डॉ. पवन विजय : बदलाव ऐसे आता है…
जब राष्ट्रोत्थान न्यास द्वारा उन्नाव का गुरुकुल और अखाड़ा बन रहा था तब से लेकर अब तक काफी कुछ बदला। सीमित संसाधनों की वजह से गति धीमी अवश्य है लेकिन निरन्तरता बनी हुई है। गुरुकुल का केवल विद्याध्ययन तक ही सीमित नहीं है वरन आस पास के ग्रामों को लोक संस्कार के माध्यम से अभिसिंचित कर रहा है। म्लेच्छ संस्कृति के उच्छेदन और वैदिक संस्कृति के लेपन का कार्य कर रहा है।
एक बदलाव हवा और पानी को लेकर है। कहते हैं जब काक भुसुंडी के आश्रम में कोई जाता था तो एक योजन पहले से ही उसकी मलिनता कम होने लगती थी, कुछ ऐसा ही यहां पर भी हो रहा है। गुरुकुल तप करने की जगह है, पर श्रम की थकान मां की गोद में छू हो जाती है। इस तपोस्थल में प्रकृति मां का आंचल समृद्ध है। आचार्य योगेश ने यह कठिन कार्य पूर्ण प्रतिबद्धता के साथ किया है।
यहां पढ़ने वाले बच्चे हर तबके के हैं, संविधान भले ही आपकी जाति पूछकर स्कूल में प्रवेश देता हो पर यहां बिना भेदभाव के उन्हे निःशुल्क शिक्षा दी जा रही है। विज्ञान, साहित्य, संस्कृत और कुश्ती प्राथमिक तौर पर सिखाया जा रहा है साथ ही आस पास के गांवों में लोक संस्कार उत्सव का भी आयोजन गुरुकुल के माध्यम से होता है।
एक अभिनव बात यह हुई है कि यहां सभी वर्णों के लोग संध्या करते हैं, यहां आने के बाद बालक द्विज हो जाते हैं।
मुझे भरोसा है यहां से पढ़कर बच्चे किसी को गाली नहीं देंगे, रक्षा के लिए शक्ति का प्रयोग करेंगे, कल्याण के लिए ज्ञान का प्रयोग करेंगे और संसार की हवा पानी को शुभ रखेंगे।
उन्नाव विशेषकर बांगरमऊ आस पास के लोग अनाज देकर जरूर सहयोग करें क्योंकि बटुकों के भोजन की व्यवस्था एक मुश्किल काम होता है, पुस्तक शुल्क कपड़े तो एक बार में हो जाते हैं लेकिन आहार प्रतिदिन चाहिए होता है।
मेरा सभी राष्ट्र हित को सर्वोच्च भाव में रखने वालों से निवेदन है कि अपना सहयोग सुनिश्चित करें।