नरेंद्र मेहता : कोरबा में सांड.. कर रहे कांड…
शहर के गली मोहल्ले में सांड की तादाद इन दिनों आश्चर्य जनक ढंग से बढ़ गई हैं. राहगीरों को इससे काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा हैं. आये दिन सांडों को आपस मे लड़ते भिड़ते भी देखा जा सकता हैं.लड़ाई के दौरान इनकी चपेट में आकर कई वाहन भी क्षतिग्रस्त हो चुके हैं।
जहां तक सड़क पर आवारा पशुओं को धूमते देख उन्हें पकड़ने वाला निगम का अमला भी लगता हैं सांड से दूरी बनाये हुए हैं। केवल गाय को पकड़ कर कांजी हाऊस ले जाते हैं। सूत्रों का कहना हैं कि सांड को कांजी हाऊस में नहीं रखा जाता क्योंकि वहां भी भारी उत्पात मचाते हैं, इसलिए पकड़कर इन्हें जंगल मे छोड़ आते हैं लेकिन जिस हिसाब से शहर में सांड दिख रहे हैं उससे ऐसा नहीं लगता कि गंभीरता से इनकी पकड़ धक्कड़ हो रही हैं।
यह बात भी सामने आई हैं कि जिन सांडों को जंगल मे छोड़ा गया हैं तो जंगल के आसपास रहने वाले ग्रामीण उन्हें पकड़ कर शहर में छोड़ जाते हैं। मतलब सांड से सब त्रस्त हैं। यदि गंभीरता से इस दिशा में ध्यान नहीं दिया गया तो वरिष्ठ जन,महिलाएं और बच्चों के साथ कभी भी अनहोनी धटना धटित हो सकती हैं। गत वर्ष लालू नगर में रहने वाले एक गणमान्य नागरिक की जान सांड ने उन्हें पटक कर ले ली थी। घटना धटित होने के बाद सड़क पर धूमते आवारा पशुओं को पकड़ने का अभियान तेज कर दिया गया था। सबसे दुखद बात यह हैं मवेशी के मालिक भी जबतक गाय दूध देती हैं उसे बांधकर रखते हैं और जैसे ही दूध देना बंद हुआ सड़क पर छोड़ देते है। शायद उन्हें चारा खिलाने में खर्च का भार अधिक लगता हो और रिटर्न में मवेशियों से कुछ हासिल नहीं होता। निगम को चाहिए कि ऐसे मवेशी मालिकों पर भी कार्यवाही करें जो मवेशी तो पालते हैं औऱ जब उनकी उपयोगिता नहीं रहती तो उन्हें सड़क पर छोड़ देते हैं।
(सोशल मीडिया पर वरिष्ठ पत्रकार, चिंतक नरेंद्र मेहता के विचार साभार)