सुरेंद्र किशोर : केंद्रीय बजट पर बिहार को लेकर चिदम्बरम का बयान जले पर नमक !
पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री और कांग्रेस नेता पी.चिदम्बरम ने मौजूदा केंद्रीय बजट प्रस्तावों पर कहा है कि ‘‘बजट में सिर्फ मध्य वर्ग और बिहार के मतदाताओं को रिझाने का प्रयास हुआ है।’’
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चिदंबरम साहब,
यदि मौजूदा मोदी सरकार ने बिहार के लिए कुछ किया है तो वह नेहरू सरकार की उपैक्षा नीति की क्षतिपूर्ति की एक छोटी कोशिश मात्र है।
मत भूलिये कि सन 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में अंग्रेजों की गोलियों से जितनी संख्या में BIHAR ME लोग मारे गये थे,उतनी संख्या में किसी एक अन्य राज्य में नहीं मारे गये।
फिर भी पता नहीं,(बिहार से ) डा.राजेंद्र प्रसाद के कारण या किसी अन्य कारणवश नेहरू ने कृषि प्रधान राज्य बिहार के साथ सौतेला व्यवहार किया।बाद में भी यह व्यवहार जारी रहा। RAHI SAHI KASAR BIHAR KE KUCHH BHRASHTA MUKHYA MANTRIYON NE POORI KAR DI
कहा गया कि बिहार केंद्र का आंतरिक उपनिवेश है।इस शीर्षक से एक किताब भी छपी थी।
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. आजादी के तत्काल बाद जवाहरलाल नेहरू सरकार ने रेल भाड़ा समानीकरण नियम लागू कर दिया।उस नियम के कारण नब्बे के दशक तक ,जब तक वह नियम लागू रहा,बिहार को करीब 10 लाख करोड़ रुपए (तब के मूल्य के आधार पर)से वंचित कर दिया गया था।यदि वह लाभ हासिल हुआ होता तो बिहार पिछड़ा नहीं रहता।
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इसके बदले तब बिहार को कोई क्षतिपूर्ति या विशेष मदद भी नहीं की गई।
नतीजतन,सन 1970 आते -आते पिछड़ापन की दृष्टि से देश में बिहार का नीचे से दूसरा स्थान था।
1970 में देश के राज्यों में बिहार से अधिक पिछड़ा सिर्फ ओड़िशा था।
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आजादी से पहले टाटा कंपनी ने जमशेदपुर में बहुत बड़ा इस्पात कारखाना लगाया।
दक्षिण बिहार में, जो अब झारखंड है,खनिज पदार्थों की भारी उपलब्धता के कारण ही टाटा ने यह काम किया।
तब रेल भाड़ा समानीकरण नीति नहीं थी।
नतीजतन ,खनिज पदार्थों की उपलब्धता का लाभ टाटा कंपनी के रूप में पूरे बिहार को भी मिला।याद रहे कि देश का करीब 40 प्रतिशत खनिज पदार्थ अविभाजित बिहार में उपलब्ध था।
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रेल भाड़ा समानीकरण नीति के अनुसार
खनिज पदार्थों की रेलगाड़ी से ढुलाई का जितना भाड़ा धनबाद से रांची ले जाने पर लगेगा,उतना ही भाड़ा धनबाद से मुबंई या मद्रास का लगेगा।
नतीजतन समुद्र तटीय इलाकों में कारखाने अधिक लगने लगे।
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कृषि तथा दूसरे क्षेत्रों में समरूप आर्थिक मदद देकर तब की केंद्र सरकार बिहार के साथ हो रहे अन्याय के कुप्रभाव को कम कर सकती थी।
पर, पंच वर्षीय योजनाओं के आंकड़े बतातेे हैं कि बिहार में अन्य अनेक राज्यों की अपेक्षा केंद्र की ओर से काफी कम योजनागत व्यय किया गया।
यहां तक कि केंद्र सरकार ने भांखड़ा नांगल योजना में तो पूर्ण मदद की ,पर जब कोसी सिंचाई योजना के क्रियान्वयन के लिए मदद की मांग बिहार से हुई तो नेहरू सरकार ने टका सा जवाब दे दिया।
कह दिया कि बिहार सरकार श्रम दान के जरिए कोसी बांध का निर्माण कराए ।क्योंकि हमारे पास धन की कमी है।
केंद्र सरकार का कृषि(उसमें सिंचाई भी शामिल था)मंत्रालय के कुल बजट की लगभग एक तिहाई राशि सिर्फ पंजाब को दे दी गयी थी।इतनी बड़ी राशि मिली तो भ्रष्टाचार होना ही था।
मुख्य मंत्री प्रताप सिंह कैरो के खिलाफ न्यायिक जांच आयोग बैठा।सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एस.आर.दास के नेतृत्व में बने आयोग ने कैरो परिवार को भ्रष्टाचार के लिए दोषी ठहराया।पर नेहरू जी ने कृष्ण मेनन की तरह ही कैरो को भी बचा लिया। 27 मई को नेहरू का निधन हुआ।
21 जून 1964 को ही कैरों को मुख्य मंत्री पद से हटाया जा सका।क्योंकि तब तक शास्त्री जी जैसे ईमानदार व्यक्ति प्रधान मंत्री बन गये थे।
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इधर बिहार की भूमि सिंचाई के लिए तरसती रही।
उधर भ्रष्टाचार में सरकारी पैसे जाया होते रहे।
प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने तो 1985 में 85 पैसे बनाम 15 पैसे की बात कही।
कहा था कि 100 सरकारी पैसों में से 85 पैसे बिचैलिए खा जाते हैं।
पर,सन 1963 में ही तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष डी.संजीवैया को इन्दौर के अपने भाषण में यह कहना पड़ा कि ‘‘वे कांग्रेसी जो 1947 में भिखारी थे, वे आज करोड़पति बन बैठे।’’
गुस्से में बोलते हुए कांग्रेस अध्यक्ष ने यह भी कहा था कि ‘‘झोपड़ियों का स्थान शाही महलों ने और कैदखानों का स्थान कारखानों ने ले लिया है।’’
ऐसे में बिहार में सिंचाई के लिए केंद्र कहां से पैसे देती !
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नतीजतन बिहार में सन 1966-67 में भारी सूखा पड़ा।बड़ी संख्या में भुखमरी हुई।
प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने 5 नवंबर, 1966 को पटना में कहा कि ‘‘जितना अनाज बिहार सरकार केंद्र से मांग रही है,उतना देने की स्थिति में हम नहीं हैं।हम हर माह 4 लाख टन अनाज नहीं दे सकते।’’
याद रहे कि तब बिहार में भी कांग्रेस की ही सरकार थी।
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1967 में महामाया प्रसाद सिन्हा के नेतृत्व में संयुक्त मोर्चा की सरकार बन गई।
इस गैर कांग्रेसी सरकार में मुख्य मंत्री सहित लगभग सभी मंत्री कट्टर ईमानदार थे,इसलिए भुखमरी कम हुई।क्योंकि मंत्रियों ने मेहनत की।राहत के पैसों में लूट नहीं होने दी गयी।
जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में बिहार रिलीफ कमेटी बनी थी।उसका भी सकारात्मक असर पड़ा।उन्ही दिनों
मैंने तब एक विशेषज्ञ की टिप्पणी पढ़ी थी।
उसने कहा था कि उत्तर बिहार की भूमि जापान की भूमि की अपेक्षा अधिक उपजाऊ है।पर,वह वर्षा पर निर्भर है।यदि सिंचाई की पक्की व्यवस्था हुई होती तो इतना बड़ा सूखा और अकाल नहीं पड़ता।
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अब आप ही बताइए कि पी.चिदंबरम का ताजा बयान बिहार के जले पर नमक छिड़कने जैसा है नहीं ?