राजीव मिश्रा : हर पर्व त्यौहार पर बम विस्फोट होते थे और वे एक हेडलाइन तक नहीं बनते थे..
ज्यादातर को याद नहीं होगा, 1984 के ओलंपिक में जब पी टी उषा 400 मीटर हर्डल्स में चौथे नंबर पर आई थीं, तो देश में क्या हलचल थी. तब बार बार याद किया जाता था कि 1960 में मिल्खा सिंह को चौथा स्थान और 1976 में श्रीराम सिंह को सातवां स्थान आया था.
1996 तक तो हम मेडल टैली में एक भी मेडल के लिए तरसते रहे. तब से आज तक में हमने यह हासिल किया है कि अब छह सात मेडल आने लगे हैं पर अब सिल्वर मेडल आने से हम दुखी हो जाते हैं.
यह बात सिर्फ खेलों के साथ ही नहीं है. एक समय हर पर्व त्यौहार पर बम विस्फोट होते थे और वे एक हेडलाइन तक नहीं बनते थे, ताज होटल में घुस कर सैकड़ों लोगों को मार दिया जाता था और तंत्र उसको आरएसएस की साजिश घोषित करता था. आज बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले होते हैं और हम सरकार से अपेक्षा करते हैं कि हम वहां सेना भेज दें.
एंबीशन रखना चाहिए. हमेशा रखना चाहिए. बिना एंबीशन रखे कुछ भी हासिल नहीं होता. लेकिन वास्तविकता के प्रति सजग भी रहना होगा. इस बार हमें गोल्ड नहीं आया, लेकिन नीरज चोपड़ा ही हमारा सबसे अच्छा खिलाड़ी है. गुस्से और असंतोष में नीरज को टीम से निकाल देने से गोल्ड नहीं आ जायेगा, बल्कि सिल्वर भी चला जायेगा.
जरूरत है यह समझ रखने की कि हमारे देश में खेलों का कल्चर नहीं है…यह कल्चर बनने में समय लगेगा. आवश्यकता है धैर्य रखने की, सतत प्रयास की और नए खिलाड़ी तैयार करने की, जिससे एक अकेले नीरज चोपड़ा का भरोसा न रहे. फिर गोल्ड आएगा, खेलों में भी… और अस्तित्व के संघर्ष के इस ओलंपिक में भी.
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