डॉ. पवन विजय : वामपंथी संस्कृत का विरोध क्यों करता है..?

वामपंथी संस्कृत का विरोध क्यों करता है?

दुनिया को गिनती और भाषा का ज्ञान भारत ने कराया, अग्नि को सदा प्रज्वलित करने का विधान, जल का नियमन, पर्यावरण के साथ तादात्म्य करना भारत ने सिखाया। सहज और सरल जीवन पद्धति, परोपकार, करुणा और धर्म को उद्घाटित करने का कार्य भारत भूमि पर सर्वप्रथम हुआ।

एनसीईआरटी के प्रोफेसर प्रमोद दुबे कहते हैं कि वामपंथी संस्कृत का विरोध जानबूझ कर करते हैं ताकि वे एक्सपोज़ न हो जाएं। उन्हें डाॅटर और काऊ की सच्चाई से बहुत डर लगता है। गौ> गऊ > गेऊ > गेऊस् । ग का क होता है प्रगट> प्रकट। वाक् वाग् । गऊ का कऊ > काऊ हो गया। जैसे खाट का काॅट। जो गाय दुहती थी वह लड़की दुहिता > दुहितर कही जाती थी। यही शब्द फारसी में दुस्तर है यही अँग्रेजी में डाॅटर।काऊ दूहने वाली लड़की ही डाॅटर हो सकती है,न। इनके अस्तित्व पर खतरा है इन्हें संस्कृत से बहुत डर लगता है। इसी तरह भ्रातृ, भ्रातर, ब्रदर, बिरादर की अवधारणा है।

संस्कृत पढ़िए, संस्कृत में रचित आचार्य शंकर की काव्य कुशलता देखकर आप टेनिसन, चौसर और वर्डस्वर्थ को भूल जाएंगे। कालीदास के संस्कृत साहित्य का माधुर्य इतना मोहक है कि शेक्सपियर फीका पड़ जायेगा। संस्कृत का इतिहास आपको आपके गोत्र से जोड़ देगा। संस्कृत पढ़कर आपकी जिव्हा गंगा सी पवित्र और मन पारिजात सा हो जाएगा।

पूर्ण की अवधारणा से परिचित होना है तो संस्कृत ही माध्यम है।ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते । पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ।। अर्थात परमात्मा सभी प्रकार से सदा सर्वदा परिपूर्ण है। यह जगत भी उस परब्रह्म से पूर्ण ही है, क्योंकि यह पूर्ण उसी पूर्ण से ही उत्पन्न हुआ है। उस पूर्ण में से पूर्ण को निकाल देने पर भी वह पूर्ण ही शेष रहता है। यह शून्य की कल्पना नही वास्तविकता है। शून्य यानी सिफर यानी जीरो केवल एक डिजिट नही बल्कि ब्रह्मांड को समझने की कुंजी है।

यह कुंजी संस्कृत में निर्मित है इसलिए वामपंथी संस्कृत का विरोध करता है।

संस्कृत पर केवल गर्व ही मत करिए, सीखिए पढ़िए।

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