मेरा सहपाठी था,बताया कि हमलोग 10 प्रतिशत नकली दवाएं 90 प्रतिशत असली में मिला देते हैं।
ऐसा इसलिए संभव होता है क्योंकि सरकारी निगरानी तंत्र अपना काम ईमानदारी से नहीं करता।(कई मामलों में तो तंत्र कहता है कि गलत काम से पैसे कमाओ और उसमें से हमें भी दो।)
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इन दिनों स्वामी रामदेव के ‘पतंजलि’ पर विवाद जारी है।
स्वामी रामदेव भी दूसरी पद्धति पर हमलावर रहते हैं।
मेरा तो सभी पद्धतियों पर भरोसा है।
जरूरत के अनुसार अपनाता हूं।
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चाहिए यह कि चिकित्सा शिक्षा की गुणवत्ता बढ़े,दवाएं नकली न बनें।सरकार इन दोनों बातों को सुनिश्चित करे।
विभिन्न पद्धतियों के लोग अपने -अपने काम ठीक से करें।
स्वामी रामदेव कुछ बुनियादी सवाल उठा रहे हैं।उनकी भी जांच हो।खुद रामदेव जी अपने उत्पादों की गुणवत्ता पर ध्यान दें।
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योग को जन -जन पहुंचाने में रामदेव का बड़ा योगदान है।
आयुर्वेद के क्षेत्र में भी उनका योगदान है।
पर,यदि उनके उत्पादों पर सवाल उठ रहे हैं तो उसकी जांच करवा कर खुद को उन्हें साबित करना ही चाहिए।
अपनी साख बनाए रखिए और बढ़ाइए।
कम ही उत्पाद हो,पर गुणवत्तापूर्ण हो।