राजीव मिश्रा : ट्रम्प ने एक भाषण से पॉलिटिकल करेक्टनेस को.. दुनिया की साइलेंट मेजॉरिटी को स्वर दिया

प्रेसिडेंट ट्रम्प के उदघाटन भाषण के कुछ मुख्य विंदु…

सबसे पहले – अमेरिका फिर से एक फ्री कंट्री है. कोई सेंसरशिप नहीं होगी. किसी को भी उसके ओपिनियन के लिए प्रताड़ित नहीं किया जाएगा.

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दक्षिणी सीमा पर इमरजेंसी की घोषणा – यानि अवैध घुसपैठ बंद, घुसपैठियों की शामत.

देश में DEI (Diversity, Equality, Inclusion) का ड्रामा बंद.. यानि रेस, जेंडर, सेक्सुअलिटी को रखिए पिछवाड़े, बताइए कि आप किस काम के हैं, और काम कीजिए.

फौज के भीतर आइडियोलॉजिकल बकवास बन्द.. फौज का बस एक काम है, देश के दुश्मनों को परास्त करना. और फौज को इतना मजबूत बनाना कि लड़ाइयाँ लड़नी ही ना पड़े.

इजरायली बंधकों की तत्काल वापसी.

और सबसे बड़ा धमाका – सिर्फ और सिर्फ दो जेंडर… स्त्री और पुरुष.

उसके अलावा आर्थिक पहलुओं पर कुछ छोटे छोटे धमाके…
ड्रिल बेबी ड्रिल… अमेरिका अपने तेल भंडार से तेल निकालेगा और इस्तेमाल करेगा. यानि वामपंथ की ग्रीन डिक्टेटरशिप समाप्त. और गाड़ी जैसी मर्जी, वैसी चलाओ.. चाहे पेट्रोल-डीजल, चाहे इलेक्ट्रिक..

ट्रम्प ने टेस्ला के मालिक एलोन मस्क को बाजू में बिठा कर यह घोषणा की… ऐसा नहीं है कि मस्क ने ट्रम्प को इलेक्शन जितवाया है तो वह ट्रम्प से अपने फायदे के लिए फैसले भी करवाएगा. बल्कि मस्क ने इलेक्ट्रिक कारों का बाजार खड़ा किया, लेकिन वह खुद पेट्रोल कारों पर रोक लगाए जाने का विरोधी है. यह होना चाहिए कैपिटलिज्म का कैरेक्टर… आओ, आकर कम्पीट करो!

उसके अलावा, ट्रम्प ने स्टार एंड स्ट्राइप को मार्स तक ले जाने का इरादा भी जताया है.

सिर्फ एक बात है पूरे संबोधन में, जो मुझे अर्थशास्त्र की दृष्टि से कमजोर लगी – आयत पर ट्रेड टैरिफ लगाने की घोषणा.
जब कोई देश कोई चीज निर्यात करता है तो उसमें उसका फायदा है, और जब कुछ आयात करता है तो वह भी अपने फायदे के लिए ही करता है. इंपोर्ट पर टैरिफ लगाना किसी भी देश के हित में नहीं है. कोई चीज आप बाहर से खरीदते हैं तो इसलिए खरीदते हैं क्योंकि वह चीज उतनी कीमत पर आपके यहाँ नहीं बन सकती. आयात पर टैरिफ लगा कर आप किसी और का नहीं, अपने ही लोगों का नुकसान करते हैं, अपने ही नागरिकों को महंगा खरीदने के लिए मजबूर करते हैं.

यहां तक तो है कहने की बात. पर उससे बड़ा प्रश्न है, जितना कहा गया है, उसमें से कितना किया जा सकेगा? स्कूलों में, यूनिवर्सिटी में, ज्यूडिशियरी में, फौज में जो भी वोक एलिमेंट्स हैं वे अपना काम करते रहेंगे… प्रेसिडेंट के कहने से टीचर्स क्लासरूम में जो पढ़ा रहे हैं उसे बदल नहीं देंगे. अमेरिका फेडरल है, राज्यों पर प्रेसिडेंट का बस नहीं चलता. इसलिए ट्रम्प के एक भाषण से अमेरिका बदल जाएगा यह सोचना नादानी होगी. कम्युनिज्म से खुली दुश्मनी के जमाने में, जोसेफ मैकार्थी के जमाने में भी जो वामपंथी घड़ा अपना काम करता रहा वह एक भाषण के सामने घुटने टेक देगा यह उम्मीद तो मत रखें.

लेकिन ट्रम्प ने अपने एक भाषण से पॉलिटिकल करेक्टनेस को कम से कम बीस साल पीछे धकेल दिया है. उन्होंने दुनिया की साइलेंट मेजॉरिटी को स्वर दिया है. कॉमन सेंस की जो बात कहने में एक आम आदमी हिचकने लगा था, वह फिर से कहने की हिम्मत दी. एक बार फिर से अमेरिका को लैंड ऑफ द फ्री एंड होम ऑफ द ब्रेव बना दिया.

– श्री राजीव मिश्रा के पोस्ट से साभार।

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