सर्वेश तिवारी श्रीमुख : विनोद !
पंचायत का विनोद देश की उस बड़ी आबादी का प्रतिनिधि है जो अपने आप को गरीब बताने में गर्व का अनुभव करती है। उनके दिमाग में यह बात बस गयी है कि संसार की सारी सम्पत्ति पर गरीबों का हक है। जैसे गरीब होना ही सबसे बड़ी योग्यता, सबसे बड़ा बल हो। वे गरीबी को सेलिब्रेट करते हैं।
ऐसे लोग मानते हैं कि सरकार की हर योजना का लाभ पहले उन्हें ही मिले। सरकार उन्हें घर दे, भोजन की व्यवस्था करे, चावल दाल नून तेल तरकारी दे, बिजली और पानी दे, और अंत में निष्पादन के लिए शौचालय भी। सबकुछ फ्री… उन्होंने गरीब पैदा हो कर इस संसार पर जो उपकार किया है उसके लिए संसार को इतना तो करना ही चाहिये।
आपको मेरी बात तनिक कठोर लग रही होगी, पर जो लोग गाँव देहात में रहते हैं वे जानते होंगे कि यही सच है। स्वयं को गरीब बताने वाले किसी व्यक्ति से बात कीजिये, वह बताएगा कि संसार के सभी अमीर चोर हैं। जो दिन भर देशी दारू पी कर किसी पुल-पुलिया पर पड़ा रहता है, वह भी कहेगा कि टाटा- बिरला ने उसका खून चूस कर धन बनाया है।
विनोद का राष्ट्र के सकल घरेलू उत्पाद में ढेले भर का भी योगदान नहीं, पर वह पूर्ण विश्वास से कहता है कि देश उसी की कमाई से चल रहा है। अपने जीवन काल में वह अपने कुल योगदान से दस गुना अनुदान ले लेता है, फिर भी उसे लगता है कि उसके साथ न्याय नहीं हो रहा। बड़े लोग उसका हिस्सा खा रहे हैं।आपको अनेक ऐसे लोग मिलेंगे जो मिल रही सरकारी सुविधाओं के लिए कहते हैं- फलाँ अपने बाप के घर से दे रहे हैं? यह तो हमारा अधिकार है।” बोलते समय वे बिल्कुल भी नहीं झिझकते। अनुदान को अधिकार समझने की बीमारी इस देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है, जिसका असर दस-पन्द्रह वर्ष बाद दिखाई देगा।
देश का माहौल ऐसा हो गया है कि सरकार को टैक्स देने वाले लोग अपराधी लगने लगे हैं और सरकार से अनुदान खाने वाले पीड़ित, शोषित! इस देश के लेखकों, कलाकारों, बुद्धिजीवियों ने सत्तर साल में यही माहौल बनाया है।
गरीब होने के नाते विनोद को अधिकार है कि वह उप प्रधान बने। वह बनेगा। भले उसे अपना नाम तक बोलना नहीं आता, वह परधान बनेगा। यही लोकतंत्र है, साम्यवाद है।
सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।