मोदी-योगी की राह में छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना का गिलहरी प्रयास

संभवतः बाहरी भीतरी की लड़ाई बोली की मिठास से समाप्त हो जाए और यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़ा प्रयास स्थानीय बोली को शिक्षा का माध्यम बनाने के लिए किया है।

वर्ष 2002 में बिलासपुर उच्च न्यायालय का छत्तीसगढ़ी में ऑर्डर शीट

योगी आदित्यनाथ जो करते हैं वो अपने आप मे अनूठा होता है और यही कारण है कि वे पूरे देश में अब तक के सर्वाधिक लोकप्रिय मुख्यमंत्री हैं। संविधान निर्माता बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने संस्कृत को राष्ट्रभाषा और पंचांग को राष्ट्रीय कैलेंडर बनाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया लेकिन अंग्रेजी विचार के जवाहर लाल नेहरू ने इसे सिरे से नकार दिया था। संस्कृत के पिछड़ने का एक मुख्य कारण यह भी है लेकिन उत्तर प्रदेश के धुंवाधार नेता योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश में विज्ञप्तियों को संस्कृत में भी जारी करने का आदेश जारी किया, जो कि संस्कृत के उत्थान की दिशा में गिलहरी योगदान की तरह है।

देश के किसी राज्य में पहली बार ऐसा पहली बार हुआ लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो स्थानीय बोली-भाषाओं के उत्थान के लिए इसे शिक्षा और न्यायिक प्रक्रिया का माध्यम बनाने के लिए जोर देते रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मानना है कि अपनी मातृभाषा-बोली में ही पठन पाठन से नौनिहालों का सर्वांगीण विकास होता है।

अब बात छत्तीसगढ़िया क्रान्ति सेना की, छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ की माटी से जुड़े अनेक संगठन कार्यरत है जो छत्तीसगढ़ियावाद बात की बात तो करते हैं लेकिन जमीन पर उतरकर काम करने में उन्हें हिचक होती है। उन संगठनों से जुड़े लोगों के बीच इस हिचक को छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना ने तोड़ा है और अपने प्रेस नोट या संगठन से जुड़े किसी भी प्रकार की कार्यवाही को छत्तीसगढ़िया शैली में छत्तीसगढ़ी में ही जारी करती है।

छत्तीसगढ़िया क्रान्ति सेना की कार्यशैली की बानगी नीचे इन दो उदाहरणों से स्पष्ट होती है।

 

 

 

कहने को तो जिलेवासियों की समस्याओं को दूर करने के लिए, क्षेत्र के विकास को नया स्वरूप प्रदान करने के जिले के उच्चतम पद पर नियुक्त होकर लोग आते हैं लेकिन यहां की स्थानीय भाषा छत्तीसगढ़ी को अपनी दिनचर्या में प्रयोग करने से झिझकते नजर आते है।

छत्तीसगढ़ी बोली जिसे अब राजभाषा का दर्जा दिया गया है इसमें इतनी  सहजता और मिठास है कि यह मन को भीतर तक छू लेती है। इसमें इतनी सरलता और स्वाभाविकता है कि बोले गए बोल कानों में रस घोल जाते हैं। छत्तीसगढ़ी बोली में संवाद की परंपरा छत्तीसगढ़ के बाहर से आये लोगों के परिवार में भी तेजी से बढ़ रही है। पत्रकार साथी स्वर्गीय रमेश पासवान बिहार से थे लेकिन घर में संवाद का माध्यम छत्तीसगढ़ी ही रहा। आमजनों की बोली में संवाद के कारण ही ताजा आकर बसे हुए व्यापारियों का व्यापार सुदूर ग्रामीण अंचलों में बढ़ जाता है।

संभवतः बाहरी भीतरी की लड़ाई बोली की मिठास से समाप्त हो जाए और यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़ा प्रयास स्थानीय बोली को शिक्षा का माध्यम बनाने के लिए किया है।

भाषा में पिता सी गरिमा होती है लेकिन बोली में मां की ममता सा ठेठपन-अल्हड़पन समाया होता है। छत्तीसगढ़िया क्रान्ति सेना।की कार्यशैली बिलासपुर उच्च न्यायालय में छत्तीसगढ़ी में पारित एक आदेश की स्मृति ताजा कर गई है।

वर्ष 2002 में बिलासपुर उच्च न्यायालय का छत्तीसगढ़ी में ऑर्डर शीट

प्रसंगवश जब बात चली है तो आपको बता दें वर्ष 2002 में एक प्रकरण बिलासपुर उच्च न्यायालय ने पारित किया था, जिसमें ऑर्डर शीट छत्तीसगढ़ी में पारित हुआ था। इस ऑर्डर शीट में लिखा गया था –

” दिनांक 8.1.2002

आवेदिका कोति ले श्री के.के. दीक्षित अधिवक्ता,

शासन कोति ले श्री रणबीर सिंह, शास. अधिवक्ता

बहस सुने गइस।

केस डायरी ला पढ़े गेइस

आवेदिका के वकील हर बताइस के ओखर तीन ठन नान-नान लइका हावय। मामला ला देखे अऊ सुने से ऐसन लागत हावय के आवेदिका ला दू महिना बर जमानत मा छोड़ना ठीक रही।

ऐही पायके आदेश दे जात है के कहुँ आवेदिका ला पुलिस हर गिरफ्तार करथे तो 10000/- के अपन मुचलका अऊ ओतके के जमानतदार पुलिस अधिकारी लंग देहे ले आवेदिका ला दू महीना बर जमानत मे छोड़ देहे जाय।

आवेदिका हर ओतका दिन मा अपन स्थाई जमानत के आवेदन दे अऊ ओखर आवेदन खारिज होए ले फेर इहे दोबारा आवेदन दे सकथे।

एखर नकल ला देये जाये तुरन्त।”

– प्रकाशकीय

(प्रकाश साहू)

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