अमित सिंघल : पूर्ववर्ती सरकारों और लोगों के बीच विश्वास की कमी गुलामी मानसिकता का परिणाम

प्रधानमंत्री मोदी ने 28 फरवरी को एक बजट वेबिनार में याद दिलाया कि एक समय समाज का एक वर्ग ऐसा था, जो चाहता था कि उनके जीवन में हर कदम पर सरकार का कोई न कोई प्रभाव हो, यानी सरकार उनके लिए कुछ न कुछ करे। पहले की सरकारों के समय इस वर्ग ने हमेशा अभाव ही महसूस किया। अभाव में जिंदगी जूझने में ही निकल जाती थी।

समाज में ऐसे लोगों का भी वर्ग था जो स्वयं के सामर्थ्य से आगे बढ़ना चाहता था। लेकिन पहले की सरकारों के समय ये वर्ग भी हमेशा दबाव, सरकारी दखल भांति-भांति की रूकावटें डगर-डगर पर महसूस करता रहा।

लेकिन मोदी सरकार के बीते कुछ वर्षों के प्रयासों से अब ये स्थिति बदलने लगी है। आज सरकार की नीतियों और निर्णयों का सकारात्मक प्रभाव हर उस जगह दिखने लगा है जहां इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है।

अब सरकार का प्रयास हर गरीब और वंचित के जीवन को आसान बना रहा है। लोगों के जीवन में सरकार का दखल और दबाव भी कम हो गया है। आज लोग सरकार को रास्ते की रुकावट नहीं मानते। बल्कि लोग हमारी सरकार को नए अवसरों को बढ़ने के तौर पर देखते हैं।

उदाहरण के लिए, वन नेशन-वन राशन कार्ड से करोड़ों नागरिको को पारदर्शिता से राशन मिलना सुनिश्चित हुआ। जनधन अकाउंट, आधार और मोबाइल इन तीनों के कारण करोड़ों नागरिको के बैंक खातों में सीधे पैसा भेजना संभव हुआ। पहले इन सभी सेवाओं के लिए “सरकार” की कृपादृष्टि पर आश्रित रहते थे।

उसी प्रकार से आरोग्य सेतु औऱ कोविन एप से कोरोना के दौरान ट्रेसिंग और वैक्‍सीनेशन में बड़ी मदद मिली। रेलवे रिजर्वेशन को और आधुनिक बनाया और सामान्य से सामान्‍य मानवी का इसमें कितना बड़ा सिरदर्द दूर हो गया है। टैक्स से संबंधित शिकायतें पहले बहुत ज्यादा होती थीं, और उसके कारण उसके माध्यम से करदाता को कई तरीके से परेशान किया जाता था। इसलिए सरकार ने टैक्स की पूरी प्रक्रिया को Faceless कर दिया। अब आपकी शिकायतों और उसके निपटारे के बीच कोई “व्यक्ति” नहीं है।

आज GeM पोर्टल ने दूर-दराज के छोटे दुकानदार या रेहड़ी-पटरी वालों को भी ये अवसर दिया है कि वो सरकार को सीधे अपना प्रोडक्ट बेच सकें। e-NAM ने किसानों को अलग-अलग जगहों के खरीदारों से जुड़ने का अवसर दिया है। अब किसान एक ही जगह रहते हुए अपनी उपज का सबसे अच्छा मूल्य पा सकते हैं।

प्रधानमंत्री महोदय ने बताया कि सरकार और लोगों के बीच विश्वास की कमी गुलामी की मानसिकता का परिणाम है। लेकिन आज छोटी गलतियों को de-criminalize करके, और MSME लोन के गारंटर के तौर पर सरकार ने लोगों का भरोसा जीता है। हमें यह भी देखना होगा कि दुनिया के दूसरे देशों में समाज के साथ विश्वास मजबूत करने के लिए क्या किया गया है। हम उनसे सीखकर अपने देश में भी वैसे प्रयास कर सकते हैं।

सरकार को ही सब ज्ञान है यह न हमारी सोच है न हमारा दावा है।

मेरे लेखो का यही सार है। एक आम भारतीय दिन-प्रतिदिन जीवनयापन एवं मूलभूत सुविधाओं के समाधान के लिए सरकार की ओर देखता था। एक आम नागरिक का सरकार से, अपने समुदाय से, व्यवसाय से विश्वास उठ गया था। उसकी दृष्टि में उस व्यक्ति एवं उसके परिवार को छोड़कर अन्य सभी लोग “चोर” थे। तभी मैंने लिखा था कि अविश्वास की महंगी कीमत हम अपनी जेब से चुकाते है।

कारण यह था कि स्वतंत्रता के बाद भारत का शासन एक ऐसे अभिजात्य वर्ग के हाथ में चला गया जिन की जड़ें अपने देश में नहीं थी। वह विदेशी अभिजात्य वर्ग का हिस्सा बन गए और उन्हीं की नीतियों को देश में लागू करते रहे। उनकी फंडिंग एवं नीतियों का उपयोग अपने लिए रेवड़ियां बांटने में करते रहे।

नहीं तो ऐसा संभव नहीं था कि जापान और चीन गरीबी से बाहर निकल आए, लेकिन भारत अभी भी गरीबी से जूझ रहा है। इसका कारण यह है कि राजनीतिज्ञ, नीति निर्धारक, और ब्यूरोक्रेट स्वयं समस्या का हिस्सा है। वह जानबूझकर ऐसी नीतियां बनाते आए हैं जिनको जनता समझ ना सके और सरकार को माई बाप समझते हुए कुछ रेवड़ियों के चक्कर में ही पूरी जिंदगी निकाल दें।

अभिजात्य वर्ग जानबूझकर शिक्षा, स्वास्थ्य, बैंकिंग, परिवहन और संचार व्यवस्था इत्यादि को जर्जर बना कर रखते थे। अगर अधिकांश जनसंख्या पढ़ लिख नहीं पाएगी, परिवहन और संचार के साधन कम और महंगे होने के कारण नए विचारो का आदान-प्रदान नहीं कर पाएगी और ना ही संगठित हो पाएगी, इस से सरकार को अपना कंट्रोल बनाए रखने में मदद मिलेगी। जितने भी गरीब देश हैं उनमें यह बात कामन है कि उनकी परिवहन, शिक्षा, संचार व्यवस्था इत्यादि जर्जर है।

सरकार को आम नागरिक के डेली जीवन से बाहर लाकर ना तो विश्वास बनाया जा सकता है; ना ही प्रगति की जा सकती है; ना ही भ्रष्टाचार समाप्त किया जा सकता है।

प्रधानमंत्री मोदी एवं उनकी टीम सरकार को आम नागरिको के डेली जीवन से बाहर निकाल रही है।

क्योकि सरकार सर्वज्ञानी नहीं हो सकती है।

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